चमचागीरी की धार…

By: Apr 3rd, 2024 12:06 am

देश को खाने में जो मजा पंजीकृत होकर खाने में है, वह इंडिपेंडेंट होकर खाने में कहां! सो उनकी पार्टी की टिकटिया देशसेवकों की पहली लिस्ट निकली। उसमें कायदे से उनका नाम किसी भी हाल में नहीं होना था। सो था भी नहीं। इसलिए वे परेशान भी नहीं हुए। उन्हें पता था कि वे पार्टी प्रमुख की पहली टिकट लिस्ट में होने के लेबल के चमचे नहीं हैं। जो अपनी किचन में उनके लिए ब्रेक फास्ट, लंच, डिनर बनाते हैं, टॉप मोस्ट पार्टी मेंबरों में वही आते हैं। ऐसे में उनका नाम पहली लिस्ट में नहीं आया तो न सही। पहली लिस्ट में अपने नाम के हकदार वे होते हैं जो पार्टी प्रमुख के आगे पीछे दिन रात साए की तरह अपनी पूंछ का चंवर झूलाते हैं। आज का दौर काम का दौर नहीं, सलाम का दौर है। आज वही सिकंदर है जो मुंह आगे और तो पीठ पीछे और है। टिकट देने के हर पार्टी के अपने पैमाने होते हैं, मायने होते हैं, अपने अपने पार्टी प्रमुखीय फायदे होते हैं। वैसे पार्टी प्रमुख जिसे चाहे टिकट दे सकता है। यह उसका एकाधिकार होता है। जिसका टिकट काटना हो वह चाहे कितना भी जिताऊ उम्मीदवार क्यों न हो, उसका टिकट एक झटके में उसी तरह कट जाता है जिस तरह भले चंगे आदमी को एकदम फाइनल हार्ट अटैक पड़ता है और फिर उसे तो उसे, उसके साथ वालों को भी पता नहीं चलता कि यार! जो हो गया, सो हो तो गया, पर ये हो क्या गया? इधर चमचों के सिर में हाथ तो उधर घरवालों के। गिरते पड़ते हॉस्पिटल गए तो डॉक्टर ने उसी तरह सॉरी कह दिया जैसे पार्टी हाईकमान कहती है।

फिर वे टिकट वाली देशसेवा की दूसरी लिस्ट का इंतजार करने लगे, अपने चुनाव क्षेत्र में अपने ढंग से हौले हौले चुनावी माइन्स बिछाते हुए। अपने वोटरों को थोड़ा थोड़ा दाना पानी पाते हुए। अब उनकी और उनके कार्यकताओं की पैनी नजरें दूसरी लिस्ट पर गड़ी हुई थीं। वे आश्वस्त ही नहीं, एक सौ एक प्रतिशत आश्वस्त थे कि टिकटों की दूसरी लिस्ट में तो वे होंगे ही होंगे। अपनी दूसरे लेबल की पार्टी प्रमुख की चमचागीरी पर उन्हें पूरा विश्वास था। फिर पार्टी हाईकमान ने टिकट पर देशसेवा करने वाले देशभक्तों की दूसरी लिस्ट निकाली। ये क्या! उसमें भी उनका नाम नहीं! अब वे परेशान हो गए। उनके कान ही नहीं, अब वे जितने खड़े हो सकते थे, उससे अधिक खड़े हो गए। यार! ये हो क्या रहा है? पांच साल तक हमने भी पार्टी की सेवा की है। बंदों को डरा धमका कर लाखों करोड़ों का चंदा दिलवाया है। किसलिए? इसलिए कि वह पार्टी प्रमुख की नजरों में कम से कम दूसरे दर्जे का तो बना रहे। उन्हें अब देशसेवा की फील्ड में और टिकना मुश्किल लगने लगा। फिर सोचा, पार्टी बदल ली जाए। सुविधा के दौर में राजनीतिक प्रतिबद्धता का क्या काम? जेब में उनके और कुछ रहता था या नहीं, दो चार गिरगिट तो हरदम रहते ही थे। वे हताश होने लगे।

कार्यकर्ता उनके हाथ से फिसलने लगे। वे काम की तलाश में और जगह जाने लगे। उन्हें लगा कि अबके जो वे चुनाव की रैलियों में गरज नहीं पाएंगे, बरस नहीं पाएंगे तो स्वार्थ की फसल पांच से कैसे उगाएंगे? मेघ गरजे, बरसे बिना रह सकते हैं, पर प्रतिबद्ध से लेकर संबद्ध नेता नहीं। वे सिर से पांव तक उदास! अब क्या किया जाए? टिकट दिलाने वाला अमृत कहां से पिया जाए? तीसरी लिस्ट में तो उनका नाम होगा नहीं! सो वे खिन्न, छिन्न, भिन्न! वे उदास बैठे थे, दिल्ली की ओर मुंह किए। पार्टी ने तो उनसे दिल्लगी की ही, पर ज्यों कंबख्त दिल्ली भी उनसे दिल्लगी कर रही हो! अचानक उन्हें गजब का आइडिया आया और उन्होंने प्रेस के नाम बयान जारी किया, ‘हमारे पार्टी प्रमुख, देहधारी नहीं, भगवान के साक्षात् अवतार हैं। जिस तरह भगवान अपनी जनता के कल्याण के लिए अवतार लेते हैं उसी तरह उन्होंने भगवान का कल्याण करने के लिए अवतार लिया है।’ बस, फिर क्या था! उनके इस बयान को देख सुन मीडिया पागल हो गया। सारा प्रिंट मीडिया उनके द्वार तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हाहाकार! मिल गई, ब्रेकिंग मिल गई। इधर उनका बयान ज्यों ही प्रिंट मीडिया के कवर पर लीड बन छपा, खबरिया चैनलों पर आंधी तूफान की तरह उड़ा, उनका नाम पार्टी प्रमुख की क्षमा याचना के साथ देशसेवा करने वाले टिकटिया देशसेवकों की लिस्ट में सबसे ऊपर सजा। बोलो चमचागीरी की जय! चमचागीरी की कोई हद भले ही हो, पर चमचों की कोई हद नहीं होती मेरे प्रभु! अपने चरण मेरी ओर भी बढ़ाओ हे पार्टीनाथ!

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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