संपादकीय

क्या बंदर अब भी जंगल की अमानत है या इससे इनसान का मुकाबला नहीं है, फिर भी मनुष्य के अस्तित्व के प्रश्न पर मानवता हावी रहती है। वन्य प्राणी सुरक्षा कानून ने बंदर को ऐसी प्रजाति तो नहीं माना कि इसकी ओर घातक निगाह से न देखा जाए, फिर भी बंदिश यह है कि जंगल के भीतर इससे अमंगल न किया जाए। इस बार सवाल उत्पाती बंदर को मारने की अनुमति का है, तो जिक्र हिमाचल की आबादी के सामने इससे जुड़े

मंगलवार, 3 अक्तूबर, की दोपहर में अचानक धरती कांप उठी और हम लडख़ड़ा कर गिरते-गिरते बचे। तुरंत एहसास हो गया कि यह भूकंप का झटका था। सभी अपना काम यथावत छोड़ कर घर-दफ्तर के बाहर निकल गए, लेकिन उस दिन पृथ्वी के भीतर ऐसी हलचलें हुईं कि आधा घंटे के अंतराल पर दो भूकंप आए। बाद वाले भूकंप की तीव्रता 6.2 मापी गई। नेपाल का हिमालयीय क्षेत्र भूकंप का केंद्र था, लेकिन राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों ने कंपन और धक्के महसूस किए। भूकंप की यह तीव्रता भी खतरनाक और घातक है। ईश्वर की कृपा रही कि कहीं से जान-माल की त्रासद खबरें नहीं आईं। कुछ लोग नेपाल में घायल हुए हैं और एक पुराने भवन की दीवार ढही है। बहरहाल भूकंप विशेषज्ञ बा

मंडल आयोग की सिफारिशों के 33 साल बाद ‘जातीय राजनीति’ का एक और दौर शुरू हुआ है। बिहार सरकार ने जातीय सर्वेक्षण के आंकड़े जारी कर ओबीसी और अति पिछड़ों के आरक्षण पर एक नई बहस छेड़ दी है। भारत सरकार ने 2021 की राष्ट्रीय जनगणना अभी तक नहीं कराई है। नतीजतन डाटा का जो ‘अधिकृत शून्य’ देश के सामने है, उसे राज्यों के ‘जातीय सर्वे’ नहीं भर सकते। बिहार के अलावा महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा और राजस्थान आदि राज्यों ने भी ऐसे सर्वे कराए हैं। ओडिशा ने पिछड़ी जातियों का आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण जारी भी कर दिया है। यदि जातीय सर्वे जारी ही नहीं किए गए और उनके मुताबिक पिछड़ी जातियों के विकास को न्याय नहीं दिया जा सका, तो फिर सर्वे बेमानी है। जातीय आरक्षण की अधिकतम सीमा निर्धा

सियासत में कभी जंग नहीं लगता, फिर भी यह मंच स्थायी शांति का आश्वासन नहीं। सियासत देश के समीकरणों में हिमाचल के लिए भी अवसर देती है, तो मौके की तलाश में सीढिय़ां घूमने लगती हैं। ऐसे में प्रश्न यह कि क्या हिमाचल भाजपा में शांति है या अनुशासन की नई परिपाटी में कांग्रेस के भीतरी मतभेद खत्म हो गए। भाजपा को देखने के लिए विपक्ष में उसकी पारी हिमाचल में करतब दिखा रही है, तो केंद्रीय सत्ता के जरिए उसका नया मुकाम असमंजस से लड़ रहा है। हिमाचल में सत्ता के बनते-बिगड़ते फलक पर एक बार फिर कांगड़ा, हाथ-मुंह धो रहा है। न शगुन भाजपा को मिल रहा है और न ही कांग्रेस की सत्ता का नशा यहां की उदासी पर चढ़ रहा है। यह राजनीति का स्थायी अत्याचार है, जो इस जिला को हिमाचल में स्थापित नहीं

