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भानु धमीजा (सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’ लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं) जब मजबूत विपक्ष की बात आती है तो मोदी का दृष्टिकोण नेहरू से पूरी तरह भिन्न है। जहां नेहरू ने एक बार कहा था, ‘‘मैं ऐसा भारत नहीं चाहता जिसमें लाखों लोग एक व्यक्ति की हां में हां

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं हिंदू धर्म कहता है कि अंतर्मन की आवाज सुनो। योग और ध्यान के माध्यम से अपनी अंदरूनी वृत्ति को पहचानो और मन को सांसारिक खिंचावों से हटाकर अंतर्मन की ओर ले जाओ। बौद्ध धर्म मध्यम मार्ग को बढ़ावा देता है। विज्ञापन में बहने के स्थान पर

कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं राम मंदिर मसले पर उच्चतम न्यायालय की पीठ ने जो सुझाव दिया उसको लेकर भाजपा में जो उत्साह देखने को मिल रहा है, उतना शायद ही किसी और दल में देखने को मिला हो। लंबे अरसे से खिंचे चले आ रहे इस मामले का अब कोई अंतिम समाधान हो

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं श्रीनगर और अनंतनाग के संसदीय क्षेत्रों से उपचुनावों की घोषणा हो गई है। यदि नेशनल कान्फ्रेंस और अब्दुल्ला परिवार को अपनी खोई हुई साख फिर से प्राप्त करनी है, तो  श्रीनगर की लोकसभा सीट जीतना बहुत जरूरी है। फारुक अब्दुल्ला भलीभांति यह जानते

प्रो. एनके सिंह (लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं) कांग्रेस ने चुनावों को लेकर जो बड़े-बड़े सपने देख रखे थे, पंजाब को छोड़कर वे हर कहीं चूर-चूर हो गए। राहुल गांधी भी कांग्रेस को मिली हार की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आए और हमेशा की तरह इसका ठीकरा संबंधित राज्यों

भूपिंदर सिंह (लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं) सरकार बजट में खेलों के लिए करोड़ों के बजट का प्रावधान करती है और अगर उस पैसे का सही इस्तेमाल हो, तो इस तरह के प्रशिक्षण केंद्र इतने वर्षों तक पूर्ण होने के लिए अधर में न लटके रहते और अब तक विदेशों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के

पीके खुराना ( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) नरेंद्र मोदी की अब तक की रणनीति के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदुओं को संतुष्ट करने के बावजूद यहां भी मोदी के विकास के एजेंडे पर बात करते रहना पार्टी की नीति होगी। मोदी ने

डा. भरत झुनझुनवाला (लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं) राज्यों में जल बंटवारे संबंधी विवाद सुलझ नहीं पा रहे हैं, चूंकि अब तक राज्यों में पानी के न्यायपूर्ण वितरण का कोई भी समुचित सिद्धांत उपलब्ध ही नहीं है। इस समस्या का हल है कि पानी को राज्यों के बीच नीलाम किया जाए। जो राज्य पानी

कुलदीप नैयर (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं) इस बात को मानने के लिए हमारे समक्ष पर्याप्त सबूत हैं कि जातिगत भेदभाव इस तरह से असामान्य प्रतिभा वाले बच्चों को भी आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहा है। यह भी कि प्रतिष्ठित संस्थानों तक में जातिगत भेदभाव की धारणाएं इतनी मजबूत हो चुकी हैं