पीके खुराना

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं बिहार और उत्तर प्रदेश उप चुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित विपक्ष गाल बजा रहा है, लेकिन जनता की भलाई के लिए कोई वैकल्पिक योजना या नीति का खुलासा नहीं कर रहा। क्यों? क्योंकि उसके पास कोई योजना है ही नहीं। समस्या जनता की है।

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं लोकतंत्र में विपक्ष का काम ही यह है कि वह सरकार की खामियां ढूंढे, जनता को उन खामियों से अवगत करवाए और सरकार को सही कदम उठाने पर विवश करे। अपनी छवि बचाने के लिए सत्ता पक्ष अपने तर्क देता है, विपक्ष की आलोचना का उत्तर

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं त्रिपुरा में जिस बारीकी से काम हुआ, यह केवल भाजपा के बस की बात है। आवश्यकता इस बात की है कि भाजपा कश्मीर को अपने एजेंडे की प्रमुखता में शामिल करे। भाजपा की प्राथमिकता इस समय ज्यादा से ज्यादा राज्यों में चुनाव जीतना है। खेद का

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं हिंदुत्व एक बड़ी लहर है, पर इस अकेली लहर के सहारे बहुमत मिल जाए, ऐसा मुश्किल लगता है। लब्बोलुआब यह कि जब नौकरियां नहीं हैं और व्यापार बढ़ने के आसार भी कम हैं तो चुनाव में वर्तमान सरकार को दोबारा जनता का विश्वास मिलने में अड़चनें

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं समस्या यह है कि या तो मीडिया में इतने बड़े षड्यंत्र की ढंग से तहकीकात कर पाने की काबिलीयत वाले लोग नहीं हैं या फिर उनकी इसमें रुचि ही नहीं है। अलग-अलग दलों के नेताओं और संबंधित अधिकारियों के मशीनी बयानों से ही संतुष्ट हो जाने

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं नीतियां ऐसी बना दी गई हैं कि खेती एक अलाभप्रद व्यवसाय बन गया है। यह नीतियों की असफलता है, किसानों की नहीं। यहां भी सरकार के पास कोई योजना अथवा दूरदृष्टि नहीं है। यह स्थिति ऐसी है कि न जवान की जय है, न किसान की

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं योजना बनाते समय जमीनी स्थिति को ध्यान में न रखने का परिणाम ऐसा ही होता है कि सरकार प्रचार करती रहती है और जनता माथा पीटती रहती है। मौजूदा सरकार की अधिकांश योजनाओं का यही हाल है। वह उज्ज्वला योजना हो, स्मार्ट पुलिस प्रोजेक्ट हो, स्मार्ट

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं यह सही है कि यदि चपड़ासी के कुछ पदों के लिए हजारों युवक इच्छुक हों तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। ऐसा क्यों है कि चपड़ासी के पद के लिए बेकरार उच्च शिक्षित युवा मेहनत का कोई और काम करने से कतराएं? दरअसल, हमारी मानसिकता ही गलत

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं आम आदमी का रोजमर्रा का वास्ता स्थानीय स्वशासन और राज्य सरकार से है, जबकि यह हमारी शासन व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी है। शहरों में पार्षद, विधायक, सांसद चुने जाते हैं, लेकिन उनकी शक्तियां परिभाषित नहीं हैं और किसी को भी मालूम नहीं है कि किस