संपादकीय

नई सरकार और नई लोकसभा बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एक सकारात्मक आह्वान किया है कि अब पक्ष और विपक्ष को छोड़ दें और निष्पक्ष भाव से जन-कल्याण के लिए काम करें। प्रधानमंत्री ने सक्रिय और सशक्त विपक्ष को लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त माना है और विपक्ष को सुझाव दिया है कि नंबर की

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन के सामने बुखार से तपती और तड़पती पांच साल की बच्ची की मौत हो गई। मंत्री और साथ में मौजूद अफसर स्तब्ध रह गए। चीत्कार मच गया। हास्यास्पद् है कि उसे चुप कराने की बेजा कोशिशें की गईं। यह बिहार में बच्चों के स्वास्थ्य का नंगा सच है। यह सच

जनमंच के कसीदों के बीच दो प्रतिक्रियाएं काफी अहमियत रखती हैं और समझने के लिए यह काफी है कि कोटली में मंत्री से विधायक की हैसियत में लौटे अनिल शर्मा के सामने हारती विरासत और मुखर होती सियासत है। इसी तरह किन्नौर की पलकें खोलने के बजाय विधायक जगत सिंह नेगी बनाम शहरी विकास मंत्री

हिमाचल सरकार की डेढ़ साल की गणना में अब राजनीतिक इच्छाशक्ति का तकाजा घूरने लगा है और अगर योजना-परियोजनाओं को नजदीक से देखें, तो तस्वीर का बांकापन अभी अपने फ्रेम ही तय नहीं कर पाया। बेशक पूर्व कांग्रेस काल की गड़बडि़यों के जिक्र बड़े और जांच चौड़ी होती जा रही है। छात्रवृत्ति घोटाले से लेकर

बंगाल में डाक्टरों की हड़ताल खत्म भी हो सकती है, लेकिन यह आलेख लिखे जाने तक हड़ताल जारी थी। गौरतलब यह भी है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी सोमवार को देशव्यापी हड़ताल का अपना आह्वान वापस नहीं लिया है। हालांकि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कुछ नरम पड़ी हैं और मांगें मानने का

हिमाचल में निवेशकों को आकर्षित करने के पैगाम के साथ मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का विदेश दौरा पूरी प्रक्रिया का अहम पड़ाव साबित हो सकता है और इसीलिए सरकार ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। हम इसकी उपलब्धियों का खुलासा वर्षों बाद कर सकते हैं, लेकिन इस समय इच्छाशक्ति का प्रदर्शन स्पष्ट और मजबूत

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-पाक के प्रधानमंत्री मौजूद थे, लेकिन न तो वे रू-ब-रू हुए, नजरें तक नहीं मिलाईं, न ही आपस में हाथ मिलाए और बातचीत करना तो बहुत दूर की बात थी। प्रधानमंत्री मोदी और वजीर-ए-आजम इमरान खान एक ही समय में रात्रि भोज की मेज तक पहुंचे।

हिमाचल को देखने का एक नजरिया इन दिनों उस सफलता से मुखातिब है, जो भविष्य के करियर में ढलते बच्चों को देख रहा है। इंजीनियरिंग के बाद डाक्टरी की पढ़ाई का चिट्ठा जब खुलता है, तो सीढि़यों पर बैठे अनेक हिमाचली बच्चे मुस्कराते मिलेंगे। सफलता की कहानियों के बीच कई रहस्य और प्रश्न हैं, तो

मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय है। 2006 से पहले यह मंत्रालय नहीं होता था। मौजूदा सरकार ने अल्पसंख्यकों की शिक्षा, रोजगार, सशक्तिकरण के जरिए विकास की योजना तैयार की है। हमने बीते दिनों विश्लेषण किया था कि अब प्रधानमंत्री मोदी ‘भाईजान’ क्यों बनना चाहते हैं। तभी जिक्र किया था कि अल्पसंख्यक नौजवानों को