संपादकीय

1984 के सिख नरसंहार के 34 लंबे सालों के बाद पहली बार कांग्रेस के रसूखदार नेता एवं तीन बार सांसद रहे सज्जन कुमार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। सज्जन को मृत्यु तक जेल में ही रहना पड़ेगा। वह 31 दिसंबर तक अदालत में समर्पण कर सकेंगे। दिलचस्प यह है कि

सेना भर्ती को कोचिंग के जरिए तसदीकी बनाने के लिए हिमाचल सरकार ने जो संकल्प लिया है, उसके आशय में एक बड़ा वर्ग लाभान्वित होगा। सैनिक कल्याण एवं आईपीएच मंत्री महेंद्र सिंह ने बाकायदा चार कोचिंग केंद्र स्थापित करने की घोषणा के साथ इस दिशा में सरकार की गंभीरता को परवान चढ़ाया है। यह हिमाचल

प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस और गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली में सेना के जवान और कर्जदार किसान के मुद्दे उठाते हुए तीखे प्रहार किए। एक खुलासा भी किया कि जब 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने किसानों के 60-70 हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए थे, तब किसानों और कृषि क्षेत्र पर करीब 6

सरकाघाट में मौत का जाम केवल एक मातम नहीं, बल्कि प्रदेश के सामने एक साथ अनेक प्रश्नों का कब्रिस्तान भी है। इस दास्तान में व्यवस्था की खूंखार नालायकी के साथ-साथ समाज की बहरी संवेदनाएं भी सामने आई हैं। आश्चर्य यह कि सरकाघाट ने अपने बगल में दबाए ट्रैफिक जाम की पटकथा को अंत में मौत

हिमाचली विकास के बीच आर एंड डी के प्रति संवेदना व सोच के दस्तावेज तैयार नहीं हुए, तो खोखली भूमिका में भविष्य लिखा जाएगा। केंद्रीय योजनाओं में भी यह ताकीद दर्ज है कि पर्वतीय विकास का ढांचा अति मजबूत व नई चुनौतियों के अनुरूप हो, इसीलिए सड़क निर्माण को बदलती तकनीक से मापने की जरूरी

राफेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट ने कई गुत्थियां सुलझा दी हैं। भ्रम और आशंकाएं भी तोड़ी हैं। सर्वोच्च फैसला सामान्य नहीं है, बल्कि रक्षा सौदों की परिधि तय की है। कुछ लक्ष्मण-रेखाएं भी खींची हैं। सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा खरीद और सौदों की न्यायिक समीक्षा को भी परिभाषित किया है, क्योंकि इन सौदों के

राजस्थान के करौली और दौसा के इलाकों में भीड़ ने आगजनी कर दी थी। काला धुआं उठ रहा था, साफ है कि किसी चीज को जलाया गया था। जयपुर-अजमेर राजमार्ग को जाम कर दिया गया और बसों में तोड़फोड़ की। ये दृश्य किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हो सकते, बल्कि ये दृश्य लोकतंत्र

जनप्रतिनिधियों के व्यक्तित्व और विजन की मुद्राएं जब संकल्पों को परिभाषित करें, तो भारतीय लोकतंत्र भी मुस्कराता है। किसी सामान्य चर्चा से कहीं अधिक महती जरूरत पर जब विधायक अपना निजी संकल्प पेश करते हैं, तो युग को लांघने की समीक्षा हो सकती है। इसी आधार को देखने से हिमाचल विधानसभा को एकसाथ संकल्प मिलते

निजी स्कूल की वकालत में अगर ऊना का एक परिवार उलझ गया, तो समाज के ऐसे व्यवहार को हम चौराहों पर खड़ा देख सकते हैं। बेशक ऊना की चाइल्ड हेल्पलाइन ने मसले पर एकत्रित भ्रांति को मिटाकर अभिभावकों से सरकारी स्कूल में बच्चे का प्रवेश करा दिया, लेकिन किंतु-परंतु के बीच बंटी शिक्षा का मूल्यांकन