मनरेगा में निजी कृषि कार्य की छूट दो

By: Nov 13th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

वर्तमान में जो मनरेगा में कार्य कराए जा रहे हैं, उनसे किसान को दोहरी चपत पड़ रही है। एक तरफ खेत मजदूर की दिहाड़ी बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ मनरेगा के अंतर्गत व्यर्थ के कार्य कराए जा रहे हैं। जैसे अनुपयुक्त स्थानों पर चेकडैम बनाए जा रहे हैं और वे शीघ्र ही मिट्टी से भर जाते हैं। अथवा सड़क के किनारे मिट्टी उठाकर डाली जाती है, जो एक ही बरसात में वापस कट जाती है। इस प्रकार वर्तमान में मनरेगा से किसान की लागत बढ़ रही है, लेकिन मनरेगा के अंतर्गत किए गए कार्य से उसे लाभ नहीं हो रहा है…

नीति आयोग द्वारा गठित मुख्यमंत्रियों के समूह ने सुझाव दिया है कि मनरेगा के अंतर्गत किसानों को अपनी निजी भूमि पर कृषि कार्य करने की छूट होनी चाहिए। यानी यदि किसान को अपने खेत में निराई करनी है, तो उसके लिए रखे गए खेत मजदूरों की दिहाड़ी मनरेगा द्वारा दी जाए। यह सुझाव सही दिशा में है और सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वर्तमान में किसान दो समस्याओं से एक साथ जूझ रहा है। किसान की आय न्यून है। इसे दोगुना करने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रमुख फसलों के समर्थन मूल्य को उत्पादन लागत से डेढ़ गुना कर दिया जाएगा। इससे किसान की आय में वृद्धि होगी, लेकिन जमीनी हालत यह है कि फूड कारपोरेशन द्वारा उपलब्ध फसल को उठाया नहीं जा रहा है, किसानों को अपनी फसल को बाजार में बेचना पड़ रहा है और बढ़े हुए समर्थन मूल्य का दाम उन्हें नहीं मिल पा रहा है। यदि मान लिया जाए कि फूड कारपोरेशन द्वारा संपूर्ण फसल को उठा लिया जाएगा, तो दूसरी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। किसान को फसल के ऊंचे दाम मिलने से वह उनका उत्पादन बढ़ाएगा। जैसे यदि गेहूं के दाम में वृद्धि होती है, तो किसान गेहूं का उत्पादन ज्यादा करेगा, लेकिन देश में गेहूं की खपत की सीमा है। प्रश्न उठता है कि इस बढ़े हुए उत्पादन का निष्पादन कहां किया जाएगा। इसका एकमात्र उपाय यह है कि इसे निर्यात कर दिया जाए, लेकिन वर्तमान में अपने देश में अधिकतर कृषि फसलों का मूल्य अंतरराष्ट्रीय मूल्यों से ऊंचा है। अर्थात गेहूं के बढ़े हुए उत्पादन को निर्यात करने के लिए निर्यात सबसिडी देनी पड़ेगी। इस प्रक्रिया में सरकार को दोहरी चपत लगेगी। पहले फूड कारपोरेशन को सबसिडी देनी पड़ेगी, जिससे वह बढ़े हुए समर्थन मूल्य पर किसान से फसल को खरीद सके।

उसके बाद फूड कारपोरेशन को दोबारा सबसिडी देनी पड़ेगी कि महंगे खरीदे गए अनाज को अंतरराष्ट्रीय बाजार के सस्ते मूल्यों पर निर्यात कर सके। किसानों की दूसरी समस्या मनरेगा है। इसके अंतर्गत खेत मजदूरों को 100 दिन की मजदूरी सुनिश्चित होती है। इससे किसानों की प्रवृत्ति अपने घर पर रहने की बन रही है। जो किसान पूर्व में उत्तर प्रदेश एवं बिहार से पंजाब व हरियाणा एवं तमिलनाडु से केरल जाते थे,अब वे अपने गांव में ही रहकर मनरेगा की मजदूरी से अपनी जीविका चलाना पसंद कर रहे हैं। इससे पंजाब, हरियाणा और केरल के किसानों को खेत मजदूर कम मिल रहे हैं और उन्हें बढ़ाकर मजदूरी देनी पड़ रही है, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है और उनकी आय कम हो रही है। इन दोनों समस्याओं का एक साथ समाधान हो सकता है, यदि मनरेगा के अंतर्गत निजी कृषि कार्यों को करने की छूट दे दी जाए। जैसे किसान को अपने खेत में निराई करनी है, तो उसमें लगाए गए खेत मजदूर की दिहाड़ी मनरेगा द्वारा दी जाए, ऐसा करने से किसान को अपनी जेब से खेत मजदूर को दिहाड़ी नहीं देनी होगी। उसकी लागत कम होगी और उसकी आय में सहज ही वृद्धि हो जाएगी।

