भरत झुनझुनवाला

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक जो व्यक्ति देश की आय में एक दिन में 2500 रुपए जोड़ सकता था, वह अब केवल 300 रुपए ही जोड़ेगा। अपने मूल राज्य में श्रमिक को समाहित करने में दूसरी समस्या यह है कि कृषि में श्रम को समाहित करने की सीमा है। आज विकसित देशों में कुल जनसंख्या का

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक टिहरी हाइड्रो डिवेलपमेंट कारपोरेशन ने जब टिहरी बांध बनाया था तो उस समय आशा थी कि यह झील तीन सौ वर्ष में गाद से भरेगी। कारपोरेशन द्वारा ही हाल में कराए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि झील 140 से 170 वर्ष में ही पूरी तरह गाद से

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक ऐसा प्रतीत होता है कि देश में विशिष्ठ जनों ने सोचा कि इस जगत का कोई अस्तित्व तो है ही नहीं, अतः यदि लोधी हम पर आक्रमण कर रहे हैं तो वह आक्रमण भी मिथ्या ही है। इसी क्रम में गुरुदेव रबिंद्र नाथ ठाकुर ने किंग जॉर्ज के सम्मान में ‘जन

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक सरकार को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होना होगा। जैसे जल मार्ग, खनन एवं थर्मल बिजली संयंत्रों को छूट देने के पीछे सरकार की मंशा देश में मैन्युफेक्चरिंग को बढ़ावा देने की है। सरकार को मैन्युफेक्चरिंग अर्थात मेक इन इंडिया को छोड़कर सेवा क्षेत्र यानी ‘सर्विस फ्रॉम इंडिया’ का नारा अपनाना चाहिए।

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक डब्ल्यूटीओ को छोड़ने से हम अपने पुराने पेटेंट कानून को लागू कर सकते हैं, जिसके अंतर्गत हम दूसरे देशों द्वारा आविष्कार की गई तकनीकों की नकल कर सकते हैं। जैसे यदि अमरीका की मान्सेंटो कंपनी ने बीटी काटन की विशेष प्रजाति का आविष्कार किया, तो हम उसको बनाने की प्रक्रिया में

डा. भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक वित्तीय नीति में हम वर्तमान जनता पर भार आरोपित करते हैं जिसका लाभ भविष्य में मिलता है। जैसे पिता बच्चे की शिक्षा में निवेश करता है तो परिवार को उसका लाभ भविष्य में मिलता है। इसके विपरीत मौद्रिक और ऋण की नीति में लाभ वर्तमान में मिलता है, जबकि भार

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक हमारे विश्वविद्यालय रिसर्च करने के स्थान पर सर्टिफिकेट बांटते हैं जिससे कि उनके छात्र भी काम न करने वालों की लाइन में उन्हीं की तरह लग जाएं। मेरी समझ से चीन विश्व से अलग-थलग पड़ने वाला नहीं है। तुलसीदास जी ने कहा कि ‘समरथ को नहिं दोष गोसाईं।’ आज अमरीका, चीन

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक इसलिए हमें ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिसमें कि राज्यों को अपने राजस्व में वृद्धि करने का इंसेंटिव तत्काल उपलब्ध हो जाए और वे प्रशासनिक सुधार के साथ लॉकडाउन में ढील देने के विकल्प की तरफ बढ़ें। इसलिए जीएसटी में राज्यों को दर को निर्धारित करने की स्वायत्तता तत्काल दे देनी चाहिए।

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक मेरा मानना है कि जब तक हम अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ नहीं करते हैं तब तक हम मुक्त व्यापार में नहीं जीत पाएंगे। इसलिए सरकार को पहले देश के प्रशासन को सही करना चाहिए और उसके बाद ही मुक्त व्यापार पर विचार करना चाहिए। श्रम और पर्यावरण कानून का विषय