भरत झुनझुनवाला

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं जीएसटी के साथ-साथ केंद्र की मोदी सरकार की कर्मठता के अर्थव्यवस्था पर दो परस्पर विरोधी प्रभाव होंगे। जीएसटी लागू होने से अंतरराज्यीय व्यापार सरल हो जाएगा। सर्विस टैक्स का क्रेडिट लिया जा सकेगा। इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। लेकिन कागजी कार्यों की वृद्धि के कारण यह

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं बड़े उद्योगों का बाजार बढ़ने से इनके शेयर उछल रहे हैं। यदि बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादन में पांच प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। तो छोटे उद्योगों द्वारा 20 प्रतिशत की कटौती हो रही है। समग्र अर्थव्यवस्था पस्त है। दूसरी तरफ वर्तमान सरकार कर्मठ है। रेलवे,

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं सोच है कि सृष्टि में जो भी है वह ब्रह्म ही है। ब्रह्म के अलावा कुछ नही है। तब दलित और मुसलमान भी ब्रह्म ही हुए। इन्हें चिन्हित करके इन पर प्रहार करके हम अपनी व्यापकता को त्याग कर और गहरे और संकीर्ण गड्ढे में जा

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं कोलंबिया, पेरू तथा जापान में भी आम आदमी पर इसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके विपरीत वियतनाम, इथोपिया एवं पाकिस्तान में जीएसटी का आम आदमी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इन देशों में आम आदमी द्वारा खपत किए जाने वाले माल पर टैक्स की

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं कृषि विषयों के जानकार देवेंदर शर्मा के अनुसार 1970 से 2015 के बीच खाद्यान्न के समर्थन मूल्य मे 20 गुना वृद्धि हुई है। इसी अवधि मे सरकारी कर्मियों के वेतन मे 120 गुणा वृद्धि हुई है। अतः किसानों की आय में वृद्धि अवश्य हो रही है,

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं कर्मठ एवं ईमानदार होने के बावजूद नोटबंदी से उद्यमी और उपभोक्ता दोनों ही सहम गए हैं। वे कछुए की तरह दुबक गए है। उन्हें पुनः विश्वास में लेना चाहिए। मूल चोर व्यापारी नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र है जो चोरी पर नियंत्रण करने के स्थान पर इस

डा. भरत झुनझुनवाला (लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं) शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन करने के दो स्तर हैं-रटंत विद्या एवं समझ। देखा जाता है कि कक्षा में सर्वश्रेष्ठ अंक पाने वाले छात्र अकसर जीवन में पीछे  रह जाते है। एक सर्वश्रेष्ठ अंक पाने वाला बैंक में क्लर्क के पद पर ही पहुंच सका। दूसरा

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं अब देश में स्वतंत्र नियामकों की संस्कृति स्थापित हो गई है। जैसे दूरसंचार क्षेत्र के नियामक ने निजी टेलीफोन कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा स्थापित करके मोबाइल फोन काल के दाम वैश्विक न्यून स्तर पर लाने में सफलता हासिल की है। इस प्रकार सार्वजनिक इकाइयों पर सरकारी

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं ब्याज दर सकारात्मक होने से रिजर्व बैंक पर बोझ बढ़ेगा। असंगठित क्षेत्र दबाव में आएगा। इसी में अधिकतर रोजगार बनते हैं। टैक्स कर्मियों का भ्रष्टाचार बढ़ेगा, जैसे बैंक कर्मियों का नोटबंदी के दौरान देखा गया। हमारे नागरिक सोने की खरीद अधिक करेंगे। यह रकम देश के