भूपिंदर सिंह

हजारों साल पहले भारतीय शोधकर्ताओं ने यौगिक क्रियाओं से होने वाले लाभों को समझ लिया था जो आज की चिकित्सा व खेल विज्ञान में योग का प्रयोग खूब हो रहा है। योग के नियमों का पालन करने के बाद अगर यौगिक क्रियाओं को किया जाता है तो मानव में शारीरिक व मानसिक स्तर पर आश्चर्यजनक

विद्यालय स्तर पर ड्रिल का पीरियड हर कक्षा के लिए अनिवार्य हो तथा उस पीरियड के लिए खेल मैदान भी जरूरी हो जाता है… हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग हर साल करोड़ों रुपए नए खेल मैदानों को बनाने व पुराने मैदानों के रखरखाव के लिए जारी करता है, मगर हकीकत में इस धन

क्या खेल विभाग इन सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण के लिए मंच उपलब्ध नहीं करवा सकता है… किसी भी विभाग में दक्षता तभी आती है जब उस विभाग के कर्मचारी व अधिकारी भी उसी विषय में परांगत हो। खेल जैसे प्रायोगिक विषय में तो खिलाडिय़ों की भागीदारी हर स्तर पर बहुत ही जरूरी हो जाती है,

सही प्रबंधन मिले, इसके लिए नियमित जिला खेल अधिकारियों, उपनिदेशकों, प्रशिक्षकों व अन्य अधिकारियों की नियुक्ति बेहद जरूरी है। खिलाड़ी को तैयार करने में प्रशिक्षक की भूमिका जब बेहद जरूरी है तो फिर हम उसे सामाजिक व आर्थिक रूप से निश्चिंत कर शारीरिक व मानसिक पूरी तरह अपने प्रशिक्षण पर केन्द्रित क्यों नहीं होने देते…

वैसे तो हिमाचल प्रदेश की तरक्की में विभिन्न सरकारों का योगदान रहा है, मगर हिमाचल प्रदेश में पहली बार नई सदी के शुरुआती वर्षों में प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल ढांचे को खड़ा करने की शुरुआत की और आज हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय

साथ ही साथ यहां पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता के पूर्व लगने वाले कोचिंग कैम्प भी अनिवार्य रूप से लगाए जाएं ताकि पहाड़ के लोगों को भी वही सुविधा उपलब्ध हो जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्ट प्रदर्शन किए जा सकें। यह सब तभी संभव है जब सरकार बजट में प्रावधान करे। हर खेल नीति खिलाड़ी व प्रशिक्षक

बात चाहे शिक्षा निदेशालय की हो या किसी भी संस्थान की, अब हिमाचल प्रदेश में उचित मूल्य चुका कर घटिया किस्म का खेल सामान खरीद कर करोड़ों रुपए की बंदरबांट को बंद करके असली खेल सामान खरीद कर खिलाडिय़ों का भला करना होगा… आज के ओलंपिक खेल शौकियान न होकर अब पेशेवर हो गये हैं।

हैंडबाल में स्नेहलता, कुश्ती में जौनी चौधरी सहित और भी कई खेलों में कई सरकारी नौकर जो पूर्व खिलाड़ी रहे हैं, ईमानदारी से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए हुए हैं। क्या सरकार ऐसे जुनूनी-शौकिया प्रशिक्षकों को खेल विभाग में कम से कम पांच वर्षों के लिए प्रतिनियुक्ति पर लाकर या उन्हीं के विभाग में उन्हें खेल प्रबंधन

युवा सेवाएं एवं खेल विभाग पंजीकृत पात्र खिलाडिय़ों को उनका जायज हक दे… वरिष्ठ राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में पदक विजेता बनने के लिए दस वर्षों से भी अधिक समय तक खिलाड़ी को एकाग्रता से कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए वह पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक मोर्चे पर भी पीछे रह जाता है। खिलाडिय़ों

कम से कम बीस मिनटों तक तेज चलने, दौडऩे व शारीरिक क्रियाओं के करने से रक्त वाहिकाओं में रक्त संचार तेज हो जाता है। उससे हर मसल को उपयुक्त मात्रा में प्राणवायु मिलने से उसका समुचित विकास होता है। आज के विद्यार्थी को अगर कल का अच्छा नागरिक बनाना है तो हमें स्कूली पाठ्यक्रम के