खेलों में ‘गुदड़ी के लाल’ भी देश के नायक, योद्धा होते हैं। वे भी देश और उसकी प्रतिष्ठा के लिए खेलते हैं। वे ज्यादातर सामान्य परिवारों से आते हैं, लिहाजा देश की मिट्टी और जिंदगी की मुश्किलों से उठकर वे ‘चैम्पियन’ और ‘पदकवीर’ बनते हैं। देश उनका भी आभारी है और झुककर साधुवाद देता है। हांगझाउ, चीन में जारी एशियाई गेम्स, 2022 में भारत के कई ‘गुदड़ी के लाल’ उभर क

क्रिकेट के विश्व कप में हिमाचल के पांव कितना चलते हैं, यह देखने भले ही पर्यटक धर्मशाला के पांच मैचों की फेहरिस्त में मनोरंजन खोजने आ रहे हैं, लेकिन हिमाचल का पर्यटन इससे क्या हासिल करना चाहता है। यह तैयारियों की लेटलतीफी और पर्यटन नेतृत्व की कमजोरी मानी जाएगी कि जब सुक्खू सरकार कांगड़ा को टूरिस्ट कैपिटल का तमगा पहना रही है, तो यह इवेंट यूं ही कहीं संभावनाओं के किनारों से न गुजर जाए। वल्र्ड कप के एक साथ पांच मैचों का आयोजन प्रदेश के पर्यटन ध्रुव पर उम्मीदों का सवेरा क

महाकाल ज्योतिर्लिंग, महादेव और मंदिरों के शहर उज्जैन में 12 वर्षीय नाबालिग कन्या के साथ न केवल क्रूर बलात्कार किया गया, बल्कि उसे घायल कर लावारिस छोड़ दिया गया। उस बच्ची की रक्षा करने न तो कोई दैवीय करिश्मा हुआ और न ही किसी नागरिक ने उसकी पीड़ा साझा कर मदद करने की कोशिश की। उसे अस्पताल तक पहुंचाने की इनसानियत भी नदारद रही। बच्ची रोती-बिलखती, दर-दर गुहार करती रही, लेकिन उस कथित पवित्र शहर का असली चेहरा लगातार बेनकाब होता रहा। इतनी बेरुखी, संवेदनहीनता, तटस्थता सामने आती रही कि एक जिंदगी मर रही है, लेकिन घरों के दरवाजे बंद हैं! यही घोर कलियुग है। यह हमारे समाज और देश में

अंतत: हिमाचल सरकार ने अपने सीमित संसाधनों को निचोड़ कर आपदा राहत की चादर बिछाई है। वित्तीय मदद की एक नई परिपाटी खड़ी करके सुक्खू सरकार ने कुल 4500 करोड़ का आपदा राहत पैकेज बनाया है, जिसमें से सरकार 3500 करोड़ अपने संसाधनों से, जबकि 1000 करोड़ मनरेगा के तहत खर्च करेगी। आइंदा साधारण नुकसान की वित्तीय मदद के लिए भी एक लाख तक का प्रावधान हो रहा है, जबकि पूरी तरह क्षतिग्रस्त इमारतों को सरकार सात लाख तक का राहत प्रबंध कर रही है। सात जुलाई से तीस सितंबर के दौरान क्षतिग्रस्त मकानों, दुकानों या अन्य संपत्तियों को यह धन उपलब्ध होगा। इससे प

पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार और स्वरोजगार की असीमित संभावना को अगर अंगीकार करें, तो प्रदेश की कर्मचारी राजनीति बदल जाएगी और हर छात्र का नजरिया भी। प्रदेश की तालीम में एक व्यापक परिवर्तन की जरूरत है और यह तब पूरी होगी जब राजनीतिक मंच सरकारी नौकरियों के प्रचार-प्रसार के बजाय स्वरोजगार का शृंगार करने की वजह बनेगा। प्रदेश सरकार अगर पांच करोड़ पर्यट