वैचारिक लेख

हमारी अगली विद्वान पीढ़ी को शहरों में अच्छी-अच्छी नौकरियां मिल रही हैं, लेकिन जहरीली हवा में सांस लेने से अच्छा है गांव से जुड़े रहें...

खडख़ड़ जी को आजकल न जाने क्या हो गया है? जब से उनके पोते ने उनकी मिमिक्री की है, उन्हें लगता है कि हर कोई उन्हें चिढ़ाते हुए उनका उत्पीडऩ कर रहा है। उनके दादा होने का बोध ख़तरे में है। उनकी गरिमा तार-तार हो रही है। कोई हँसता भी तो है उन्हें लगता है कि वह खी-खी की आवाज़ केवल उन्हें चिढ़ाने के लिए ही निकाल रहा है। इसलिए उन्होंने आजकल बाज़ार निकलना भी छोड़ दिया है। घर में अगर कोई खाँसता भी है तो उन्हें लगता है

विकसित देश बनने के लिए 2047 तक लगातार करीब 7 से 8 फीसदी की दर से बढऩा होगा। हम उम्मीद करें कि जिस तरह 11 और 12 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अमृतकाल में नई पीढ़ी को विकास के लिए लंबी छलांग लगाने के जो मंत्र सौंपे हैं, उनके मद्देनजर देश के युवा और शासन-प्रशासन समन्वित रूप से दुनिया में सामथ्र्यवान भारत की तस्वीर बनाते हुए आगे बढेंग़े और वर्ष 2047 तक देश विकसित देश के रूप में रेखांकित होता हुआ दिखाई देगा...

विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला ने उनको सबसे अलग बना दिया। अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को भी साथ लिया और गठबंधन सरकार बनाई। वह विपक्ष की आलोचना के साथ अपनी आलोचना सुनते थे...

बुद्धिजीवी के स्थायी भ्रम बुद्धि को लेकर ही होते हैं और वह इन्हीं के बीच जिंदगी गुजार देता है। इस बार वह अपनी जिंदगी को सामने रखी हुई दवाई की गोलियों के बीच समझने लगा। पहली बार उसने देखा कि तरह-तरह गोलियां एक-दूसरे पर भारी पड़ रही हैं। सबसे ज्यादा हृदय रोग की दवाई उछल रही थी। तभी उसने सुना, एक गोली कह रही थी, ‘मैं सुबह देखती हूं। मेरे साथ ही मरीज सुबह देखता है।’ दूसरी ने जवाब दिया, ‘नाश्ता और दोपहर का खाना अब मेरे बिना कौन खा सकता है।’ तीसरी आंखें फाड़ कर बोली, ‘मरीज को सुलाने, सपनों और परिवार के झंझट से दूर रखने में इक मैं ही

सांसदों का चुनाव इसीलिए होता है कि संसद में जाकर आमजन की तकलीफों पर चर्चा करें और उन्हें दूर करने के लिए रास्ते बनाएं। इसके विपरीत सांसद फिजूल की बहसबाजी मेें उलझे हैं...

मैंने हिंदी के लिए एक नया मुहावरा गढ़ा है। मुहावरा है- नाक में रुई डल जाना। इसका अर्थ है किसी व्यक्ति का मृत्यु को प्राप्त हो जाना। यह मुहावरा बिल्कुल मौलिक है, और स्वरचित भी। इसका वाक्य में प्रयोग करके भी मैं आपको दिखाना चाहूंगा। यह प्रयोग है- आजकल के कुछ संस्कारविहीन बच्चे इस ताक में

जरूरी नहीं है कि इस मुल्क में सिर्फ हुक्मरानों, बाहुबलियों व बदमाशों का ही डंका बजता है। या फिर सीबीआई और ईडी का डंका का बजता है। हम इनमें से किसी भी कैटेगरी में नहीं हैं, फिर भी ऊपर वाले की मेहरबानी से हर जगह हमारा डंका बजता है। लोग हमें आकर बताते हैं कि साहब आपका डंका बज रहा है। हम लोगों की बातों में आकर खुश हो जाते हैं कि चलो इस दुनिया में हमारी भी तो कोई प्रतिष्ठा है! हमारे पास कोई पेट्रोल पंप नहीं है। किसी उद्योग में

अपना रोष प्रकट करने के लिए उस वक्त युवाओं ने जहाज हाईजैक करने का रास्ता चुना था और अब युवा संसद के अंदर आकर धुआं फैला रहे हैं। इसमें सुरक्षा को खतरा कहां है? वैसे केवल रिकार्ड के लिए जहाज हाईजैक करने वाले ‘निराश युवाओं’ को कांग्रेस ने ईनाम भी दिया था। दोनों को कांग्रेस ने अपनी टिकट पर चुनाव लड़वाया। देवेंद्र नाथ पांडेय को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव का पद दिया गया। बलिया के रहने वाले भो