संपादकीय

जब हिमाचल के चुनाव परिणाम आएंगे तो सत्ता रंग के बजाय नेता का ढंग भी देखा जाएगा। चुनाव परिसीमा के भीतर और बाहर भाजपा की प्रचार सामग्री में दर्ज चेहरे या दर्जनों चेहरों का नूर बता रहा है कि करवटें कहीं न कहीं चिन्हित हो रही हैं। ऐसे में पार्टियों की जीत के बावजूद मुख्यमंत्री

गुजरात चुनाव ने एक नई करवट ली है। बगदादी के आईएसआईएस आतंकी संगठन के एक आतंकी के कांग्रेस के कथित ‘चाणक्य’ अहमद पटेल के साथ संपर्कों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। जिस ‘सरदार पटेल अस्पताल’ के साथ अहमद पटेल का 1979 से सीधा संबंध रहा है, उसमें आतंकी कासिम टिंबरवाला कैसे कर्मचारी बना? उसका

जीत-हार की दीवारों पर लगे पोस्टर बता रहे हैं कि हिमाचल में बागियों की फेहरिस्त मिटाने में भाजपा-कांग्रेस को खासी सफलता नहीं मिली है। पार्टियों के भीतर आक्रोश का बारूद बिखरा है, तो जीत के अनुमान भी बिखरेंगे। वास्तव में इस बार मतदाता से कहीं अधिक नेताओं की बारात निकली है और जहां सियासत केवल

प्रधानमंत्री मोदी ने भरोसा दिलाया है कि जीएसटी से आने वाले दिनों में गरीब, मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं को फायदा होगा। महंगाई भी कम हुई है, लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का आरोप है कि जीएसटी और नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को आईसीयू में पहुंचा दिया है। तीसरा पक्ष अर्थशास्त्रियों का है।

चुनाव के बीच धर्मशाला फिल्म फेस्टिवल का आयोजन अपनी भूमिका तराश रहा है, फिर भी इस काफिले का जिक्र सांस्कृतिक हो जाता है। लगातार छठे साल में इस तरह के आयोजन की महक अगर बालीवुड तक पहुंचने लगी है, तो हिमाचल के संदर्भों में फिल्मोद्योग एक बड़ी संभावना के रूप में देखा जाना चाहिए। विडंबना

अंततः चुनाव आयोग का बिगुल गुजरात में भी बज गया और अब वहां दो चरणों में नौ व चौदह दिसंबर के दिन मतदान होगा। यानी हिमाचल का चुनावी मंजर गुजरात की घंटी बजने तक इंतजार करेगा और इस तरह नौ नवंबर की पारी अठारह दिसंबर तक ताले में बंद रहेगी। हिमाचली वजूद पर बर्फ सा

कश्मीर शांत होना चाहिए, यह देश के औसत नागरिक की दिली तमन्ना है, लेकिन ‘जन्नत’ में ‘जहन्नुम’ का समावेश कैसे और कब समाप्त होगा, उसके मद्देनजर उलझनें भी हैं और ढेरों सवाल भी हैं। कौन ईमानदारी से कोशिश कर रहा है या कौन सियासत खेल रहा है अथवा कौन सोच के स्तर पर पाकपरस्त है,

चित्रकूट का भी भगवान राम से संबंध है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां भी उसी तरह आरती की, जिस तरह अयोध्या में सरयू नदी के तट पर की थी। वह दीपावली का पर्व था। भगवान राम का मुद्दा दोनों जगह साझा था। मुख्यमंत्री योगी ने राम और विकास को साथ-साथ माना है।

राजनीति का रूठा दिल भी संदेश व सबक दे सकता है और यही तकाजा है कि नामांकन की रसीद पर हाजिर है बदले का पैगाम। सलाखों में संदेश की दरगाह अगर देखनी है तो सोशल मीडिया के पैरोकारों के बीच अपने दिमाग के लिए जगह ढूंढें, वरना हादसों की राजनीति में शहादत के कई उदाहरण