प्रतिबिम्ब

सन् 1857 की क्रांति के बाद नर्मदा की धारा मानो स्वाधीनता की चेतना को सिंचित और पल्लवित करने वाली प्रेरणा रेखा बन गई। नर्मदा किनारे के आश्रम ज्ञात-अज्ञात क्रांतिकारियों के शरणस्थल ही नहीं बनें, बल्कि योजनाओं और उन्हें क्रियान्वित करने की रूप रेखा तैयार करने के केंद्र भी बन गए। तात्या टोपे अंग्रेजों के विरुद्ध

पिछले दिनों  गेयटी थियेटर माल रोड शिमला में पुस्तक मेला लगा। साथ ही साथ विभिन्न विभागों के सहयोग से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसका यहां के स्थानीय लोगों के साथ स्कूलों के बच्चों, बाहर से आए पर्यटकों ने भी भरपूर आनंद उठाया और फायदा लिया। अकादमी और विभाग की तरफ से करवाए गए साहित्यिक

फूलों में हो तुम डालों में तुम। अंधेरों में तुम उजालों में तुम।। भंवरों को मैंने फूलों से लिपटते देखा है। खुदा मैंने तुझे दिलों में उतरते देखा है।। प्रकृति के कण- कण में तू है समाया। अपनी महक से तूने ये संसार है महकाया।। कच्ची उम्र में अकसर पांव को फिसलते देखा है। खुदा

महिषासुर का वध करने के बाद महाशक्ति का रूप इतना विकराल हो गया कि उनके उस रूप के आगे मानव तो क्या देवगण भी ठहर नहीं पा रहे थे। मां की रक्त पिपासा इतनी अधिक बढ़ गई थी कि उन्होंने सृष्टि का नाश करना आरंभ कर दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया… पश्चिमी हिमालय के

हैं कितने मूर्ख लोग अपने कश्मीर को उजाड़ रहे हैं, कुछ सिक्कों के लालच में अपनी तकदीर को फाड़ रहे हैं। लगता है सभी अंधे हो गए हैं पराये धन से स्कूल जला रहे हैं, ताकि यहां का कोई बच्चा पढ़ न सके स्वर्ग को नरक बना रहे हैं। जो लोग दूसरों को उजाड़ना चाहते

चित्तरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में युगांतकारी था। चितरंजन दास को प्यार से देशबंधु(देश के मित्र) कहा जाता था। वह महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधि-शास्त्री थे। चित्तरंजन दास अलीपुर षड्यंत्र कांड (1908 ई.) के अभियुक्त अरविंद घोष के बचाव के लिए बचाव पक्ष के वकील थे। असहयोग आंदोलन

‘हिंदी मीडियम’ ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी मात्र भाषा नही है। यह एक जीवन-पद्धति है। इसमें एक-दूसरे के प्रति  सुख-दुख बांटने और सहानुभूति दिखाने की ही बात नहीं है, अपितु   एक-दूसरे के लिए जान तक दांव पर लगाने की प्रबलतम भावना विद्यमान है… भाषायी द्वंद्व में फंसे करोड़ों मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों को

‘हिंदी मीडियम’ ने भाषा से जुड़ी मानसिकता को बखूबी चित्रित किया है और इस दृष्टि से लेखक की सृजन क्षमता अपने जमीर पर टिकी है। भाषा अपने भीतर के भाव में किसे, कहां तक समेट सकती है, इसका जिक्र कोई फिल्म कितना करेगी, लेकिन जिस चौराहे पर लाकर इस पटकथा ने साहित्य को पटकनी दी

जाब के सरकारी स्कूलों में सबसे ज्यादा बच्चे अंग्रेजी में फेल होते हैं। हर विषय में 60-65 प्रतिशत नंबर लानेवाले बच्चे अंग्रेजी में 15-20 नंबर भी नहीं ला पाते। अंग्रेजी का रट्टा लगाने में अन्य विषयों की पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती। अंग्रेजी ट्यूशन पर गरीब मजदूरों, नौकरों, ड्राइवरों, रेहड़ीवालों को 500-500 रु.