संपादकीय

निजी स्कूल की वकालत में अगर ऊना का एक परिवार उलझ गया, तो समाज के ऐसे व्यवहार को हम चौराहों पर खड़ा देख सकते हैं। बेशक ऊना की चाइल्ड हेल्पलाइन ने मसले पर एकत्रित भ्रांति को मिटाकर अभिभावकों से सरकारी स्कूल में बच्चे का प्रवेश करा दिया, लेकिन किंतु-परंतु के बीच बंटी शिक्षा का मूल्यांकन

राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों से भाजपा काडर का एक पक्ष मन ही मन गदगद है। ऐसी प्रतिक्रिया अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक है। काडर के चेहरे फोन पर आपस में बधाइयां बांट रहे हैं। वे आलाकमान का ‘अहंकार’ चूर होने से संतुष्ट और प्रसन्न हैं। कई काडर नेताओं ने हमसे अपनी महसूसन साझा की। दरअसल

अपने पैमानों की खनक में हिमाचल विधानसभा का शीतकालीन सत्र और विरोध की गोटियां फिट करते विपक्षी शिकायत का मंजर अगर खराब है, तो सियासत में सहमति के लफ्ज जोड़ने पड़ेंगे। चर्चाएं न तो घास काटने की मशीन बन सकती हैं और न ही अमर्यादित जंग। विधानसभा के हर सत्र से जनता का अभिप्राय बहस

क्या विपक्ष ने सदन से बाहर का रास्ता अख्तियार करके सही किया, सदन के भीतर से कहीं बेहतर बाहर बोला जा सकता है या राजनीति के पास यही दस्तूर बचा है, जिसके माध्यम से ही जनाकांक्षाओं की रखवाली होगी। क्यों टकराव की प्रवृत्ति में हिमाचल की विधानसभा अब चलने की जगह विषयों पर पथराव करने

पांच राज्यों का जनादेश सार्वजनिक हो चुका है, लेकिन हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान का जनादेश कांग्रेस पक्षधर रहा है। छत्तीसगढ़ में भाजपा को 15 लंबे सालों की सत्ता के बाद करारी पराजय झेलनी पड़ी है और मप्र, राजस्थान के जनादेश कुछ असमंजस भरे रहे। वैसे राजस्थान में रुझान कांग्रेस

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर हम भीख नहीं मांग रहे हैं। अब हम और प्रतीक्षा नहीं कर सकते। न्यायालय की प्रतिष्ठा होनी चाहिए, लेकिन सरकार और अदालत भी करोड़ों लोगों की आस्था और भावनाओं को समझें। अब सरकार अध्यादेश लाए या कानून बनाए। अब यही विकल्प समझ में आता है। राम मंदिर निर्माण की

सियासत के हर पहलू में दफन होती आम जनता की याददाश्त, फिर भी आलोचना का ढेर ही नेताओं को प्रासंगिक बनाता है। अचानक विजय सिंह मनकोटिया फिर अपनी हाजिरी लगाते हुए भाजपा और कांग्रेस की चार्जशीटों की बुनियाद पर प्रश्न उठाते हैं, तो आलोचना की डींगों में हासिल सच को निहारना होगा। मनकोटिया को लगता

सियासी परंपराओं से कितना आगे जयराम सरकार देख रही है, इसका हिसाब करता विधानसभा का शीत कालीन सत्र पुनः हाजिर है। सरकार के एक साल की इबारत से रंगा माहौल और कदम ताल करती विपक्षी सरफरोशी की मुलाकात का अवसर अपने पैमानों से बाहर। राजनीतिक सूर्य पर धरती की छाया का असर और दुबक कर

पांच राज्यों की नई विधानसभा के लिए मतदान संपन्न हो चुका है। अब 11 दिसंबर को अधिकृत जनादेश की प्रतीक्षा है, लेकिन कुछ एग्जिट पोल के जो अनुमान सामने आए हैं, वे 2019 से पहले के ठोस संकेत साबित हो सकते हैं। सिर्फ राजस्थान पर सभी पोल लगभग सहमत हैं कि वहां सत्ता परिवर्तन के