पीके खुराना

हम चाहें तो अपने सारे काम निपटाकर समय पर रात का भोजन ले लें और समय पर सो जाएं, नींद पूरी करें और ब्रह्म मुहूर्त के नियम का पालन करते हुए सुबह सवेरे उठ भी जाएं। यह सिर्फ एक आदत की बात है। अंतर कुछ भी नहीं है, जो काम रात को नहीं निपटाए जा सके थे, वो सुबह-सवेरे भी निपटाए जा सकते हैं, बेहतर तरीके से निपटाए जा सकते हैं। कुछ लोग हमेशा हर जगह देर से ही पहुंचते हैं और कुछ लोग हमेशा समय पर पहुंच जाते हैं। दोनों तरह के लोग समान रूप से व्यस्त हो सकते हैं। यह सिर्फ एक आदत की बात है कि हम समय पर पहुंचें या देर से। शाम को

तब उन्होंने अपना निश्चय फिर दोहराया, अपनी फिटनेस पर फोकस किया, खेल के लिए और मेहनत की और ज्यादा अच्छा खेलना शुरू किया। सन् 2011 विश्व कप मैच के दौरान सचिन की बेहतरीन फार्म के बावजूद शुरुआती असफलताएं मिलीं। तब सचिन ने पहली बार अपने साथी खिलाडिय़ों को झिडक़ा भी और प्रेरित भी किया। परिणा

अपने खिलाफ या किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कुछ सोचना, कहना या करना बंद करें ताकि हमारा मन हमेशा शुद्ध रहे, सात्विक रहे। हम खुद को अयोग्य मानें, अक्षम मानें या किसी दूसरे की आलोचना करें, किसी भी रूप में चाहे हमारे विचार हों या कर्म, इनकी अपनी विशेष तरंगें होती हैं और हमारे विचारों या कामों की तरंगें सारे ब्रह्मांड में फैलकर सारे ब्रह्मांड को प्रभावित करती हैं। इसी तरह ब्रह्मांड में फैले हुए दूसरे लोगों के विचार भी हमें प्रभावित करते हैं...

आत्महत्या करने वाले लोगों में अमीरों की संख्या ज्यादा है। गरीब को तो फिर भी लालसा होती है कि ये कर लूं, वो कर लूं, ये पा लूं, वो पा लूं, क्योंकि उसके जीवन में तो कमियां ही कमियां हैं, अभाव ही अभाव हैं, उसकी लालसाएं बाकी हैं, पर अमीर आदमी की तो कठिनाई ही यह है कि पैसे के दम पर उसने सब देख लिया, सब पा लिया। न करने को कुछ बाकी रहा, न पाने को। जीवन में कोई उत्साह न

जब वह सीढिय़ां चढ़ते हुए तरह-तरह की बातें बनाता है या डरने का नाटक करता है तो वह जानता है कि यह भीड़ इक_ी करने का शगूफा है। उसे खुद पर विश्वास है। जब उसके कपड़ों पर तेल छिडक़ा जाता है तो उसे डर नहीं लगता, जब उसके कपड़ों को माचिस की तीली दिखाई जाती है तो उसे डर नहीं लगता, जब वह कलाबाजियां खाता हुआ नीचे छलांग लगाता है तो उसे डर नहीं लगता, जब

लिखने से बहुत सी बातें खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाती हैं क्योंकि तब हमारा दिमाग एक ही विषय पर फोकस करता है। इससे कई नए आइडिया आते चलते हैं। इस तरह हम खुद अपना मार्गदर्शन करते हैं और समस्या का समाधान ढूंढ लेते हैं। पढऩे में यह जितना आसान लग रहा है, यह सचमुच इतना ही आसान है भी, बस शुरुआत की देर है। एक बार जब आप समस्याओं से पार पाने के लिए यह तरीका अपना लेते हैं तो समस्याओं के हल ढूंढना इतना आसान हो जाता है कि आप किसी भी समस्या का ह

मेरा प्रयास सिर्फ इतना सा है कि हम जो नया ज्ञान अर्जित करें, उसे सिर्फ शौक ही न रहने दें बल्कि उसका आर्थिक लाभ भी लें। आज जब मैं हैपीनेस गुरु से आगे बढ़ कर स्पिरिचुअल हीलर यानी आध्यात्मिक चिकित्सक के रूप में प्रसिद्धि पा चुका हूं तो अपने पास आने वाले लोगों को ये बताने से गुरेज नहीं करता कि खुश रहने के लिए शौक पालिए, पर यदि आप उन्हें बिजनेस में भी बदल सकें तो सोने पर सुहागा होगा

हमारे चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी असफलता यह है कि यह भावनात्मक घावों को समझने और ठीक कर पाने में पूरी तरह से असफल है। दावा चाहे कुछ भी किया जाए, कोई भी प्रणाली सिर्फ शरीर के इलाज तक ही सीमित है। कोई भी प्रणाली मन का पूरा और सही-सही इलाज कर पाने में पूरी तरह से विफल है और उसके लिए आध्यात्मिक उपचार के अलावा और कोई साधन है ही नहीं। अब समय आ

इस प्रक्रिया का लाभ यह है कि इस प्रकार हम न केवल केवल को समझ पाते हैं बल्कि उसका प्रभावी समाधान भी खोज लेते हैं। समस्या का इस प्रकार से विश्लेषण करने की प्रक्रिया में हमारी जिज्ञासा जागृत होती है और हम मामले की गहराई में उतरते हैं। किसी समस्या के समाधान के लिए हम जितना गहराई में जाते हैं, उतना ही उस समस्या को समझ पाने की समझ विकसित होती है और हमारा समाधान भी

स्पिरिचुअल हीलिंग के दौरान रोगी ध्यान की-सी अवस्था में होता है जिसमें उसका अवचेतन मन जागृत हो जाता है जिससे रोग का कारण समझकर उसका निदान करना आसान हो जाता है। स्पिरिचुअल हीलिंग से मनोविकारों के इलाज के परिणामस्वरूप बहुत सी शारीरिक व्याधियों का इलाज खुद-ब-खुद हो जाता है और इस पद्धति का जितना प्रचार-प्रसार होगा, रोगियों की संख्या उतनी ही कम होती चली जाएगी। इससे नए अस्पताल बनाने की जरूरत खत्म हो जाएगी... भारतीय