हीरा-मोती को लावारिस छोड़ बांध लिया ट्रैक्टर
ऊना — जिला में मक्की की बिजाई का सीजन शुरू है। किसान मक्की बोने में जुट गए हैं, लेकिन आधुनिकता के इस युग में अब खेतों में हीरा और मोती बैलों की जोड़ी कहीं नजर नहीं आती। ग्रामीण स्तर पर भी अब इक्का-दुक्का किसान ही हैं जो बैलों से खेतों को संवारते हैं। अधिकतर किसान ट्रैक्टर या अन्य मशीनरी से ही खेती पर निर्भर हो गए हैं। इसके चलते गांवों से धीरे-धीरे बैलों का अस्तिस्व भी समाप्त होने लगा है। गांव स्तर पर भी बैल अब चित्रों या फिर प्रतिमाओं के रूप में ही दिखाई देते हैं। गोवंश से होने के चलते किसान पहले बैलों से काम लेने के साथ-साथ इनकी देखभाल भी बड़े चाव के साथ करते थे। पशु मंडियों में भी अब बैल सिर्फ चर्चा का विषय बनते हैं। किसान बैलों द्वारा जो कार्य घंटों में करते थे, वह अब मशीनरी के माध्यम से कुछ ही मिनटों में होेने लगे हैं। इससे किसानों के समय की बचत तो हुई साथ ही ज्यादा मेहनत करने से भी छुटकारा मिला। प्राचीन भारत की बात करें तो खेती से लेकर कई घरेलू कार्यों में बैलों का सहारा लिया जाता था। धीरे-धीरे समय बदला भारत ने आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाए, जिससे कृषि में प्रयोग होने वाली विभिन्न आधुनिक मशीनों का उदय हुआ। जिला के अधिकतर गांवों में लोग अब बिजाई के लिए ट्रैक्टर या अन्य मशीनरी का उपयोग करने लगे हैं। मेहनती किसानों तथा हीरा-मोती जैसे बैलों की कहानियां अब महज एक परिकल्पना बनकर रह गई हैं। मशीनीकरण के इस युग से बैलों की अहमियत को कम किया है। बिजाई के अलावा अब घर के किसी भी काम में बैलों की उपयोगिता शून्य है। अब लोग बिजाई का कार्य भी ट्रैक्टरों से करवा रहे हैं। उपयोगिता न होने पर लोग बैलों को सड़कों पर लावारिस घूमने के लिए छोड़ देते हैं, जिससे आवारा पशुओं की संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। बहरहाल कृषि प्रधान देश में कृषि के लिए बहुपयोगी माने जाने वाले बैलों का अस्तित्व अब खतरे में हैं। सरकार को इन्हें बचाने के लिए प्रयास करने चाहिएं।
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