इसके विपरीत वर्तमान में जो मनरेगा में कार्य कराए जा रहे हैं, उनसे किसान को दोहरी चपत पड़ रही है। एक तरफ खेत मजदूर की दिहाड़ी बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ मनरेगा के अंतर्गत व्यर्थ के कार्य कराए जा रहे हैं। जैसे अनुपयुक्त स्थानों पर चैकडैम बनाए जा रहे हैं और वे शीघ्र ही मिट्टी से भर जाते हैं। अथवा सड़क के किनारे मिट्टी उठाकर डाली जाती है, जो एक ही बरसात में वापस कट जाती है। इस प्रकार वर्तमान में मनरेगा से किसान की लागत बढ़ रही है, लेकिन मनरेगा के अंतर्गत किए गए कार्य से उसे लाभ नहीं हो रहा है। इस परिस्थिति में मनरेगा के अंतर्गत निजी कृषि कार्य की छूट दे दी जाए। पहला लाभ यह होगा कि किसान की आय सहज में बढ़ जाएगी। उतने ही गेहूं के उत्पादन के लिए निराई अथवा सिंचाई के लिए जो मजदूरी वह अपनी जेब से देता था, वह अब मनरेगा से दिया जाएगा, उसकी लागत कम हो जाएगी तदानुसार उसकी आय बढ़ जाएगी। विशेष यह कि आय में यह वृद्धि उत्पादन में बिना किसी वृद्धि के हो जाएगी, यानी किसान यदि पहले 10 क्विंटल गेहूं का उत्पादन करता था, तो मनरेगा के अंतर्गत उत्पादन कराने के बाद भी वही पूर्ववत 10 क्विंटल गेहूं ही उत्पादन करेगा, जबकि उसकी लागत कम हो जाएगी। उत्पादन पूर्ववत रहने से सरकार के ऊपर फूड कारपोरेशन को अधिक मात्रा में गेहूं नहीं खरीदना पड़ेगा। न ही सरकार को उस अधिक उत्पादन के निर्यात के लिए सबसिडी देनी पड़ेगी। इस प्रकार मनरेगा के अंतर्गत निजी कार्य कराने से किसान की आय बढ़ेगी, लेकिन सरकार पर निर्यात सबसिडी का बोझ नहीं बढ़ेगा। लाभ यह भी होगा कि देश की ऊर्जा जो इस समय व्यर्थ के कार्यों में, जैसे अनुपयुक्त चैकडैम अथवा सड़क किनारे मिट्टी डालने के कार्य किए जा रहे हैं, वे नहीं किए जाएगे। इसके स्थान पर वही खेत मजदूर खेत में निराई अथवा सिंचाई का कार्य करेंगे। देश की जिस ऊर्जा का क्षय हो रहा है, वह बंद हो जाएगा। चौथा लाभ यह होगा कि मनरेगा के अंतर्गत जो भ्रष्टाचार व्याप्त है, वह कम होगा। वर्तमान में मनरेगा में भ्रष्टाचार व्याप्त होने का कारण यह है कि मुख्यतः सार्वजनिक कार्य ही कराए जाते हैं। जैसे इन सार्वजनिक कार्यों की नाप करने, इन सार्वजनिक कार्यों की स्वीकृति लेने और इनका पेमेंट करने में ग्राम के प्रधान तथा सरकारी कर्मी घूस खाते हैं, लेकिन इसके स्थान पर जब मनरेगा के अंतर्गत निजी कार्य कराए जाएंगे, तो जिस किसान के खेत में यह कार्य कराए जाते हैं, वह इन कार्यों पर निगरानी रखेगा और उसमें भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी। अतः सरकार को मुख्यमंत्रियों के समूह द्वारा दिए गए सुझाव पर सकारात्मक पहल करनी चाहिए और किसानों को निजी कृषि कार्य करने की इसके अंतर्गत छूट देनी चाहिए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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