कुलभूषण उपमन्यु

ज्यादातर सरकारी नौकरियां अनुत्पादक प्रबंधात्मक होती हैं। इन्हें ज्यादा बढ़ाने से राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि की संभावना कम होती है। सरकारी नौकरी के पीछे एक बड़ा आकर्षण यह भी है कि परिणाम का असर कर्मचारी के वेतन पर नहीं पड़ता और नौकरी से निकाले जाने का खतरा भी नहीं होता। इस स्थिति में निजी रोजगार

इस समय गैस उत्सर्जन में चीन पहले, अमेरिका दूसरे तथा भारत तीसरे स्थान पर बना हुआ है। इन पर ही इस त्रासदी से निपटने के प्रयासों की सफलता निर्भर है… वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए खतरों से दुनिया परिचित हो चुकी है। आज यह कोई वैज्ञानिक भविष्यवाणी मात्र न रह कर एक

पंजाब की कांग्रेस सरकार ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर ही दी कि लाल किला ग्रुप के एक्शन में फंसे हुए व्यक्तियों को दो-दो लाख रुपए की सहायता पंजाब सरकार के बजट में से दी जाएगी। यह कुछ-कुछ उसी प्रकार का निर्णय है जिस प्रकार कभी ज़ामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति ने निर्णय किया

गांधी ने प्रकृति के सीमित संसाधनों में बेहतरीन जीवन जीने की कला विकसित करने की बात कही। उनका यह उद्घोष आज पर्यावरण रक्षा के लिए सबसे उत्तम सूत्र वाक्य है, कि प्रकृति के पास सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन हैं, किंतु किसी के लालच की पूर्ति के लिए कुछ भी नहीं

उनके काम को सम्मानजनक बनाने के लिए इसका पूरी तरह मशीनीकरण होना चाहिए। सुरक्षात्मक पहनावा, घर योग्य जमीन देकर गृह निर्माण सहायता और सरकार द्वारा अनुसूचित वर्ग के लिए चलाई जा रही सहायता योजनाओं और सफाई कामगारों के लिए विशेष योजनाओं का लाभ दिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए… हमारे देश में सफाई कामगार वर्ग

मेरा राजा वीरभद्र सिंह जी से परिचय प्रसिद्ध पर्यावरणविद  सुंदर लाल बहुगुणा जी के माध्यम से हुआ था। अब वे दोनों ही ईश्वर के चरणों में पहुंच चुके हैं। 1983 में जब वे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, उस समय हिमाचल प्रदेश में चिपको आंदोलन की शुरुआत हो रही थी और मैं चिपको सूचना केंद्र

दक्षिणी ध्रुव में तो कई जगह बर्फ  की परत की मोटाई 4.7 कि.मी. तक है। यह सारी बर्फ  यदि पिघल जाए तो समुद्र तल 70 फुट ऊपर उठ जाएगा। तो समुद्र किनारे के देशों और बस्तियों का क्या बनेगा? पर्वतीय ग्लेशियर समाप्त हो जाने पर सदानीरा नदियां मौसमी बन कर रह जाएंगी। इससे नदियों की

आंदोलन के फलस्वरूप हिमाचल में वन नीति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं। प्रदेश में इस तरह पर्यावरण की सोच और सरकारी सोच में महत्त्वपूर्ण बदलाव में बहुगुणा जी की भूमिका हमेशा याद की जाती रहेगी… सुंदरलाल बहुगुणा जी का 21 मई दोपहर 12.05 पर देहावसान हो गया। कोविड से पीडि़त होने के बाद कुछ दिनों

जंगल में अगर फल, चारा, ईंधन, खाद, रेशा और दवाई देने वाले वृक्ष, झाडि़यां और घास लगाए जाएं तो बिना पेड़ काटे लोगों को अच्छी खासी आमदनी पैदा करके दी जा सकती है। अपने आसपास रोजी का साधन पैदा होने से लोगों में आत्मविश्वास की भावना भी बढ़ती है। रोजी पर खतरे का भाव कम