वैचारिक लेख

सही तरीके से गर्भनिरोधक उपायों, गर्भपात, बन्ध्यीकरण, एकल बच्चा पैदा करने की नीति और परिवार नियोजन आदि उपायों से ही जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना के तहत अब एक बेटी के बाद परिवार नियोजन अपनाने वाले परिवार को दो लाख रुपए मिलेंगे, वहीं दो बेटियों के बाद परिवार नियोजन अपनाने पर अब एक लाख रुपए मिलेंगे...

जिंदगी इतनी तेजी से बदल रही है, कि लगता है कल की सफलता की सीढ़ी आज नसेनी भी न बन पाएगी। वह सफलता जो मुसाहिबी से शुरू होती है और मसखरेपन में बदल जाती है। कल जो मसखरे लगते थे, आज वे गद्दी हथियाने की दौड़ में मार्गदर्शक बन गए। कल बुद्धिमान की परख होती थी, आज चतुर सुजान की होती है। अब यह सफलता सूत्र घर-घर चला जाए कि जिंदगी के मुशायरे में सबसे अच्छा श्रोता वह है, जो आपका शे’अर अर्ज होने से पहले ही ‘वाह-वाह’ की झड़ी लगा दे। नई जिंदगी का ध्वजवाहक वह है, जो विपक्षी को नेस्तनाबूद करने के लिए निरंकुश हो, आरोपों की बरसात कर दे, और फिर सरे बाजार सिर धुने

हिमाचल के दूरदराज इलाकों से अभी भी तबाही के समाचार मिल रहे हैं। संपर्क मार्ग टूट गए हैं। पुल बह गए हैं। नदियां और नाले आक्रोश में हैं। प्रकृति गुस्से में है। देवता नाराज हैं...और यह अचंभित करता है कि इन सभी का गुस्सा बजाय इस सभी के लिए उत्तरदायी नेताओं, सरकारों और प्रशासन पर न फूट कर निर्दोष लोगों पर निकल रहा है। कोई नाला बिगड़ैल सांड की तरह नीचे भागता आता है और नींद में सोई बच्चियों, उनके दादा दादियों, उनके अम्मा बाबा, भाइयों को, बेजुबान पशुओं को मलबे में दबाकर आगे निकल जाता है। यहां तक कि उन बेचारों के शव तक नहीं मिल रहे। वैसे भी हम देश, प्रदेश या विश्व की जितनी भी

विकेश कुमार बडोला स्वतंत्र लेखक

हमारा हिमाचल प्रदेश छोटा सा पहाड़ी राज्य है जिसकी सुंदर सलोनी छटा बरबस ही सभी का मन मोह लेती है। पर्यटक यहां पर खींचे चले आते हैं, परंतु मानसून के दस्तक देते ही पर्वत कांप उठते हैं, धरा पर उगी वनस्पति सहारा ढूंढने लगती हैं। स्थिर मौन से खड़े तरुओं में हलचल सी होने लगती है। फिर मानसून के प्रवेश करते ही सूर्यदेव विशालकाय मेघों की हुंकार सुनते ही कहीं गायब हो जाते हैं और बिजली कडक़ने से तो प्रकृति के रोम-रोम में सिहरन सी दौडऩे लगती है। ऐसे तो वर्षा ऋतु को मस्त ऋतु कहा गया है। जब ग्रीष्म ऋतु में झुलसते वातावरण में शीतल और सुकून देने वाली फुहारें गिरने लगती हैं तो सर्वत्र मस्ती छा जाती है। यही फुहारें जब रौद्र रू

अगर रिटायर हुए भाभी के पतिश्री और हमारे व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन साहब को पता होता कि इनसर्विस के दिनों में पसीनों के भी पसीने छुटाने वालों के रिटायर होने के बाद एसी के नीचे बैठे होने के बाद भी पसीने छूटेंगे तो वे रिटायर होने के बाद भी रिटायर न होते। एक्सटेंशन के लिए जमीन आसमान नहीं, आसमान जमीन एक कर देते और एक्सटेंशन हर हाल में लेकर रहते। उनकी परेशानी का कारण घरेलू के साथ साथ व्हाट्सएप ग्रुपीय भी है। मतलब, एक बंदा, दो परेशानियां। वैसे घरवाली के साथ वाली उनकी परेशानियां तो उनकी मंगनी होने से ही शुरू हो गई थीं, इसलिए इस परेशानी के वे हेबिचुअल थे, पर अब उनके अपने रक्त से ताजा ताजा सींचे व्हाट्सएप ग्रुप के स

भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते पर 2017 से ही चर्चा चल रही है। लेकिन अभी तक इस समझौते को मूर्त रूप नहीं मिल पाया है। कई बार तो यह समझौता इतना नजदीक नजर आता था कि मीडिया ने एफटीए के मुख्य तत्वों की घोषणा भी कर दी थी, लेकिन अचानक कुछ बाधाएं सामने आतीं और एफटीए ठंडे बस्ते में चला जाता। आखिरी बार ऐसी घटना 2020 में हुई थी। मीडिया में खबरें आ रही थीं कि भारत-अमेरिका एफटीए पर हस्ताक्षर होने वाले हैं और यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) का भारत दौरा प्रस्तावित था, लेकिन अचानक हमें पता चला कि यूएसटीआर ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया है और तब से भारत-अमेरिका एफटीए पर कोई चर्चा नहीं हुई। हाल ही में इस एफटीए, तो कभी सीमित एफटीए के बारे में खबरें फिर से आना शुरू हुई। पिछले चार महीनों में

खासकर ठेकेदारी प्रथा के चलते डंपिंग कार्य में भारी कोताही बरती जा रही है। बांध प्रबंधन में भी लापरवाही देखने में आई है। कहीं बाढ़ के समय बांध के गेट ही नहीं खुलते हैं और कहीं बाढ़ नियंत्रण के लिए बांध में समय रहते, बाढ़ के पानी को रोकने योग्य जगह ही समय पर पानी छोड़ कर खाली नहीं की जाती...

घटना के एक सप्ताह बीतने के बावजूद राजधानी के गलियारों में अभी भी चर्चा गर्म है कि एनएचएआई (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) के अधिकारी के सिर पर घड़ा किसने मारा? एक माननीय मंत्री पर उक्त अधिकारी के सिर पर घड़ा मारने का जो आरोप लगा था, उसे गोदी मीडिया ने पहलगाम की आतंकी घटना से भी बड़ा मुद्दा बना दिया। खबरिया चैनलों के टेढ़े आंगन में हफ्ता भर चौबीस गुणा सात सिर्फ यही मुद्दा डांस करता रहा। अव्वल तो मंत्री महोदय ने अधिकारी के सिर पर घड़ा फोड़ा ही नहीं और अगर फोड़ा भी था तो क्या किसी कैबिनेट मंत्री को इतना भी हक नहीं। जब केन्द्र और राज्यों में सत्ता में बैठी बीजे पार्टी तथा अन्य राजनीतिक दलों की सरकारों के मंत्री और उनके चट्टे-बट्टे, अधिकारियों को अपनी सुविधानुसार कहीं भी सूत सकते हैं तो पंजे वाली सरका