बुद्धिजीवी इस भ्रम में है कि एक वही जाग रहा है, जबकि अब तो देश के जागने से पहले कितने ही संप्रदाय, संगठन और समुदाय जाग चुके होते हैं। आश्चर्य यह कि कहीं खबर जाग चुकी होती है, लेकिन पत्रकार की नींद अपने गहरेपन से बाहर नहीं निकल पाती। देश कभी खबरों को, तो कभी जागने वालों को देखकर भी यह समझ नहीं पाता कि असल में कौन किसके लिए जाग रहा है, जबकि जागने के लिए अब किसी को सुलाना जरूरी है। पत्रकार सोता है, तो खबर जागती है और कहीं पत्रकार जाग जाए तो खबर को सुलाना पड़ता है। तमाम खबरिया चैनल न खुद सोते और न ही दर्शकों को सोने देते, लेकिन खबर बड़ी तल्लीनता से उनके सान्निध्य में सो जाती है। अब खबर भी सपने देखने लगी है। अच्छे दिनों के सपने से खबर के सपनों का मुकाबला होने लगा है। सपने में खबर को
इसी तरह सोशल मीडिया पर बेवजह की बहस की जाती रही है। इसके बावजूद देश के मुसलमानों ने ठंडा रुख रखा, कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दी जिससे कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती उत्पन्न हो...
राष्ट्रीय साप्ताहिक पांचजन्य के एक लेख के अनुसार गोंडवाना में प्रचलित है कि छोटे-बड़े सभी युद्धों की बात की जाए तो इस पराक्रमी रानी ने 52 युद्ध लड़े जिनमें 51 युद्धों में उन्होंने विजय प्राप्त की थी। रानी दुर्गावती की युद्ध नीति और कूटनीति विलक्षण थी...
पब्लिक की खुशी का ठिकाना नहीं है। विज्ञापन जो देख लिया है। विज्ञापन अखबारों में छपा है। अखबारों में वैसे और भी कई कुछ छपता है जिस पर कभी पब्लिक का ध्यान जाता है तो कभी नहीं भी जाता। लेकिन बड़े से पेज का विज्ञापन हो और उसमें नेताजी की बड़ी सी तस्वीर लगी हो और तस्वीर में उनका मुखड़ा चमक रहा हो तो पब्लिक का ध्यान विज्ञापन पर जाता है। विज्ञापन में जो लिखा होता है, उससे पब्लिक गदगद हो जाती है। विज्ञापन बनाने वाले को सैल्यूट ठोकती है। इतनी सफाई से विज्ञापन बनाकर उसमें इतना कुछ लिख दिया होता है कि पब्लिक को लगता है, वह व्यर्थ में ही सरकार की आलोचना कर रही थी। सरकार ने तो इतने सारे काम गिना दिए हैं। इतना काम करते-करते सरकार कब सोई होगी। कब जागी होगी। कब भोजन किया होगा। कहीं
अरबों में हजरत मोहम्मद के उत्तराधिकारी को लेकर विवाद तो उनके देहावसान के तुरंत बाद ही शुरू हो गया था। अरबों के बड़े व ताकतवर कबीलों ने हजरत मोहम्मद (उनका कोई बेटा नहीं था) के दामाद हजरत अली को उत्तराधिकारी, जिसे खलीफा कहा गया, मानने से इन्कार कर दिया। यह स्थान अबू बकर को दिया गया। इसके बाद भी बारी हजरत उमर और उस्मान की ही आई। हजरत अली को दूर ही रखा गया। तीसरे खलीफा के देहांत के बाद अली खलीफा तो बना दिए गए, लेकि
रामलीला मंचन के दौरान कलाकारों और दर्शकों की आराध्य देव के प्रति आस्था और समर्पण उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक साबित होता है। यह समर्पण उनके व्यक्तित्व को निखारता है, उन्हें एक नई दिशा भी देता है...
मैंने ढाई आखर (प्रेम) पढ़ लिया था, इसलिए बी.ए. अथवा एम.ए. करने की आवश्यकता ही नहीं रही। पिता जी ने अवश्य कहा -‘‘बेटा पढ़ लेते तो ठीक रहता।’’ मंैने कहा - ‘‘पिता जी, मैंने प्रेम का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, अत: औपचारिक शिक्षा की मुझे जरूरत नहीं है।’’ पिता जी बोले - ‘‘नौकरी धंधे के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी है।’’ मैंने कहा - ‘‘मैं बकौल कबीर ढाई आखर पढ़ कर पण्डित हो गया हूं। आप किसी प्रकार की चिंता न करें।’’ यही बात मैंने प्रेम में बंधी अपनी नायिका से कही तो वह भी एक बार तो चकरा गई और बोली ‘‘यह मैंने क्या कर लिया?’’ मैंने कहा -‘‘घबराओ नहीं, तुम्हारा निर्णय सौ फीसदी सही है। तुम्हारा
सहज जीवन मार्ग में हमारा जीवन प्रेममय हो जाता है, या यूं कहिए कि हम खुद प्रेममय हो जाते हैं, हम प्रेम की प्रतिमूर्ति बन जाते हैं और इस ब्रह्मांड की हर जड़-चेतन वस्तु से प्रेम करने लगते हैं। अकारण प्रेम करने लगते हैं, बिना किसी लाभ की आशा के प्रेम करने लगते हैं। मनुष्यों से ही नहीं, पशु-पक्षियों से भी, पेड़-पौधों से भी और प्राणहीन मानी जाने वाली वस्तुओं से भी प्रेम करने लगते हैं, पर उनसे अटैच नहीं होते, उनमें मोह नहीं रखते। इसके साथ ही हम हर अवस्था
खाने-पीने के शौकीन अथवा महानगरों में नौकरी आदि के चलते कम मूल्य लागत वाला भोजन तलाशने वाले भारतीयों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि स्वाद एवं सस्ते के चक्कर में न पडक़र स्वच्छता मानकों एवं साफ-सफाई को अपनी सेहत के दृष्टिगत स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन को अपनी प्राथमिकता में रखें। अतिरिक्त सतर्कता का पालन करने से ही हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित बना सकते हैं...