पुलिस के लिए जनसेवा का सुअवसर

By: Apr 18th, 2020 12:05 am

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी

जनता चाहती है कि पुलिसमैन सिकंदर की तरह प्रशिक्षित हो, लिंकन की तरह कूटनीतिज्ञ हो, सोलोमन की तरह बुद्धिमान हो, सिंह की तरह सतर्क हो, उफनती नदी में छलांग लगाने वाला हो तथा अपराध होने पर फरिश्ते की तरह मौके पर पहुंचने वाला हो, चाहे भले ही उसका वेतन एक चपड़ासी से भी कम तथा आठ वर्षों तक अस्थायी तौर पर ही नौकरी पर क्यों न रखा गया हो। जिस तरह एक सैनिक युद्धक्षेत्र में जाकर अपना कौशल, धैर्य व बलिष्ठता का परिचय देने के लिए तत्पर रहता है, वैसे ही ‘कोरोना’ जैसी आपदा की घड़ी में पुलिस मैन को अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा, निर्भयता व सत्यनिष्ठा दिखाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है…

जनता को पुलिस से बहुत अपेक्षाएं रहती हैं तथा कोरोना से उत्पन्न हुई विकट परिस्थितियों में इन अपेक्षाओं का बढ़ जाना स्वाभाविक है। पुलिस और जनता का संबंध आपसी व्यवहार  और सहयोग पर आधारित है। यकीनन पुलिस कितना भी अच्छा कार्य कर ले फिर भी उसे संदेह की दृष्टि से ही देखा जाता है। इसके अनेकों कारण हो सकते हैं, परंतु पुलिस को अपनी स्वच्छ छवि को प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न कठिन परिस्थितियों से गुजर कर जनता को एहसास करवाना होगा कि पुलिस जनता की हर सेवा के लिए हमेशा तत्पर है। जनता चाहती है कि पुलिसमैन सिकंदर की तरह प्रशिक्षित हो, लिंकन की तरह कूटनीतिज्ञ हो, सोलोमन की तरह बुद्धिमान हो, सिंह की तरह सतर्क हो, उफनती नदी में छलांग लगाने वाला हो तथा अपराध होने पर फरिश्ते की तरह मौके पर पहुंचने वाला हो चाहे, भले ही उसका वेतन एक चपड़ासी से भी कम तथा आठ वर्षों तक अस्थायी तौर पर ही नौकरी पर क्यों न रखा गया हो। जिस तरह एक सैनिक युद्धक्षेत्र में जाकर अपना कौशल, धैर्य व बलिष्ठता का परिचय देने के लिए तत्पर रहता है, वैसे ही ‘कोरोना’ जैसी आपदा की घड़ी में पुलिस मैन को अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा, निर्भयता व सत्यनिष्ठा दिखाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। इस आपदा की घड़ी में सभी विभागों के कर्मचारियों को छुट्टी पर जाकर अपने घर सुरक्षित रहने का अवसर दिया गया है, जबकि पुलिस कर्मचारियों को दिन- रात अपनी ड्यूटी का निर्वहन करना पड़ रहा है। पुलिसमैन जब घर से ड्यूटी के लिए निकलता है तो उनके छोटे बच्चे अपने पापा व मम्मा ( महिला कर्मचारियों) को बिलखती आवाज में कहते हैं ः पापा- मम्मा बाहर मत जाओ- कोरोना है, मगर पुलिसमैन अपने कर्त्तव्य को निभाने के लिए अपनों की परवाह किए बिना दूसरों की परवाह के लिए घर से निकल रहा है। यहां एक तरफ  वह हर व्यक्ति को सुरक्षित रखने के लिए, हर मोड़ पर छाती ताने खड़ा है, वहीं कुछ बिगड़ैल युवाओं को नियंत्रण में रखने के लिए वह अपने डंडे का प्रयोग भी कर रहा है। यही नहीं वह प्रवासी मजदूरों को उनकी झुग्गी -झोंपडि़यों में जा -जा कर खाने की सामग्री वितरित करता भी दिखाई दे रहा है।  