विचार

बचन सिंह घटवाल कांगड़ा पहाड़ों की सुंदरता पहाड़ों के व्यवस्थित होने पर आकर्षित करती है, जब बरसात के कारण पहाडि़यों का खिसकना व दरकना आरंभ हो जाता है, तो वही आकर्षक पहाड़ मानवीय जीवन के लिए खतरा बन जाते हैं। यूं तो बरसात के मौसम में तीव्र बारिश का असर जल भराव, बाढ़ जैसा संकट

शोर, हुड़दंग या पर्यटन की आवारगी का आलम यह कि इन दिनों हिमाचल की सड़कों पर घूमते पहियों ने अपने मकसद को बदनाम कर दिया है। काली कलूटी छाया में इस पर्यटन (?) से सतर्क नहीं हुए, तो हमें हासिल क्या होगा। धर्मशाला में ऐसे ही सिरफिरे पर्यटन से पुलिस की मुलाकात अगर अवैध हथियारों

राजेश कुमार चौहान केरल में कुदरत ने जो बाढ़ के रूप में कहर बरपाया है, काफी दुखद है। इनसान ने विज्ञान के क्षेत्र में बेशक खूब तरक्की कर ली है, लेकिन प्राकृतिक आपदाएं अपना ताडंव करके इनसान को एहसास दिलाती हैं कि कुदरत के आगे इनसान अभी भी बौना है। हमारी सरकारें आपदा प्रबंधन के

कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं सत्तारूढ़ भाजपा को यह समझना होगा कि यह क्षेत्र एक बहुलतावादी समाज है। इसलिए यहां कुशल प्रशासन व आर्थिक विकास पर जोर देना चाहिए। उसे अपना हिंदुत्ववादी एजेंडा इन राज्यों पर नहीं लादना चाहिए। लोकसभा के आगामी चुनाव अगले वर्ष होने हैं। ऐसी स्थिति में शासक दल पूर्वोत्तर की

मौसम की मार से हिमाचल पस्त बरसात से बुरी तरह जख्मी हिमाचल के दर्द से केंद्र सरकार अनजान है। हर सेक्टर को भारी -भरकम नुकसान की भरपाई के लिए मिलने वाला बजट ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अगर केंद्र से पर्याप्त मदद मिले, तभी बात बनेगी … बेरहम मानसून की मार से

बीरेंद्र सिंह वर्मा लेखक, शिमला से हैं यदि हम अपने आसपास के विश्वविद्यालयों पीयू, कुरुक्षेत्र विवि, बीएचयू, जेएनयू, डीयू इत्यादि पर नजर दौड़ाएं, तो पाएंगे कि यह संस्थान एचपीयू से पहले स्थापित हुए हैं तथा अपने आप में एक ब्रांड हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में यह संस्थान एचपीयू से बेहतर हैं… प्रदेश सरकार एचपीयू से

(भूपेंद्र ठाकुर, गुम्मा, मंडी) देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए डिजिटल इंडिया की तकनीक को अपनाना जरूरी हो गया है। चाहे लेन-देन, टैक्स का भुगतान या ऑन लाइन शॉपिंग हो सभी को इंटरनेट के प्रयोग से सरल बनाया गया है। भुगतान के लिए भीम, पेटीएम सरीखी आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।

सुगन धीमान ( बद्दी) देवभूमि का अर्थ है जहां के लोग सात्विक जीवन जीते हों। ऐसी जीवनशैली स्वयं का विकास तो करती ही है, साथ में परहित का ध्यान भी रखती है, लेकिन नई पीढ़ी स्वतंत्र जीने की शैली में विश्वास करके जीने लगी। परिणामस्वरूप नशे का जाल प्रदेश में अपनी पैठ बना बैठा है। विगत

(राजेश कुमार चौहान) सबसे पहले तो यह कहना उचित होगा कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया था, तब भी उसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और मध्यम वर्ग को ही उठाना पड़ा था। कुछ दिन पहले मीडिया में यह खबर सुर्खियों में थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंकों और निजी क्षेत्र के