संपादकीय

हिमाचल सरकार की शिकायत पर ‘पानी में दरार’ ढूंढने आया केंद्रीय दल। भारी बरसात में इस बार बड़े-बड़े बांधों ने अपनी करतूत को इस कद्र घातक बनाया कि जख्म लिए हिमाचल की तस्वीर बता रही हुए हैं गुनाह कैसे-कैसे। पौंग व पंडोह डैम के अलावा मलाणा-2 तथा पार्वती-3 विद्युत परियोजना के बांधों में बरती गई कोताही ने परेशानियां ही नहीं बढ़ाई, बल्कि हिमाचल में आई आपदा को विकरालता का सबब बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हैरानी यह कि केवल दो परियोजनाओं कोल बांध व नाथपा झाकड़ी परियोजना में ही अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया गया था, जबकि अन्य स्थानों पर ऐसे निर्देश का पालन नहीं हुआ। बांध सुरक्षा में अपनाई गई लापरवाही ने सैंज बाजार को ही निगल लिया, जबकि पौंग बांध से बिना तैयारी छोड़े गए पानी ने मंड क्षेत्र में तबाही मचा दी थी। मंडी शहर के डूबते मंदिरों तक आ पहुंचा नदी का उफान बताता रहा कि

आज हम एक सामाजिक और मनोविकारी समस्या का विश्लेषण करेंगे, जो हमारी युवा पीढ़ी को खोखला कर रही है। अमरीका के 50 राज्यों में से 42 की राज्य सरकारों ने फेसबुक, व्हाट्स एप और इंस्टाग्राम की कंपनी ‘मेटा’ के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज किया है। सोशल मीडिया के ये मंच वहां की युवा पीढ़ी को ‘बीमार’ कर रहे हैं और गुस्सैल बना रहे हैं। नतीजतन यह पीढ़ी पढ़ाई-लिखाई, कारोबार या करियर, सामाजिक-पारिवारिक जिम्मेदारियां भूलती जा रही है और हमलावर बनकर नकारापन की ओर अग्रसर है। यदि भारत के संदर्भ में आकलन करें, तो हमारी नौजवान पीढ़ी भी मोबाइल की आदी हो गई है। उसे अलग-अलग एप्स पर दुनिया भर के वीडियो, रील्स देखते रहने की लत लग गई है। भारत में करी

मौत ने फिर मापा शिक्षा का सदन, हाथों में किताब लिए नशा था मगन। अब तो प्रतिष्ठित संस्थानों के आंगन में चिता जलने लगी, वहां मेरा बेटा पढ़ रहा था नशा। जो छात्र एनआईटी हमीरपुर में आया था, जाहिर है उसका भविष्य ही उसे लाया था, लेकिन सुराग बताते हैं कि कितने सुराख हैं नशे को बुलाने के लिए। इस घटना के बाद सहमा कौन और किसने नैतिक जिम्मेदारी मानी। अलबत्ता संस्थान ने इस आपराधिक गलती के लिए कुछ सूलियां चुनीं और उन पर अग

हिमाचल कर्मचारियों के हितों का मक्का है और इसीलिए प्रदेश के संसाधन इस वर्ग को पूजनीय-वंदनीय बना देते हैं। कमोबेश हर सरकार को अपने संसाधनों से इसी प्रक्रिया में खुद को अव्वल साबित करने के लिए सामग्री जुटानी पड़ती है। राज्य ने कर्मचारी मुद्दों को इतनी तरजीह दे डाली है कि अब राजनीति के डाली-डाली इनके प्रति झुकी रहती है। ओल्ड पेंशन की गोल्ड माइन खोल कर सत्ता में आई कांग्रेस अब प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के रास्ते कर्मचारी वर्ग के अधिकारों को

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने सिफारिश की है कि पाठ्यक्रमों में ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए। फिलहाल यह एक समिति की सोच और अनुशंसा तक ही सीमित है। संविधान के अनुच्छेद एक में ‘इंडिया, जो भारत है’ का उल्लेख है। अर्थात हमारे संविधान-निर्माताओं को दोनों ही शब्द स्वीकार्य थे और उन्हें परस्पर पूरक माना गया था। आजादी के 76 साल बाद भी एक व

सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और देश की सीमाओं के प्रहरी सैनिक अब ‘रथ-प्रभारी’ भी बनेंगे। वे मोदी सरकार, अर्थात भारत सरकार, के नौ साल की उपलब्धियों, सरकारी परियोजनाओं, का बखान करेंगे तथा जन-जन तक पहुंचाने के लिए गुणगान करेंगे। अब सरकार के ‘लोकसेवक’ भी मोदी सरकार के प्रवक्ता बनेंगे। वे ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ के रथी होंगे और सरकारी कार्यक्रमों का ग्रासरूट तक प्रचार करने के प्रयास करेंगे। भारत सरकार के स्तर पर कदाचित यह पहली बार कराया जा रहा है। इस संदर्भ में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग और रक्षा मंत्रालय ने सर्कुलर जारी कर सरकारी कर्मचारियों और नौकरशाहों को निर्देश दिए हैं। मोदी सरकार का यह फैसला राजनीतिक विवाद बन

आसान धन कमाने की चाहत ने क्रिप्टो करेंसी के अवतार में जिस तरह के अपराध को जन्म दिया है, उसके अनुमान-अनुपात में हिमाचल का दलदल देखा जा सकता है। ठगों के गिरोह अपने हैं या अपराध की गिरफ्त में युवाओं का नेटवर्क इतना प्रभावशाली हो गया कि राज्य में करोड़ों की लूट की तहें शर्मिंदा हैं। आमदनी का जरिया और न•ारिया साबित करता है कि क्रिप्टो करेंसी को धन की महबूबा बनाने वालों ने, हिमाचल के खास वर्ग को अपने मोहपाश में लपेट लिया। धन है तो नए निवेश की तलाश में, हिमाचली भी तत्पर हैं कि दिल की आरजू में सोने के महल बना लिए जाएं। निवेश का कतरा-कतरा

चारों ओर मार-काट मची है। बम, मिसाइलों और बारूद की अन्य किस्मों से विध्वंस किए जा रहे हैं। हररोज, हर पल अनेक नरसंहार भी किए जा रहे हैं। दुनिया का एक हिस्सा खंडहर और मलबा हो चुका है। ये किसी बुराई के खिलाफ अच्छाई अथवा असत्य पर सत्य की जीत के युद्ध नहीं हैं। साबित किया जा रहा है कि मानव विभिन्न हथियारों के सामने कितना बौना, असहाय और असमर्थ है! मानवता और इनसानियत के मूल्य गायब हैं। ल

क्योंकि यह हिमाचल के धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम में हुआ, इसलिए प्रकृति के विहंगम दृश्यों का समावेश वल्र्ड मैचों की शृंखला का शृंगार बढ़ा गया। खास तौर पर जब बादलों की एक टोली स्टेडियम में आई और मैच की निगाहों में वो फलसफा बन गए जो जानते नहीं थे कि यहां तो कृत्रिम प्रकाश में भी खलल पड़ जाएगा। एक अच्छी क्रिकेट रविवार की दोपहरी में उगी और शाम से रात आते-आते पर्यटन की नजरों में समा गई। बेशक अच्छी क्रिकेट