अपनी शपथ में ली गई सेवा, समर्पण, निष्ठा की कसौटी पर खरा उतरने के लिए आज पुलिसमैन इस संकट की घड़ी में अपनी जान की परवाह किए बिना तन मन धन से 24 घंटे अपने कार्य के प्रति दृढ़ता  के साथ अपना उत्तरदायित्व निभा रहा है। वह अंतरमन से अपने संयम व सामर्थ्य के साथ काम कर रहा है, क्योंकि उस पर न तो कोई राजनीतिक दबाव है और न बिना वजह के अन्य वीआईपी ड्यूटी संबंघी किसी प्रकार के झंझट। पुलिसमैन भी एक इनसान है तथा जिन  परिस्थितियों में उसे काम करना होता है उसकी एक झलक आम जनता के सामने लाना भी आवश्यक है। वह चौराहे पर खड़ा होकर केवल ट्रैफिक को ही नियंत्रित  नहीं करता बल्कि यह भी देखता कि कोई किसी महिला को छेड़ न दे। चौराहों से कोई जुलूस निकलता है, तो उसे यह भी देखना है कि कोई दंगा न भड़का दे तथा उसे यह भी देखना है कि किसी मंत्री महोदय की गाड़ी बिना किसी रुकावट के गुजर जाए। उसके कंधों पर चार किलो की बंदूक है तथा जिसे यदि अपराधियों पर चला दी तो नौकरी से डिसमिस भी होना पड़ सकता है। उसका मन भी करता है कि वह थोड़ी देर के लिए विश्राम कर ले मगर ऐसी स्थिति में लोग उसके ढीलेपन का राग अलापना शुरू कर देते हैं। उसका मन भी चाय पीने को करता है तथा यदि वह ऐसा करता है तो लोगों को वह भी गंवारा नहीं होता। पुलिसजनों ने अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा का प्रमाण  हर ़़क्षेत्र में दिया है। इस कोरोना महामारी की घड़ी में अपने कर्त्तव्य निर्वहन में राजस्थान पुलिस के कई कर्मचारी इस वायरस से ग्रस्त हुए हैं, फिर भी पुलिसमैन का मनोबल किसी भी रूप से गिरा नहीं है, अपितु वह दुगने मनोबल से कोरोना रूपी समर में जान हथेली पर लिए सबल, सक्षम होकर अपने धैर्य का परिचय देते हुए कोरोना के लॉकडाउन का अनावश्यक उल्लंघन कर रहे लोगों को कहीं हल्का दंड देकर उनके सुधार और सुरक्षा की मानवीय सीख देता दिखाई पड़ता है। हाल ही में दिल्ली व अन्य शहरों में भारतीय नागरिकता संशोधन से जुड़े मुद्दों पर दंगे हुए जिसमें रत्नलाल व अमित शर्मा जैसे अधिकारियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। वैसे तो पुलिसमैन के लिए हर दिन एक चुनौती का दिन होता है, मगर ऐसी विकट आपदा, चुनौती ही नहीं बल्कि लोगों की सेवा व सहायता के लिए समर्पित रहने व अपनी छवि में सुधार लाने के लिए ऐसे अवसर प्रदान कर रही है। पुलिस को श्री कृष्ण के वंशज माना जाता है तथा ऐसी घड़ी में पुलिस को श्री कृष्ण की तरह ही प्रगाढ़, प्रगल्भ, बलिष्ठ, पुरुषार्थी, प्रज्ञावान, हमराज व हमदर्द बनकर सुबकते व क्रंदन करते हुए पीडि़त व्यक्तियों के लिए  सुकून पहुंचाने का कार्य करना होगा ताकि उनकी धूमिल हुई छवि में सकारात्मक सुधार हो सके।

अमिताभ बच्चन की कही हुई यह पंक्तियां पुलिस के लिए चरितार्थ सिद्ध होती हैंः

तू खुद की खोज में निकल, तू किस लिए हताश है।

तू चल तेरे वजूद की, समय को भी तलाश है।


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