विचार

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वरंगल, तेलंगाना ) आठ साल की कच्ची उम्र जो खेलने-कूदने की होती है, रूपा की शादी उसी उम्र में हो गई। पढ़ाई में होशियार रूपा ने अपना ध्यान पढ़ाई पर ही केंद्रित किया। दसवीं में आते-आते रूपा का गौना कर दिया। ससुराल में काम करते-करते भी रूपा ने पढ़ाई से अपना

गबरू औंधा पड़ा ( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) गबरू क्यों औंधा पड़ा, धंसे हुए क्यों गाल? आंखें गड्ढे में घुसीं, चाल हुई बदहाल। चाल हुई बदहाल, लड़खड़ाती हैं टांगें, तू खाता उधार, लाला मम्मी से मांगे। मां-बापू को पीटता, अकसर श्रवण कुमार, बोतल में खुद डूबता, बिखर गया परिवार। दुर्घटना नित कर रहे,

‘ऐ विश्व हिंदू परिषद वालो, बजरंग दल वालो, ऐ नरेंद्र मोदी, सुन ले’ यह देश किसी के बाप की जागीर नहीं है।’ बेशक हिंदोस्तान उसके बाशिंदों, नागरिकों और पूरे अवाम की भी जागीर नहीं है, यह देश ओवैसी की सपोली औलादों की भी जागीर नहीं है। बाप का नाम हम नहीं ले रहे हैं, क्योंकि

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं बड़े उद्योगों का बाजार बढ़ने से इनके शेयर उछल रहे हैं। यदि बड़े उद्योगों द्वारा उत्पादन में पांच प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। तो छोटे उद्योगों द्वारा 20 प्रतिशत की कटौती हो रही है। समग्र अर्थव्यवस्था पस्त है। दूसरी तरफ वर्तमान सरकार कर्मठ है। रेलवे,

विक्षिप्त अलगाववादी (डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर) था पवित्र रमजान महीना, तुम अयूब को निगल गए। ऐसी चमक चढ़ी चांदी की, लानत तुमको, पिघल गए। फैला लो तुम हाथ चौक पर, तुम प्रसिद्ध भिखमंगे हो। जन्नत में तुम भीख मांग लो, क्यों पड़ोस जा नंगे हों। रक्त नहीं बहता, मवाद है, अलगाववादी की नस-नस में।

एक बार फिर राहत के बदले आहत हुए हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के सामने अदालती फरमान और सामने भाजपा की आलोचना का पुख्ता होता सबूत। ईडी और सीबीआई जांच दस्तावेजों सहित जो मामला दिल्ली हाई कोर्ट में मुख्यमंत्री को कठघरे में खड़ा कर चुका है, उसकी रगड़ से बचाव का पक्ष भी हार गया।

अब आभास होने लगा है कि आतंकियों के खिलाफ ‘मिशन कश्मीर’ और ‘आपरेशन ऑलआउट’ की रणनीति कामयाबी के रंग दिखाने लगी है। करीब पांच सप्ताह के अंतराल में 50 आतंकियों को ढेर किया गया है। लश्कर-ए-तोएबा के स्थानीय सरगना बशीर अहमद वानी को भी मौत की नींद सुला दिया गया है। मुठभेड़ के दौरान उसकी

सुरेंद्र कुमार लेखक, करसोग, मंडी से हैं शुरुआत में व्यापारियों को यह कर प्रणाली बोझपूर्ण लग सकती है, परंतु वास्तव में इससे कर ढांचा सरल होगा। इसके लागू होने से शुरू के एक आध वर्ष हमें महंगाई से कुछ हद तक जूझना पड़ेगा, लेकिन समय बढ़ने के साथ-साथ इसकी व्यावहारिकता में वृद्धि होगी तथा हमें

(चंद्रमोहन, गलोड़, हमीरपुर )  2003 के बाद नियुक्त होने वाले लाखों कर्मचारियों में नई पेंशन योजना के प्रति विरोध व्यापक होता जा रहा है। नई पेंशन योजना मात्र एक छलावा है और कर्मचारियों पर बिना सोचे-समझे थोपी गई स्कीम है। इसके नतीजे अब साफ तौर पर नजर आने लगे हैं। इसी के परिणामस्वरूप सेवानिवृत्त कर्मचारियों