विचार

उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने स्पष्ट कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को मनमोहन प्रकरण पर माफी मांगने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने ऐसा संसद के सदन में नहीं कहा था। लोकसभा में भी स्पीकर सुमित्रा महाजन का लगभग यही रुख था। संसदीय परंपराओं और नियमों के मुताबिक, राज्यसभा सभापति और लोकसभा

डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर चौंकाते हैं फैसले, दुर्गति देती शाप, जनता है सर्वोपरि, कहां खो गए आप? राहु काल समाप्त है, सेवक युग चहुंओर, नमो-नमो की गूंज से, होती है अब भोर, स्वर्णिम युग प्रारंभ है, जीता आज विकास, पगला गया विकास या, लल्ला हुए हताश, जातिवाद से फोड़ मत, उनकी कर मत फांक,

राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा विज्ञापन के दौर में चीजों और वस्तुओं का विज्ञापन जरूरी है, लेकिन कुछ कंपनियां अपने उत्पादों का विज्ञापन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं। आज भारतीय बाजार में विभिन्न वस्तुओं की स्पर्धा अपने चरम पर है। लगभग हर कंपनी अपनी वस्तुओं और उत्पादन के प्रचार-प्रसार के लिए सेलिब्रिटी का प्रयोग करती

रोमिल कौंडल, केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट आज के समय में एक गहन चिंता का विषय है। मूल्यों में हृस की सबसे बड़ी वजह परिवार के सदस्यों की लापरवाही है। आजकल ज्यादातर परिवार के सदस्य नौकरी-पेशे वाले हैं। उचित समय न दे पाने के कारण बच्चों के मूल्यों का लगातार हृस

सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा, गगल वित्त मंत्री को नोटबंदी और जीएसटी के कारण चुनावी प्रचार के दौरान भी कई निराशाजनक टिप्पणियां सुनने को मिलीं। यहां तक कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी वित्त मंत्री को असफल बताया, लेकिन गत माह की आखिरी तारीख को जीडीपी दर में सुधार हुआ। यह एक अच्छा संकेत

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं गुजरात में भाजपा की जीत में उसकी हार छिपी है और कांग्रेस की हार में उसकी जीत छिपी है, लेकिन हिमाचल प्रदेश का सबक स्पष्ट है कि सत्ता में रहते हुए भी यदि आपने जनता से संपर्क नहीं रखा तो जनता आपको सिंहासन से उतार देगी।

डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर लंबी कशमकश के बीच भाजपा ने हिमाचल प्रदेश और गुजरात दोनों ही राज्यों को जीत लिया है। दूसरी तरफ राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर पहुंचकर यह पहली हार है। कई विश्लेषकों द्वारा इस हार में भी राहुल गांधी की जीत को देखा जा रहा है। यह उनका अपना आकलन हो

डा. मनोहर शास्त्री, मंडी समानता के अधिकार के साथ समय-समय पर घालमेल होता रहा है। कई तबकों को इस अधिकार के लाभ से वंचित ही रहना पड़ा है। इसके लिए मैं उनकी अशिक्षा या फिर सदियों की गुलामी के प्रभाव को दोषी मान सकता हूं, जो उनकी मन-मष्तिष्क से लेकर उनके रक्त में भी घुल-मिल

लेखराज, केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला मानवता और इनसानियत से बढ़कर कोई भी धर्म नहीं है। दुनिया के पास ऐसी शक्ति नहीं है, जो मानवता और इनसानियत को मार सके।  दुनिया में ऐसा भी नहीं है कि सभी लोग बुरे हों। इस संसार में कुछ लोग अच्छे, तो कुछ बुरे होते हैं। बेशक वे अलग-अलग संस्कृति या