मैगजीन

मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है जिसकी पूरे भारत में बहुत मान्यता है। यह त्योहार कमोबेश बदलावों के साथ पूरे देश में मनाया जाता है। मकर संक्रांति की तिथि से सूर्य उत्तरायण होना प्रारंभ करते हैं। उत्तरायणी गति प्रारंभ होने के बाद से शुभ पर्व प्रारंभ हो जाते हैं… मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है

-गतांक से आगे… त्रिपुरा परमेशानी सुंदरी पुर-सुंदरी। त्रिपुरेशी पञ्च-दशी पञ्चमी पुर-वासिनी।। 98।। महा-सप्त-दशी चैव षोडशी त्रिपुरेश्वरी। महांकुश-स्वरूपा च महा-चव्रेश्वरी तथा।। 99।। नव-चव्रेसश्वरी चक्र-ईश्वरी त्रिपुर-मालिनी। राज-राजेश्वरी धीरा महा-त्रिपुर-सुंदरी।। 100।। सिंदूर-पूर-रुचिरा श्रीमत्त्रिपुर-सुंदरी। सर्वांग-सुंदरी रक्ता रक्त-वस्त्रोत्तरीयिणी।। 101।। जवा-यावक-सिंदूर -रक्त-चंदन-धारिणी। त्रिकूटस्था पञ्च-कूटा सर्व-वूट-शरीरिणी।। 102।। चामरी बाल-कुटिल-निर्मल-श्याम-केशिनी। वङ्का-मौक्तिक-रत्नाढ्या-किरीट-मुकुटोज्ज्वला।। 103।। रत्न-कुंडल-संसक्त-स्फुरद्-गण्ड-मनोरमा। कुञ्जरेश्वर-कुंभोत्थ-मुक्ता-रञ्जित-नासिका।। 104।। मुक्ता-विद्रुम-माणिक्य-हाराढ्य-स्तन-मण्डला। सूर्य-कांतेंदु-कांताढ्य-कांता-कंठ-भूषणा।। 105।। वीजपूर-स्फुरद्-वीज-दंत-पंक्तिरनुत्तमा। काम-कोदंडकाभुग्न-भ्रू-कटाक्ष-प्रवर्षिणी।। 106।। मातंग-कुंभ-वक्षोजा लसत्कोक-नदेक्षणा।

बज्रेश्वरी मंदिर यह परंपरा देवीय काल से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी के इतिहास से संबंधित है। कहते हैं कि जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर कई चोटें लगी थीं। इन्हीं घावों को भरने के लिए देवताओं ने माता के शरीर पर घृत (मक्खन)का लेप किया था। इसी परंपरा

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महादेव घाट पर हटकेश्वर महादेव का चामत्कारिक मंदिर है। खारुन नदी के तट पर स्थित महादेव मंदिर के पीछे त्रेता युग की एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। जिसके चलते यहां देशभर ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर खारुन नदी के तट पर

*           अगर आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी है, तो यह दुनिया डरावनी नजर आती है *           बहुत से गुणों के होने के बावजूद  सिर्फ एक दोष सब कुछ नष्ट कर सकता है *           अगर लगने लगे कि लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा, तो लक्ष्य को नहीं अपने प्रयासों को बदलें *           समृद्धि दोस्ती कराती है,

श्री मैत्रेयजी ने कहा, हे गुरु! हे भगवन! सृष्टि विषयक मेरे प्रश्न की उत्तर आपने मुझे भले प्रकार बता दी। हे मुनिवर! आपने जो विश्व-रचना विषयक प्रथम अंश कहा है, उनमें एक बात और जानने की इच्छा है। स्वयंभूव मनु के प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो पुत्रों में से उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव का वृत्तांत

बाबा हरदेव गगन मंडल यानी शून्य आकश में गाय ने जन्म लिया और कागज (शास्त्रों) में इस बियाई हुई गाय के दही को जमाया गया। मानो इसी से वेद, इसी से कुरान, इसी से शास्त्र और ग्रंथ बनते हैं, लेकिन ये घटना घटी है, शून्य में और ये जो तथाकथित धार्मिक व्यक्ति है, वो इस

स्वामी रामस्वरूप अर्जुन ऐसे अलौकिक ज्ञान को सुनने का अधिकारी था और जैसे ही उसने यह ज्ञान सुना तो उसे ज्ञान हो गया और ईश्वर प्राप्ति के शाब्दिक ज्ञान को पाकर महाभारत युद्ध के पश्चात अर्जुन ने उस ज्ञान को आचरण में लाकर तप किया था… हम इस वैदिक ज्ञान पर विचार करें कि चारों