विचार

देवकीनंदन खत्री  हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होंने ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतति’, काजर की कोठरी’, ‘नरेंद्र-मोहिनी’, ‘कुसुम कुमारी’, ‘वीरेंद्र वीर’, , ‘कटोरा भर’ और ‘भूतनाथ’ जैसी रचनाएं कीं। ‘भूतनाथ’ को उनके पुत्र ‘दुर्गा प्रसाद खत्री’ ने पूरा किया था। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके उपन्यास ‘चंद्रकांता’ का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास

कुलदीप चंदेल, अतिथि संपादकविस्थापन प्रायः विवशताओं से उपजता है। बाध्यताओं के कारण शरीर तो एक जगह से दूसरी जगह चला जाता है, लेकिन स्मृतियां अपनी जड़ों में उलझी रहती हैं। वे बार-बार उस परिवेश की तरफ लौटना चाहती हैं, जिसने उन्हें गढ़ा है। यह आकर्षण शारीरिक सुख-सुविधाओं के अंबार के बीच भी व्यक्ति को लहूलुहान

मैं हूं एक ऐसी पौध जो अपनी ही जमीन से उखाड़ कर बेदखली के रूप रोपित कर दी गई पराई जमीन पर हवा, पानी, खाद भी जिंदा न रख पाई मुझे क्योंकि  अपनी ही जड़ों से कटी तलाशती रही ताउम्र अपनी पुश्तैनी जड़ें बिन पुष्पित, पल्लवित ढूंढ बन रह गई, एक पेड़ बनने की आस

विस्थापित शब्द आजकल प्रायः हर रोज पढ़ने और सुनने को मिलता है। इसका सरलार्थ है कि सरकार द्वारा किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह की संपत्ति (भवन-भूमि आदि) का सार्वजनिक हित में मुआवजा राशि देकर अधिग्रहण करना। कल्याणकारी राज्य होने के नाते विस्थापितों के उचित पुनर्वास की जिम्मेदारी भी सरकार की ही बनती है। भाखड़ा

मंदिरों, शिवालयों, कुओं, स्नानागारों और बाग- बागीचों वाला बड़ा अद्भुत था वह एक शहर पुराना सा। पंछी थे कलरव करते बूढ़े पेड़ों पर, बांसों के बीहड़ों पर बच्चे थे खेला करते गोहर, पोखर, गलियां-गलियां बड़ा अद्भुत था, वह एक शहर पुराना सा। खाखी शाह था बीच बाजार बंगाली बाबा का था चमत्कार हनुमान बड़ की

कुलदीप नैयर लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। अमरीका के नए राष्ट्रपति के साथ अपनी पहली मुलाकात में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही चतुराई के साथ ट्रंप कार्ड खेला। पहले केंद्र की सत्ता में मजबूती के साथ आना और अब जिस तरह से देश के विभिन्न राज्यों में पार्टी अपने पैर पसार रही है, यह

जनहित तथा विकास के लिए सरकार सड़कें, फोरलेन फ्लाईओवर तथा हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाती-लगाती है। इसके लिए सरकार लोगों की मिलकीयत भूमि, घर, दुकानें क्षतिपूर्ति की रकम या मुआवजा देकर हासिल कर लेती है। इसका परिणाम यह होता है कि सैकड़ों की संख्या में परिवारों के परिवार विस्थापन का शिकार हो जाते हैं। उनकी रोजी- रोटी

पंद्रह हिमाचली कस्बों के नियोजन में शहरी उम्मीदों की पड़ताल होगी, तो इसके उत्तर में डिवेलपमेंट प्लान का सांचा प्रस्तुत होगा। शहरी नियोजन की करवटों में 15 नई योजनाओं में समाहित हो रहे सुजानपुर, वाकनाघाट, धौलाकुआं, नारकंडा, मैहतपुर, गरली-परागपुर, चामुंडा, खजियार, भरमौर व सराहन जैसे स्थान अपनी समीक्षा कर सकते हैं। बेशक हिमाचल का नियोजित

एहसास वैसा ही था, जैसा 1947 में जनमानस ने महसूस किया होगा। वे राजनीतिक, सीमाई, कूटनीतिक और संवैधानिक आजादी के लम्हे थे। 30 जून, 2017 की आधी रात को संसद के सेंट्रल हाल में दूसरी आजादी का एहसास भोगा गया। बेशक वे भी ऐतिहासिक लम्हे थे। एहसास एक राष्ट्र के साथ-साथ एक ही बाजार और