विचार

भानु धमीजा सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’ लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं विकास से भी बढ़कर यह बेहतर शासन देने का उनका वचन था जो उन्हें सत्ता में लाया। आज भी भाजपा ‘‘बेहतर शासन’’ को ‘‘मोदी मंत्र’’ कहकर प्रचार करती है। और यह सही भी है क्योंकि धरातल पर शासन

(नीरज मानिकटाहला, यमुनानगर, हरियाणा ) ‘मिताली सेना’ भारतवर्ष को आईसीसी महिला विश्व कप क्रिकेट विजेता का स्वर्णिम ताज पहनाने से भले ही चूक गई हो, लेकिन महिला इंडिया टीम ने अपनी एकजुटता व खेल के प्रति समर्पण भावना से कश्मीर से कन्याकुमारी तक करोड़ों खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया। भारतीय टीम का फाइनल तक

हरि मित्र भागी लेखक, सकोह, धर्मशाला से हैं कोटखाई की दुखद घटना के बाद अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि प्रदेश में आपराधिक तत्त्वों के हौसले किस हद तक खौफनाक हो चुके हैं… हिमाचल में अपराध की छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें, तो सामान्य तौर पर हिमाचल की छवि एक शांत, प्रगतिशील और सभ्य प्रदेश

विवेक त्रिपाठी लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं पानी जीवन के लिए बहुत अनिवार्य है। इसका संचय भी बहुत जरूरी है। इसको खर्च करने में हम तनिक कोताही नहीं बरतते, पर संचयन के बारे में सजग नहीं रहते। पानी जीवन में उतना ही महत्त्व रखता है, जितना शरीर में रक्त। ऐसे में दोनों को एक-दूसरे से अलग

(सुनील शर्मा, शिमला ) ‘जननी जने तो तीन जन, भक्त, दाता या शूर नहीं तो धरती बांझ रहे, काहे गवाए नूर’ स्वामी भक्तराम महाराज की ये पंक्तियां हिमाचल के उन वीर सपूतों की शहादत पर एकदम खरा उतरती हैं, जिनकी वीर गाथाओं पर देश आज फिर नमन करेगा। हिमाचलियों के हौसले के आगे पाक सेना

(नारायण सिंह वर्मा, शोघी ) बेकसूर नाबालिग बेटियों की, लाशें आज पुकार करती हैं। जिस धरती पर ये दरिंदे जन्मे, क्या यही कृष्ण और राम की धरती है? गूंगे-बहरे हुए शासक इस राम की धरती पर, खुली छूट है दरिंदगी के लिए चाहे दुष्कर्म कर या कत्ल कर। चीख-चीख कर रोती है हर मां जब

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं देश को वाटर इंजीनियरों के दुराग्रह से उबरना होगा। बाढ़ को अपनाना होगा। टिहरी और भाखड़ा को हटाना होगा। सड़कों और रेल लाइनों के नीचे बाढ़ के बहने के पर्याप्त पुल बनाने होंगे। बाढ़ के पानी को फैल कर बहने देना होगा। फरक्का को हटा कर

हिमाचल हाई कोर्ट ने परिवहन निगम की सामाजिक जिम्मेदारी के आलोक में जो निर्देश दिए हैं, वे वास्तव में दायित्व की पहली शर्त होनी चाहिए। माननीय अदालत ने बस अड्डों के शौचालय की स्थिति सुधारने के लिए समयसीमा तय करते हुए बता दिया कि बड़े भवनों या लक्ष्यों के बीच छोटे-छोटे पहलू किस तरह नजरअंदाज

किशन चंद चौधरी लेखक, बड़ोह, कांगड़ा से हैं मां-बाप का सार्थक संवाद व अध्यापकों की रचनात्मक भूमिका विद्यार्थियों को सोशल मीडिया के मकड़जाल से आजाद कर सकती है। विद्यार्थियों को स्वयं चाहिए कि वे कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्मार्ट फोन का सीमित व उचित प्रयोग करें। मित्रों व रिश्तेदारों से मिलें, घूमें-फिरें, योग करें व किताबों