संपादकीय

एक तरफ करीब 25,000 हिंदू भारत के नागरिक हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में उन्हें न तो नागरिकता हासिल है और न ही कोई अधिकार मिला है। मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के विचाराधीन है। दूसरी ओर सांसद ओवैसी ने लेखिका-बहिन जी तसलीमा को रोहिंग्या मुस्लिम ‘भाइयों’ के बराबर माना है। लाखों तिब्बतियों के

टूटे पंख की पीड़ा सहलाने से दूर नहीं होती और न ही फुसलाने से कम होते हैं फासले। हिमाचल के फासले कितने सामाजिक-कितने राजनीतिक, इस पर चिंतन की आवश्यकता है। सोशल मीडिया में किसी ने उछाल दिया कि प्रदेश के किस हिस्से की धाम अव्वल है और प्रश्नावली के ठीक नीचे हम हिमाचली बंट गए।

बुलेट ट्रेन सिर्फ एक रेलगाड़ी ही नहीं है, जो 320-350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी। बुलेट ट्रेन की परियोजना भारत के लिए एक रणनीतिक और संतुलनकारी आयाम भी साबित होगी। बेशक इसके साथ ही हम चीन को मात नहीं दे सकेंगे, जिसकी बुलेट टे्रन करीब 500 किलोमीटर की गति से चलती है। लेकिन

केंद्र में हिमाचली मंत्री होने के नाते एक साथ चिकित्सा संस्थानों का शिलान्यास करते जगत प्रकाश नड्डा, राष्ट्रीय लक्ष्यों की फेहरिस्त में प्रदेश को सजाते हैं। हिमाचल के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के मायने एक साथ अनेक स्थानों पर स्पष्ट हो रहे हैं। बेशक चुनावी माहौल में सकारात्मक उपलब्धियों के सुर ढीले पड़ जाते हैं, फिर

चूंकि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद की 444 साल पुरानी, ऐतिहासिक और विश्व प्रसिद्ध सिदी सैयद मस्जिद देखने की इच्छा प्रकट की थी, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी को ‘मेहमान शासनाध्यक्ष’ के साथ जाना ही था। उन्होंने गाइड बनना भी चुना और आबे दंपति को मस्जिद के शिल्प और वास्तुकला की जानकारी दी। भारत में

शब्द सागर के बीच भाषायी सरिताओं के द्वंद्व अगर भौगोलिक पहचान है, तो भारतीय परिप्रेक्ष्य में हिमाचली पहचान का यह रूप संगठित नहीं है। हिमाचली समाज व संस्कृति की आत्मा ने अपनी बोलियों को प्रकृति के आलोक में बुनियादी स्वरूप दिया, तो प्रगति के बदलते परिदृश्य में भाषा का संघर्ष भी शुरू हुआ। हिमाचल में

क्या कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस तरह देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं? क्या विदेशी जमीन पर भारत को नफरत, गुस्से, हिंसा का देश करार देने से कांग्रेस को जनमत मिल सकता है? क्या देश वाकई बर्बादी के कगार पर है? क्या भारत में ध्रुवीकरण, असहिष्णुता और असुरक्षा का ही माहौल है? क्या वंशवाद के

अपने बौद्धिक कौशल के कारण भाजपा जहां पहुंच रही है, वहां विचारों की जंग जीतना कांग्रेस के लिए कठिन है। कम से कम भाजपा जैसी विचारधारा के खिलाफ हिमाचल कांग्रेस का संगठन दिखाई नहीं दे रहा। अपने मुद्दों के फलक पर भाजपा ने जो शृंखलाएं गठित की हैं, उनमें से ‘हिसाब मांगे हिमाचल’ सीधे प्रश्न

समझौते और दरार के बीच हिमाचल कांग्रेस की चुनावी रणनीति क्या है, इसे वर्तमान प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे के बूते समझा नहीं जा सकता। दुर्भाग्यवश शिंदे केवल शक्ति प्रदर्शन के बीच एक ऐसे फ्रेम की तरह हैं, जो अनेक दीवारों पर चस्पां होना चाहते हैं। अब तक का घटनाक्रम एक कमजोर व अस्थिर प्रभारी