कुलभूषण उपमन्यु

गांधी ने प्रकृति के सीमित संसाधनों में बेहतरीन जीवन जीने की कला विकसित करने की बात कही। उनका यह उद्घोष आज पर्यावरण रक्षा के लिए सबसे उत्तम सूत्र वाक्य है, कि प्रकृति के पास सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन हैं, किंतु किसी के लालच की पूर्ति के लिए कुछ भी नहीं

उनके काम को सम्मानजनक बनाने के लिए इसका पूरी तरह मशीनीकरण होना चाहिए। सुरक्षात्मक पहनावा, घर योग्य जमीन देकर गृह निर्माण सहायता और सरकार द्वारा अनुसूचित वर्ग के लिए चलाई जा रही सहायता योजनाओं और सफाई कामगारों के लिए विशेष योजनाओं का लाभ दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए… हमारे देश में सफाई कामगार वर्ग

इस समय विपरीत सुधार वानिकी की जरूरत है। यानी जिन वनों और चरागाहों को जबरदस्ती एकल चीड़ रोपणियों में बदला गया है, उन्हें फिर से मिश्रित वनों और स्वस्थ चरागाहों में बदला जाए। हिमाचल प्रदेश में साठ प्रतिशत से अधिक वन भूमि होने के बावजूद चारे का संकट होने से ही पता चल जाता है

मेरा राजा वीरभद्र सिंह जी से परिचय प्रसिद्ध पर्यावरणविद  सुंदर लाल बहुगुणा जी के माध्यम से हुआ था। अब वे दोनों ही ईश्वर के चरणों में पहुंच चुके हैं। 1983 में जब वे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, उस समय हिमाचल प्रदेश में चिपको आंदोलन की शुरुआत हो रही थी और मैं चिपको सूचना केंद्र

दक्षिणी ध्रुव में तो कई जगह बर्फ  की परत की मोटाई 4.7 कि.मी. तक है। यह सारी बर्फ  यदि पिघल जाए तो समुद्र तल 70 फुट ऊपर उठ जाएगा। तो समुद्र किनारे के देशों और बस्तियों का क्या बनेगा? पर्वतीय ग्लेशियर समाप्त हो जाने पर सदानीरा नदियां मौसमी बन कर रह जाएंगी। इससे नदियों की

आंदोलन के फलस्वरूप हिमाचल में वन नीति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं। प्रदेश में इस तरह पर्यावरण की सोच और सरकारी सोच में महत्त्वपूर्ण बदलाव में बहुगुणा जी की भूमिका हमेशा याद की जाती रहेगी… सुंदरलाल बहुगुणा जी का 21 मई दोपहर 12.05 पर देहावसान हो गया। कोविड से पीडि़त होने के बाद कुछ दिनों

जंगल में अगर फल, चारा, ईंधन, खाद, रेशा और दवाई देने वाले वृक्ष, झाडि़यां और घास लगाए जाएं तो बिना पेड़ काटे लोगों को अच्छी खासी आमदनी पैदा करके दी जा सकती है। अपने आसपास रोजी का साधन पैदा होने से लोगों में आत्मविश्वास की भावना भी बढ़ती है। रोजी पर खतरे का भाव कम

इन झीलों को कम खतरनाक नहीं आंका जा सकता और उत्तराखंड जैसी त्रासदी कहीं और न हो, इसके लिए इन झीलों की सतत निगरानी हो… जलवायु परिवर्तन आज के युग की वास्तविकता बन चुकी है। प्रचलित विकास मॉडल के लिए ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता है और यह जरूरत लगातार बढ़ती ही जा रही है। वही 

गोबर से बायो-गैस बना कर वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में भी आशातीत विकास संभव हो सकता है। बायो-गैस निर्माण को ऊर्जा उद्योग घोषित करके लघु-कुटीर उद्योग के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जिसमें खुद किसान ही उद्योग लगा कर लाभान्वित हो सकता है। बड़े पैमाने पर बायो-गैस निर्माण करके उसे सिलेंडर पैक भी किया जा

सरकार से तो यही अपेक्षा है कि जिला के खाली पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरा जाए, विशेषकर शिक्षा, कृषि, बागवानी, चिकित्सा विभागों में… आकांक्षी जिला चंबा हिमाचल का सबसे पिछड़ा जिला है। हिमाचल में क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा जिला होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। रावी, स्यूहल, चक्की,