वैचारिक लेख

आज भारत की एकता एक नई चुनौती का सामना कर रही है। कई छोटे राज्य, विशेष रूप से दक्षिण भारत के, केंद्रीय सरकार के योजनाबद्ध परिसीमन, जो कि जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों को पुनर्निर्धारित करने के लिए संवैधानिक रूप से एक अनिवार्य प्रक्रिया है, का विरोध करने के लिए एकजुट हो गए हैं। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना और अन्य छोटे राज्यों को डर है कि आगामी जनगणना के कारण उन्हें उत्तर के बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार के हाथों अपनी संसदीय सीटें खोनी पड़ सकती हैं। उनका तर्क है कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने की उनकी सफलता का फल उन्हें प्रतिनिधित्व खोने के रूप में नहीं मि

यद्यपि हिमाचल में प्लास्टिक बैग पर पूर्णत: प्रतिबंध है, फिर भी मल्टीनेशनल ब्रांड्स व कम्पनियों द्वारा उत्पादों की पैकेजिंग में प्लास्टिक के उपयोग से प्रदेश भी नहीं बच पा रहा...

वह उसी अंदाज में अपनी बात जारी रखते हुए बोले, ‘मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा। जो भोग लिया, वही अपना है। तुम देखते नहीं कि किस तरह माल बनाने के लिए बाबा लोग जनता को परलोक का भय दिखाते हुए स्वयं इतनी भव्यता में जीते हैं। नेता लोगों से समाज और देश की सेवा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने का आवाह्न करते रहते हैं। पर क्या तुमने कभी किसी नेता के बेटे को देश के लिए कुरबानी देते हुए देखा है? जऱा याद करो कि किस नेता ने देश के लिए अपनी सम्पत्ति दान में दी है। सभी सुविधाओं के भोग में मस्त हैं। दो वक्त की रोटी या सुविधाओं के जुगाड़ में डटे अधिकांश लोग भय से मौन हो जाते हैं या अधिकतर अपने स्वार्थवश भीड़ का हिस्सा होने के बाद नेताओं के समर्थन में नारे लगाते रहते हैं। इसी स्वार्थपरकता के कारण देश हज़ारों साल ग़ुलाम रहा। लेकिन बेडि

इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि इस समय देश का अनुमानित खाद्यान्न उत्पादन 33 करोड़ टन से अधिक है, जबकि भंडारण क्षमता कुल उत्पादन का आधे से भी कम है, ऐसे में अनाज बर्बाद होने से बचाने के लिए अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करनी होगी...

हालात जैसे भी हों इज्जत-ए-नफज से काम करने वाली अजीम शख्सियतें किसी प्रलोभन या धन-दौलत के लालच में खुद्दारी की सरहद नहीं लांघती। बेहतर होगा यदि मुल्क के निजाम में विराजमान इंतजामिया व नौकरशाही को नशा ईमानदारी व मोहिब्ब- ए-वतन के जज्बात का हो ताकि आवाम का एतबार कायम रहे...

पुलिस थाने का पेड़ बिना बताए ढह गया। पुलिस ने यूं तो कई पेड़, कई भवन और लोग ढहते देखे, लेकिन यह मंजर भयानक था। आधा पेड़ थाने की छत पर और आधा बाहर सडक़ से गुजर रही बस की छत पर था। कार्रवाई के लिए चश्मदीद गवाह ढूंढे गए। स्वयं थानेदार सतर्क थे, आखिर उनकी छत का मामला था। जनता पहली बार पुलिस को पेड़ से लड़ता देखकर खुश थी, लेकिन चश्मदीद गवाह बनने को तैयार नहीं थी। खैर थानेदार का अनुभव काम आया, लिहाजा उन्होंने थाने को

उपनिवेशवादी प्रबंधन ने ही लोगों को वनों से दूर किया था। उनको फिर से वनों के साथ जोडऩे का यह कानून मौका देता है, जिसका लाभ होगा। डरने की जरूरत नहीं, बल्कि मिलकर बेहतर वन प्रबंधन विकसित करने पर ध्यान देने की जरूरत है। वन विभाग यदि अपनी विशेषज्ञता का उपयोग आने वाले समय में आजीविका वानिकी की ओर करे तो बेहतर होगा। ऐसे वन जो बिना काटे रोजी-रोटी दे सकें, वही संरक्षित पर्यावरण की गारंटी हैं...

हिमाचल प्रदेश अपनी सुरम्य वादियों, शांत वातावरण और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में यह नशे की एक गंभीर सामाजिक चुनौती का सामना कर रहा है। पहले जहां यह समस्या कुछ सीमित इलाकों तक सिमटी थी, वहीं अब यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गहराई से जड़ें जमा चुकी है। युवाओं में नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है जिससे न केवल उनका भविष्य अंधकारमय हो रहा है, बल्कि सामाजिक ढांचे पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। नशे का यह फैलाव कई कारणों से हो रहा है, जिनमें बेरोजगारी, मानसिक तनाव, सामाजिक दबाव, पारिवारिक विघटन और नशे के पदार्थों की

देश में कानून व्यवस्था के मामले में कर्नाटक नंबर वन है जबकि पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है जो पुलिस, ज्यूडिशियरी, जरूरतमंदों को कानूनी मदद मुहैया कराने, कैदियों के लिए बेहतर इंतजाम के मोर्चे पर सबसे पिछले पायदान पर खड़ा है...