विचार

देश-प्रदेश की तस्वीर में हम चंद नेताओं पर अपनी तकदीर का फैसला करना चाहते हैं और यही हमारी लोकतांत्रिक आस्था के स्वरूप को निर्धारित कर रहा है। सवाल जनता के विश्वास से परे हालात पर टिके हैं, इसलिए राजनीतिक सर्कस में भी हम प्रतिभा देखने की गुस्ताखी कर बैठते हैं। जनता राष्ट्रीय स्तर से हिमाचल तक केवल चलाई जा रही है और उम्मीदों तथा संभावनाओं के प्रश्न चुनाव दर चुनाव आगे सरकाए जा रहे हैं। ऐसे में जनता या अपने मतदान के भरोसे पर देश की सुनहरी तस्वीर के प्रति आशावान है या विकल्पों की कमी उसे मजबूरीवश आगे धकेल रही है। इस बीच दिव्य हिमाचल के साप्ताहिक प्रश्न के जवा

लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं। राजनीतिक दल अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार मतदाताओं से वादे कर रहे हैं, किंतु ज्यादातर वादे लोकलुभावन किस्म के ही होते हैं जिनमें दीर्घकालीन जनहित का अभाव देखने को मिलता है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में विशेषकर हिमालय और आम तौर पर पूरा देश ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में आ गया है। बाढ़, सूखा, असमय बारिश, बर्फ बारी का कम होते जाना, ग्लेशियरों का तेज गति से पिघलना जैसे लक्षण तेज गति से फैलते जा रहे हैं। परिणामस्वरू

प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के छह और तीन निर्दलीय विधायकों के सुक्खू सरकार का साथ छोडऩे के कारण हलचल मची हुई है। इसने आम जनता को हैरान कर दिया है और प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा। इस हलचल से भाजपा को फायदा होगा या कांग्रेस

मैं अमुक नाम:, अमुक स्कूल:, अमुक शहर का स्वेच्छा से स्कूल मास्टरी के पेशे में आया पहला स्कूल मास्टर सूअरों के बाड़े के साथ बने किराए के कमरे में एक खास मकसद से सानंद रहता हूं। सूअरों के बाड़े के साथ बने किराए के कमरे में रहने का मेरा इरादा मेरा कम वेतन कदापि न लिया जाए। मैं अपने वेतन से पूरी तरह संतुष्ट हूं। मैं सूअरों के बाड़े के साथ बने किराए के कमरे में इसलिए रहता हूं कि रिटायर होने से पहले जो सच्ची को दो चार सूअरों को इन्सान बना गया तो मेरा स्कूल मास्टर होना सार्थक होगा।

सिर्फ केजरीवाल की गिरफ्तारी के आधार पर इस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता कि 2024 के आम चुनाव ‘विपक्ष-मुक्त’ हैं अथवा चुनावी रण समतल नहीं है। केजरीवाल के मुद्दे पर तो संयुक्त विपक्ष की रैली का आह्वान किया गया है, लेकिन हेमंत सोरेन भी झारखंड के चुने हुए मुख्यमंत्री थे। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया था। सोरेन की मासूमियत पर विपक्ष ने इतना शोर नहीं मचाया, जितना केजरीवाल को लेकर प्रलाप किया जा रहा है कि एक पदासीन मुख्यमंत्री

सत्ता के गलियारों में घूमते हुए बुद्धिजीवी ने इनसान को बुत और बुत को इनसान बनते देखा है। यह सत्ता को भी मालूम नहीं कि उसके भीतर कितनी प्रतिमा और कितनी प्रतिभा है, लेकिन जब गलियारे ही आमादा हो जाएं बताने और दिखाने के लिए, तो क्षमता बढ़ जाती है। हर सत्ता का कोई ने कोई गलियारा ऐसा भी होता है, जो हमेशा बतियाता है, वरना अब सरकारें खुद को प्रतिमा बनाने में शरीक हैं, इसलिए कार्यों की मौन प्रगति बेचैन है। यहीं बेचैनी नेताओं को प्रगतिशील बता रही है या बेचैन नेता ही प्रगति के असली

हम उम्मीद करें कि ईएफटीए के बाद अब भारत के द्वारा ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, इजरायल, भारत, गल्फ कंट्रीज काउंसिल और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा। हम उम्मीद करें कि

इस क्रांतिकारी दल का एक ही उद्देश्य था, सेवा और त्याग की भावना मन में लिए देश पर प्राण न्योछावर कर सकने वाले नौजवानों को तैयार करना। लाला लाजपत राय जी की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेज अफसर सांडर्स पर गोलियां चलाईं...

बीते दिनों केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने कुछ संदिग्ध और सवालिया न्यूज वेब पोर्टल, निजी न्यूज चैनलों पर पाबंदी लगाई थी। आरोप पुराने ही थे कि वे ‘फेक न्यूज’, ‘भ्रामक सामग्री’ और ‘झूठी खबरें’ परोस रहे थे। सरकार इसे ‘आपराधिक कृत्य’ मानती है। बीते एक अंतराल से ऐसी पाबंदियां ही चस्पा नहीं की गईं, बल्कि कुछ पत्रकारों, संपादकों, प्रकाशकों को भी, कड़ी कानूनी धाराओं में, जेल भी भेजा गया है। बहरहाल वे मामले अदालतों के विचाराधीन हैं। बेशक फेक न्यूज लंबे समय से एक गंभी