डा. वरिंदर भाटिया

निहित सुधारों में ग्रेडेड अकेडमिक, एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल हों। क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएं। वर्चुअल लैब्स विकसित किए जाएं। इसके लिए हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को सक्रिय होना चाहिए। नए कॉलेज शिक्षा फ्रेमवर्क में केवल सैद्धांतिक पहलू को ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक पक्ष पर भी खासा जोर दिया जाए ताकि

हमें अपने देश के स्कूल छात्रों को होलिस्टिक मतलब सम्पूर्ण शिक्षा मुहय्या करवानी है। इससे हमारे छात्र ज्यादा सामाजिक जिम्मेवार और देश हितों के प्रति संवेदनशील बन सकेंगे। इसके लिए बेहतर क्वालिटी की एकेडेमिक्स की भी जरूरत है। यह सब तब हो सकेगा जब हमारे अध्यापक बेहतरीन और अपडेटेड होंगे। टीचर ट्रेनिंग का सिलसिला कई

यह ठीक है कि कुछ निजी विश्वविद्यालय गुड वर्क कर रहे हैं, लेकिन क्या यह सच नहीं कि अनेक प्राइवेट यूनिवर्सिटीज का ध्यान आर्थिक फायदे की तरफ ज्यादा होता है और शिक्षा की गुणवत्ता की अनदेखी की जाती है। छात्रों का आर्थिक और अकादमिक शोषण होता है। मान लें यदि कुछ निजी विश्वविद्यालय इन विसंगतियों

हम तब तक अच्छी व्यवस्था खड़ी नहीं कर पाएंगे जब तक हम वोट का महत्त्व और अपने मतदाता होने के फर्ज को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा नहीं देते हैं। चुनाव प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण समझकर चुनाव के दिन घर में ही रहने का प्रयास न करें, अपितु परिवार के साथ घर से बाहर निकलकर वोट

शिक्षा हमें नैतिकता सिखा कर, हमारे कत्र्तव्यों के बारे में बताकर समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बनाने में हमारी मदद करती है। यह सच है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे प्राप्त करके इनसान अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके, लेकिन शिक्षा का मूल उद्देश्य इनसान को एक

न्याय अभी भी देश के बहुसंख्यक नागरिकों की पहुंच के बाहर है, क्योंकि वे वकीलों के भारी खर्च वहन नहीं कर पाते हैं और उन्हें व्यवस्था की प्रक्रियात्मक जटिलता से होकर गुजरना पड़ता है। भारतीय न्याय तंत्र में विभिन्न स्तरों पर सुधार की दरकार है। यह सुधार न सिर्फ न्यायपालिका के बाहर से, बल्कि न्यायपालिका

ऐसे मरीजों के लिए पुनर्वास का इंतजाम नहीं के बराबर है। याद रहे किसी भी तरह की मानसिक बीमारी साइलेंट किलर साबित होती है। हमें पहचानना होगा कि कहीं हम मानसिक रोगी तो नहीं हैं और इसके प्रति संजीदा होना होगा… 10 अक्तूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को मानसिक

इन महिलाओं ने अपने घरों की जिम्मेदारी (घर के काम और बाहर रोजगार करके) अपने कंधों पर ले रखी है। घर से बाहर निकलकर काम करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। लोगों से मुलाकातें और बातचीत बढ़ी है। पर साथ ही साथ अक्सर एक मजबूरी का भाव, एक सफाई, बाहर काम करने की वजह और

कुछ महत्त्वपूर्ण सडक़ सुरक्षा नियम याद दिलाने जरूरी हैं। सडक़ पर चलने वाले सभी लोगों को अपने बाएं तरफ होकर चलना चाहिए, खास तौर से चालक को और दूसरी तरफ से आ रहे वाहन को जाने देना चाहिए। चालक को सडक़ पर गाड़ी घुमाते समय गति धीमी रखनी चाहिए। अधिक व्यस्त सडक़ों और रोड जंक्शन

कुल मिला कर ‘ई-समाधान’ यूजीसी की एक शानदार पहल है। इससे हमारे छात्रों को एक राहत नजर आ रही है, लेकिन इसके अलावा भी उच्च शिक्षा की अन्य समस्याओं के हल पर नजरसानी की जरूरत है। हम इस बात को यकीनी बनाएं कि छात्रों के लिए, खास तौर पर हमारी महिला छात्रों के लिए उच्च