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1947 ई. से 1949 ई. तक अल्हिलाल पंजाब सरकार द्वारा गोदाम के रूप में प्रयोग किया गया। 1949 ई. में यह जम्मू के महाराजा हरि सिंह की पत्नी और राजा करण सिंह की माता महारानी तारा के अधिकार में आया… गतांक से आगे … अल्हिलाल प्राचीन काल में गद्दी जाति के नाम पर इस स्थान

स्कंद षष्ठी का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। तिथितत्त्व ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कंद षष्ठी कहा है। यह व्रत संतान षष्ठी नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मानते हैं। स्कंदपुराण के

यूं तो पूरा भारतवर्ष ही विभिन्न धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन हिमालयन क्षेत्र देवी-देवताओं की स्थली रही है। जहां बड़े-बड़े मंदिर आज भी पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना के लिए प्रसिद्ध हैं। हिमालय श्रृंखलाओं में ही हिमाचल प्रदेश को पूरे विश्व में देवभूमि के नाम से जाना है। इस प्रदेश में जिला हमीरपुर तहसील

मथुरा जिसे श्री कृष्ण की जन्म भूमि कहा जाता है। यहां कण-कण में भगवान श्री कृष्ण का वास है और इस भूमि पर अनगिनत मंदिर स्थापित हैं। हर भवन कान्हा और राधा रानी से जुड़ा है, जिसमें उनकी लीलाओं का वर्णन अलग-अलग रूपों में है। यहां के हर मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता

भारत में शिवालयों में एक अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है। इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर कर्नाटक राज्य के भटकल में स्थित है। महादेव का यह मंदिर  मुरुदेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। मुरुदेश्वर मंदिर का इतिहास रामायण काल का बताया जाता है। कहा जाता है कि यहां शिवजी की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा

बिहार के दरभंगा जिले में मां काली का यह भव्य मंदिर मौजूद है, जिन्हें यहां भक्त श्यामा माई के नाम से पुकारते हैं। मां काली का यह मंदिर दरभंगा राज परिवार के महान साधक महाराज रामेश्वर सिंह की चिता पर बना है। इस मंदिर के अंदर दक्षिण दिशा की ओर एक खास स्थान पर आज

विहार पंचमी अथवा विवाह पंचमी हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी श्री बांकेबिहारी के प्रकट होने की तिथि भी है। त्रेता युग में सीता-राम का विवाह इसी दिन हुआ था। मिथिलांचल और अयोध्या में यह तिथि विवाह पंचमी के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रजमंडल में यह विहार पंचमी के नाम से विख्यात है।

-गतांक से आगे… रक्तपा रुधिराक्ताङ्गी रक्त-खर्पर-हस्तिनी। रक्त-प्रिया मांस-रुधिरासवासक्त-मानसा।। 48।। गलच्छोणित-मुण्डालि-कण्ठ-माला-विभूषणा। शवासना चितांतःस्था माहेशी वृष-वाहिनी।। 49।। व्याघ्र-त्वगम्बरा चीर-चेलिनी सिंह-वाहिनी। वाम-देवी महा-देवी गौरी सर्वज्ञ-भाविनी।। 50।। बालिका तरुणी वृद्धा वृद्ध-माता जरातुरा। सुभ्रुर्विलासिनी ब्रह्म-वादिनि ब्रह्माणी मही।। 51।। स्वप्नावती चित्र-लेखा लोपा-मुद्रा सुरेश्वरी। अमोघाऽरुंधती तीक्ष्णा भोगवत्यनुवादिनी।। 52।। मंदाकिनी मंद-हासा ज्वालामुख्यसुरांतका। मानदा मानिनी मान्या माननीया मदोद्धता।। 53।। मदिरा मदिरोन्मादा मेध्या नव्या प्रसादिनी।