वैचारिक लेख

पीके खुराना ( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) सवाल यह है कि पंजाब में किसकी जीत की संभावना है। अभी तक के सर्वेक्षणों में हालांकि आम आदमी पार्टी काफी मजबूत दिख रही है और कांग्रेस के आंतरिक सर्वेक्षणों में भी वह बहुत मजबूत नजर नहीं आ रही है तथा शिरोमणि

( अनुज कुमार आचार्य  लेखक, बैजनाथ से हैं ) आधुनिकता की दौड़ में हिमाचल के लोग, विशेष रूप से युवा कदमताल करते नजर आते हैं। ऐसे में स्वाभाविक ही है कि हमारी प्राचीन सांस्कृतिक परंपराएं कहीं पीछे छूटती नजर आएंगी। फैशनपरस्ती ने पारंपरिक परिधानों के ऊपर बढ़त बना ली है, तो वहीं हमारी लोक संस्कृति

( जगदीश चंद बाली लेखक, कुमारसैन, शिमला से हैं ) विभिन्न स्कूलों के  निराशाजनक परिणाम उस भयानक भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं, जिस ओर ग्रेडिंग व ‘सब पास’ की नीति पर आधारित हमारी शिक्षा बढ़ रही है। यह मेरी मनगढ़ंत राय नहीं है, बल्कि विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात कई बार जाहिर हो

( डा. अश्विनी महाजन लेखक, दिल्ली विश्वविद्यालय के  पीजीडीएवी कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं ) हालांकि सभी बैंकों ने ब्याज दरों को नहीं घटाया है, लेकिन आशा की जा रही है कि 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद, पुराने नोटों के बैंकों में भारी मात्रा में जमा होने के कारण बैंकों

डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं ) राज्य सरकारें घूस वसूलने के अधिकार को लेकर अड़ी हुई हैं और केंद्र सरकार के वीटो के अन्याय को स्वीकार कर रही हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि घूस वसूल करने का अधिकार केंद्र को दे दे। अपने कर अधिकारियों को केंद्र के अधिकारियों

( सुदर्शन कुमार पठानिया लेखक, कुमारहट्टी, सोलन से हैं ) अगर चपरासी ही बनना था, तो उसके लिए पीएचडी करने की क्या जरूरत थी। चपरासी तो दसवीं के बाद या पहले भी बना जा सकता है। यानी हम यह समझें कि आजकल जो शिक्षा व्यवस्था चली है, वह अंग्रेजों की भारतीयों को क्लर्क बनाने की

( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) महात्मा गांधी भी कहते थे कि हिंदोस्तान गांवों का देश है। यही कारण है कि पहली स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार में गांव से आए बाबू राजेंद्र प्रसाद को कृषि मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में सरकारों ने खेती और किसानों के बारे में फिर उस

( राजेश वर्मा लेखक, बलद्वगाड़ा, मंडी से हैं ) युवा बेरोजगारी भत्ते की नहीं, रोजगार की मांग करता है। युवाओं को बेरोजगारी भत्ते की लत डालने की बजाय स्वरोजगार की तरफ ले जाना चाहिए, ताकि कोई युवा व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर सरकार की तरफ टकटकी लगाए न देखे। वह अपना कार्य शुरू करे।  उन्हें बिना

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ( लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं ) असली सवाल और गहरा है। आखिर जम्मू-कश्मीर सरकार इस बात पर क्यों बजिद है कि 1944 के बाद रियासत में किसी को रहने का अधिकार नहीं है? इसका उत्तर सरकार तो नहीं, लेकिन हुर्रियत कान्फ्रेंस से लेकर नेशनल कान्फ्रेंस तक दे रही है। उनका कहना