गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘चिंता’ पर उनके विचार… -गतांक से आगे… लोग इकट्ठे

शरद गुप्ता लेखक, शिमला से हैं फसल उत्पादन के लागत और अनुमानित विक्रय मूल्य पर भी ध्यान देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आज किसान को मात्र तकनीकी प्रशिक्षण की ही आवश्यकता नहीं, अपितु उसके उत्पाद को बेहतर मूल्य कैसे मिल पाएगा, इस पर भी कार्य करने की जरूरत है… किसानो की ऋण माफी को लेकर आजकल चर्चाओं

गतांक से आगे… जिनका चित्त पूर्णतया निर्मल नहीं है, वे मेरे दर्शन के अधिकारी नहीं हैं। यह एक झांकी मैंने तुम्हें कृपा करके इसलिए दिखलाई है कि इसके दर्शन से तुम्हारा चित्त मुझमें लग जाए। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद बन कर मुझे पुनःप्राप्त करोगे। मुझे प्राप्त करने का तुम्हारा यह दृढ़ निश्चय कभी

– स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा वर्ष 2014 के आम चुनावों के ही समय से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन विवादों में घिरी है।  इसके चलते विपक्ष लगातार मत पत्रों के जरिए चुनाव करवाने की मांग कर रहा है। बहरहाल यह कोई व्यावहारिक एवं विवेकपूर्ण समाधान नजर नहीं आता। आज तकनीकी युग में जहां हर देश आगे बढ़

दुर्ग के ऊपर के इस मार्ग के बाहर की तरफ पांच हाथ ऊंची और आठ हाथ चौड़ी दीवार खड़ी थी, जो ठेठ चौक के ऊपर मात्र चार हाथ की थी। इस दीवार की चोटी के ऊपर जगह-जगह छोटी-छोटी देहरियां बनी थीं। इन प्रत्येक देहरी में तीन-तीन रक्षक रह सकें ऐसी व्यवस्था थी। इस प्रकार की

गतांक से आगे… ईश्वर के चरणों में अपना दिल खोलकर रख दो और तब तुम्हें शक्ति, सहायता और अदम्य उत्साह की प्राप्ति होगी। गत दस वर्षों से मैं अपना मूलमंत्र घोषित करता आया हूं। संघर्ष करते रहो और अब भी मैं कहता हूं कि अविराम संघर्ष करते चलो। जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखता

सर्दियों में जोड़ों की समस्या बहुत अधिक बढ़ जाती है। दर्द और जकड़न से अकसर लोग परेशान रहते हैं। जिन लोगों को जोड़ों में दर्द की समस्या होती है, उनके जोड़ों में सूजन और नसों में सिकुड़न आने के कारण सर्दी का मौसम बेहद कष्टदायी बन जाता है। कई बार तो दर्द इतना भयानक होता

श्रीश्री रवि शंकर जन्म से हम जो भाषा का प्रयोग करते है, वही हमारी मातृभाषा है। सभी संस्कार एवं व्यवहार इसी के द्वारा हम पाते हैं। इसी भाषा से हम अपनी संस्कृति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते हैं। भारत वर्ष में हर प्रांत की अलग संस्कृति है, एक अलग पहचान है। उनका

जेन कहानियां जेन गुरु बेंकई के आश्रम में एक पाक-कला निपुण साधक आया। इस साधक का नाम देयरो था। देयरो ने सोचा, अपने गुरु के खाने की देखभाल अब से वह खुद करेगा। देयरो ने सोयाबीन और गेहूं में खमीर उठा कर एक विशेष प्रकार का दलिया तैयार किया। इसको चखते ही बेंकई ने पूछा,

– मनीषा चंद राणा वंदे मातरम कहें या फिर न कहें, राष्ट्रगीत के लिए खडे़ रहें या न खड़े रहें जैसे विषयों पर पूरे वर्ष चर्चाएं चलती रहती हैं, परंतु स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देशवासियों का देशप्रेम उफान पर होता है। सामाजिक संकेत स्थलों पर अपने देशप्रेम का परिचय देने के लिए सेल्फी