वैचारिक लेख

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं समाज बंट रहा है।  लोगों में निराशा है। देखना यह बाकी है कि विपक्षी दलों की एकजुटता का भविष्य क्या रहता है। फिर भी यह सच है कि सारी चुनौतियों के बावजूद इस एक सच को नहीं भुलाया जा सकता कि जिस तरह राज्यों में विपक्ष

सतपाल लेखक, एचपीयू में सीनियर रिसर्च फेलो हैं चुनाव आयोग ने विधायकों व सांसदों के लिए अपनी आय को सार्वजनिक करना आवश्यक कर दिया, जो अपने आप में सुशासन की तरफ  एक कदम है। आज सभी उम्मीदवार अपनी आय का विवरण देते हैं। परंतु विधायकों की पूंजी हजारों से करोड़ों रुपए में तबदील होना क्या

घनश्याम सिंह लेखक,  मंडी से हैं मेरा अनुरोध भारत सरकार से है कि इस वीरभूमि के लिए अलग से एक रेजिमेंट खोल दी जाए, ताकि यहां के युवा उसमें भर्ती होकर देशरक्षा में सेवा दे सकें तथा देश और प्रदेश का नाम रोशन कर सकें। देश में जो युवा बेरोजगारी के कारण भटकने को मजबूर

प्रभुनाथ शुक्ल लेखक स्वतंत्र चिंतक  हैं अब तक जितने भी कानून बने हैं, क्या वे अपराध रोकने में सक्षम हैं? अनूसूचित जाति / जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम अरसे से बना है, फिर ऊना जैसी घटनाएं क्यों होती हैं? सिर्फ कानून और संविधान से किसी के अधिकारों की रक्षा नहीं हो सकती, जब तक लोगों में

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं हमें एक करोड़ नए रोजगार हर वर्ष बनाने होंगे। सरकारी बैंकों का विलय प्राफिट में चल रहे बैंकों में करने से बैंक कर्मियों के स्वभाव में कोई अंतर नहीं पड़ता है। इसलिए सरकारी इकाइयों को विनिवेश अथवा विलय का पेन किलर देने के स्थान पर इनकी

नीलम सूद लेखिका,  पीपुल्स वायस संस्था की सदस्य हैं सभी मंत्रियों एवं विधायकों पर सुविधाओं के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। 52000 करोड़ के कर्ज तले दबे प्रदेश में मुख्य सचेतक एवं उप मुख्य सचेतक जैसे अनावश्यक पदों को सृजित कर विधायकों को कैबिनेट रैंक देने व उन पर होने

कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं मैं उनसे इस बात पर सहमत हूं क्योंकि यह कोई हिंदू-मुसलमान का सवाल नहीं है और न ही इसे इस तरह का सवाल बनाया जाना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो सके। उनकी अधिकतर संपत्तियां अब भी अक्षुण्ण

अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं पिछले 15 वर्षों से केंद्रीय सशस्त्र पुलिस फोर्सेज के भूतपूर्व जवान अपने हकों और मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। केंद्रीय अर्द्धसैनिक के अंतर्गत सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एनडीआरएफ और एसएसबी आते हैं। देश के भीतर आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा संभालने के साथ-साथ सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद, नक्सलवाद,

किशन चंद चौधरी लेखक, कांगड़ा से हैं प्रदेश विकास के लिए बनी योजनाओं को धरातल पर उतारने की जरूरत है। ऐसे कितने विभाग हैं, जो खुद के ग्रामीण अस्मिता से जुड़े होने का बोध करवाते हैं। अगर ये विभाग अपने दायित्वों को समझते हुए ग्रामीण विकास में अपना योगदान करते हैं तो निश्चित तौर पर