पाठकों के पत्र

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) काले हैं दामन अधिक, कुछ में हैं कम दाग, पाक साफ दामन कहां, लेकर ढूंढ चिराग। कूड़ा-कचरा पाल मत, सब दल रखें ध्यान, डाकू को यदि दी टिकट, दल होंगे बदनाम। सपरेटा के सब धुले, दूध-धुला है कौन? जनता नस-नस जानती, फिर भी रहती मौन। जाति लुटेरी अत्यधिक,

( डा. राजेंद्र प्रसाद शर्मा, जयपुर (ई-पेपर के मार्फत) ) पांच राज्यों में चुनावों के पहले चरण के नामांकनों के साथ ही करीब-करीब सभी प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने चुनाव घोषणा पत्र भी जारी कर दिए गए हैं। प्रश्न यह उठता है कि चुनाव घोषणा पत्र जारी करने के मायने

( डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर ) हमें प्रदेश की बेटियों पर नाज है। आज प्रदेश की होनहार बेटियां कई हैरतंगेज उपलब्धियां अपने नाम दर्ज कर रही हैं। अब से कुछ समय पहले तक इनकी महज कल्पना ही की जा सकती थी, लेकिन आज यह हकीकत है। अभी कुछ समय पहले प्रदेश की कुछ बेटियां आईटीबीपी

( प्रेमचंद माहिल, लरहाना, हमीरपुर ) लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत निरंतर विकास की राह पर अग्रसर है। रक्षा, संचार, यातायात, विनिर्माण समेत हर क्षेत्र में पिछले कुछ समय में भारत ने उल्लेखनीय तरक्की की है। लेकिन उन्नति की इस राह में आज भी कई बाधाएं स्पष्ट देखी जा सकती हैं, जो शासन या प्रशासन के स्तर

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) मौसम करवट बदल रहा है, मस्ती का है साया, कलिका झांक रहीं, लो वसंत फिर आया। फुलवाड़ी घर-घर की महकी, पक्षी सुध-बुध भूले, पड़ती है फुहार हल्की सी, डाल रहे वो झूले। वसुधा नई-नवेली दुल्हन, ओढ़ दुपट्टा पीला, बिंदिया जवां कुसम की, लहंगा लिए चमकीला। ठिठुर रहे थे

( रूप सिंह नेगी, सोलन ) वित्त मंत्री ने कर संग्रह से संबंधित कुछ आंकड़े पेश किए हैं, जिनके जरिए संभवतः यही जताने की कोशिश की गई है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने यह नहीं बताया कि इस बढ़ोतरी के पीछे और क्या कारण हैं? इस बढ़ोतरी के पीछे यह

( अमित पडियार (ई-मेल के मार्फत) ) इस साल शौर्य पदक देकर सम्मानित किए हुए सैनिकों की साहस कथाओं को ज्यादा लोगों तक प्रसारित करने का आवाहन प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ में किया है। सैनिक किस तरह दुश्मन से लड़ते हैं, यह देश की जनता को पता रहना चाहिए। लोगों को क्रिकेटर, बालीवुड

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) भूले बैठे थे जड़ें, आई अचानक याद, राजकुंवर ने ध्यान से, सुन ली अब फरियाद। सिंहासन के मोल पर, बेच दिया ईमान, हया-शर्म है ताक पर, तब कैसे अपमान। जनता जाए भाड़ में, रहे पूडि़यां सेंक, नाक कटाकर हंस रहे, नेता यहां अनेक। अलख जगाने आ गए, जनसेवक

( चिर आंनद, नाहन, सिरमौर ) ‘कश्मीरियत को मिलती अभिनव पहचान’ शीर्षक से प्रकाशित डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी का लेख न केवल कश्मीरियों, बल्कि संपूर्ण भारत के लोगों की आंखे खोलने वाला है। लेखक ने बड़ी बारीकी से विश्लेषण किया है कि किस तरह से गिलानी-खुसरानी आदि बाहरी लोग घाटी के लोगों में भ्रम