पीके खुराना

यह सच है कि हम सभी में दुनिया बदलने की ताकत है, पर इसकी शुरुआत खुद से ही होती है। कुछ और बदलने से पहले हमें खुद को बदलना होता है, खुद को तैयार करना होता है, अपनी योग्यता बढ़ानी होती है, अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक रखना होता है, अपने साहस को फौलाद करना होता

बहुत-सी और भी ऐसी बातें होती हैं, घटनाएं होती हैं, जिन्हें हम परखने की कोशिश नहीं करते, उन पर विचार करने की कोशिश नहीं करते, सवाल नहीं उठाते। कभी वह अज्ञान के कारण होता है, कभी आलस्य के कारण और कभी झूठी आस्था के कारण। एक उदाहरण से हम इसे समझ सकते हैं। यदि कोई

अंततः यह सोच कि खेल अनिश्चित है और खेल का रुख कुछ भी हो सकता है, हमारी जीत की संभावनाएं सिर्फ इसलिए कुछ और बढ़ जाती हैं क्योंकि हम मानकर चलते हैं कि हमारी योजना गलत हो सकती है, उसमें खामियां हो सकती हैं और हम हार सकते हैं, परिणाम यह होता है कि हम

किसी व्यक्ति की सफलता और असफलता में भाग्य की भी भूमिका होती ही है, पर उसका अनुपात क्या था, इसे तय करना हमारे लिए मुमकिन नहीं है। अक्सर हम बाकी सारे घटकों को जानते हैं, उनका विश्लेषण करते हैं, पर उसमें शामिल भाग्य की भूमिका के बारे में नहीं सोचते। जब कोई दूसरा व्यक्ति सफल

सोने से एक घंटा पहले हल्दी वाला गुनगुना दूध लें। इससे नींद बढिय़ा आएगी और त्वचा में चमक बढ़ेगी, खूबसूरती बढ़ेगी। जब त्वचा खूबसूरत होगी तो महिलाओं को भी बाहरी मेकअप की जरूरत कम से कम पड़ेगी क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से खूबसूरत लगेंगी। अब जऱा इस दूध का तरीका भी समझ लीजिए। दूध को

हम अपने मित्रों में, परिचितों में, रिश्तेदारों में और खुद के परिवार में मृत्यु की घटनाओं को देखते हैं और उसके बावजूद मानते हैं कि हम अभी जि़ंदा रहेंगे। हम नहीं मानते कि हो सकता है कि हमें अगला सांस भी न आए। मृत्यु सच होते हुए भी हमारे लिए सच नहीं है। लेकिन अगर

तब उन्होंने अपना निश्चय फिर दोहराया, अपनी फिटनेस पर फोकस किया, खेल के लिए और मेहनत की और ज्यादा अच्छा खेलना शुरू किया। सन् 2011 विश्व कप मैच के दौरान सचिन की बेहतरीन फार्म के बावजूद शुरुआती असफलताएं मिलीं। तब सचिन ने पहली बार अपने साथी खिलाडि़यों को झिड़का भी और प्रेरित भी किया। परिणाम

यह समझना आवश्यक है कि कोई समस्या आए तो हमें क्या करना चाहिए। समस्याएं सुलझाने का चरणबद्ध जो वैज्ञानिक तरीका मनोवैज्ञानिकों ने सुझाया है, अब मैं उसकी चर्चा करूंगा। पहला चरण है यह स्वीकार करना कि समस्या हमारी है और इसे सुलझाने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। यह पहला कदम है, इसे स्वीकार किए

निश्चय ही समय हमें बहुत कुछ सिखाता है, सवाल सिर्फ यह है कि खुद हम कुछ नया सीखने के लिए तैयार हैं या नहीं, या अपने ज्ञान के अभिमान में कैदी बनकर खुद ही खुद पर फिदा रहने की गलती करते हैं। कोरोना ने जहां एक ओर सारे विश्व को घुटनों पर ला दिया, इसके

मैं न ड्रग्स की तरफदारी कर रहा हूं, न ड्रग्स लेने वालों की। मैं तो यह चेतावनी देना चाहता हूं कि पेरेंटिंग को आउटसोर्स करके, बच्चों के पालन-पोषण का काम ट्यूटरों और नौकरों के भरोसे छोड़कर हम अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। आर्यन खान तो सिर्फ एक उदाहरण है। फिल्मी दुनिया में