डा. वरिंदर भाटिया

उद्योग और अनुसंधान संगठनों के संभावित सहयोगियों की पहचान करके परिसरों में अनुसंधान को बढ़ावा देने, परियोजना प्रस्तावों में मदद करने और समय सीमा के पालन की निगरानी करने के लिए भी गाइड लाइन नियामक संस्थान पहले जारी कर चुका है। इसके अलावा रिसर्च को लेकर कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। उच्च शिक्षा किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विकास की धुरी होती है। उच्च शिक्षा के बिना कोई भी राष्ट्र, समाज या व्यक्ति प्रगति नहीं कर सकता है। उच्च शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति, समाज या देश का

गांधी ने जिस हिंद स्वराज का खाका दिया था, उस पर हमारे नेतृत्वकर्ता हमेशा चलने से कतराते रहे। गांधी जी लघु उद्योग और स्वरोजगार से देश के हर व्यक्ति को काम देना चाहते थे। जबकि हमारी वर्तमान आर्थिक नीतियां युवाओं को बेरोजगारी के दलदल में धकेलती रही हैं। आजादी के बाद जो लघु उद्योग फैला, वह अंतिम सांसें गिन रहा है। बड़े पूंजीपति घरानों के चंगुल में

कुछ समय पहले के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में करीब पांच करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। वहीं, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन के अनुसार हमारे देश में हर चौथा बच्चा स्कूल से बाहर है। मेरा मानना है कि हमारे स्कूलों में ही इतनी खामियां हैं कि बच्चे मनोवैज्ञानिक

यही कारण है कि भोजन और शिक्षा आपस में एक-दूसरे पर निर्भर हैं और यदि इसका प्रबंधन सही ढंग से नहीं किया गया तो नए भारत के लिए चुनौती बन सकता है। देखा जाए तो कुपोषण कोई ऐसी बीमारी नहीं जिसे कम न किया जा सके। बस हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है। स्कूली बच्चों को जंक फूड के विपरीत प्रभावों से बचाने की बहुत जरूरत है। कुल मिला कर न केवल नीति स्तर पर, बल्कि परिवार में भी बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें कैसा आहार दिया जाता है, इसको ध्यान में रखकर कुपोषण की समस्या को काफी हद तक सीमित किया जा सकता है। यूं भी जो हमारी शिक्षा व्यवस्था है, उसमें कमियां हैं और यह उन बातों पर फोकस नहीं कर रही है कि हमें क्या खाना चाहिए और कितनी मात्रा में खाना चाहिए। चूंकि हमारी समझ और जानकारी किताबों और लेक्चर्स से आती है, ऐसे में भोजन और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पाठयक्रम आज के समय की बहुत बड़ी जरूरत हैं...

इस समय यूपीआई इंटरफेस की सुविधा ने भारतीयों के लेन-देन करने के व्यवहार में मौलिक परिवर्तन लाया है, जिसके कारण कैशलेस और पेपरलेस लेनदेन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा भारत में ब्रॉडबैंड का उपयोग भी तेज गति से बढ़ रहा है। पिछले पांच वर्षों में मोबाइल ब्रॉडबैंड (एमबीबी)

हमारी संस्कृति केवल कैरियर की बात नहीं करती, हमारी संस्कृति कैरियर से ज्यादा चरित्र की बात करती है। दुनिया के क्षेत्र में आगे बढऩे वाले लोग अगर अपने चरित्र के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं, तो यह उनके जीवन की बहुत बड़ी हानि है, ऐसी हानि से बचना चाहिए। अंत में कहना होगा कि हमारी

स्कूली शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों के अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की और मौलिक अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति तथा सौंदर्यबोध की समझ को विकसित कर सके। स्कूली शिक्षा एक ऐसी पूंजी है जिसको हर कोई पाना चाहता है। बच्चों के माता-पिता के अंदर एक आस होती है, जो पढ़ा-लिखाकर उनके बच्चों को आगे

भारत के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, भारतीय समाज को हर बच्चे के जीवन में इसके महत्त्व को समझने और स्वीकार करने के मामले में यौन शिक्षा को अभी और अधिक दूरी तय करनी है। अधिकांश स्कूलों में यौन शिक्षा अभी भी कहीं देखने को नहीं मिलती। छात्र अभी भी सडक़ों और इंटरनेट से ज्ञान

डिजिटल रणनीति और योजना में व्यापक रणनीति विकसित करने की क्षमता शामिल है जो संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ संरेखित होती है। जिन छात्रों के पास यह कौशल है, वे बाजार के रुझान का विश्लेषण कर सकते हैं, लक्षित दर्शकों की पहचान कर सकते हैं और व्यवसायों के लिए रणनीतिक रोडमैप बना सकते

इस तरह की गिरावट सस्ती कारों की बिक्री में भी आई है। यह सांकेतिक है कि कम आय वर्ग के लोगों की क्रय शक्ति घटी है। हालांकि देश में महंगाई की दर कुछ घटी है, लेकिन कई जरूरी चीजों के दाम बढ़े भी हैं। उनके कारण भी कम इनकम ग्रुप के लोगों की क्रय शक्ति