प्रतिबिम्ब

कश्ती में छेद कर डुबाने की साजिश किस की थी आप शामिल नहीं उसमें तो फिर साजिश किस की थी। अपने ही तो थे सवार कोई गैर न था, फिर हमें अलग करने की साजिश किस की थी। जानती हो फिर भी न जाने क्यों चुप हो, कि घर ढहाने की पुरजोर साजिश किस की

फूलों को छूकर देखो पंखुडि़यों को सहलाओ हरी पत्तियों को जी भर कर चूमो सुगंध को दामन में भरकर खुशियों के गीत गुनगुनाओ। झरनों के पानी में जीवन के सुमधुर तराने सुनो उमड़ते-घुमड़ते जलंधरों के साथ-साथ सृजन के सपने बुनो मिट्टी की महक में घुलमिल जाओ और हरियालियों में डूबकर नवपल्लवों में मुस्कराओ। जी भर

बेटियां क्या सच में घर का शृंगार हैं बेटियां, फिर समाज में क्यों दिखती आज भी लाचार हैं बेटियां माना कि पापा की लाड़ली, मां की दुलारी हैं बेटियां, पर सड़क पर आज भी वहशी दरिंदों की शिकार हैं बेटियां । नवरात्रों में देवी और घर की लक्ष्मी हैं बेटियां, पर क्यों कोख में आज

युद्ध में दुर्गावती साक्षात दुर्गा की तरह लड़ी और मुगल सेना हतप्रभ रह गई। प्रकृति ने भी दुर्गावती का साथ नहीं दिया। गोंड सेना के पीछे गौर नदी में बाढ़ आ गई और रानी नदी और मुगल सेना की बाढ़ के मध्य फंस गई। एक तीर रानी की आंख में लगा और जब उसने उसे

समर्पण आत्मा हैं हम रचयिता हमारे तुम परमात्मा। तन, तुम्हारा उपहार मन, तुम्हारी कठपुतली गुण, तुम्हारे आशीर्वाद दोष तुम्हारे श्राप बुद्धि, तुम्हारी देन सब कुछ तुम्हारा, तुमने ही दिया, तुम ही लो, श्रेय- हमारी उपलब्धियां का, उत्तरदायित्व विजय- पराजय का, अपर्ण तुम्हे सुख-दुख चिंताएं जैसे अराधना, अपना लेना अंततः भले बुरे, जैसे हैं हम नहीं

गोविंद चंद्र पांडे 20वीं सदी के जाने- माने चिंतक, इतिहासवेत्ता, संस्कृतज्ञ तथा सौंदर्यशास्त्री थे। वे संस्कृत, हिब्रू तथा लैटिन आदि अनेक भाषाओं के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के प्रसिद्ध लेखक तथा हिंदी कवि भी थे। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति, बौद्ध दर्शन, साहित्य, इतिहास लेखन तथा दर्शन आदि में गोविंद चंद्र पांडे को विशेषज्ञता प्राप्त थी।

महर्षि दयानंद सरस्वती जी  शतपथ ब्राह्मण का प्रमाण देते हएु कहते हैं ‘राष्ट्र वा अश्वमेधः’ (13-1-6-3) इस आधार पर वह आगे लिखते हैं-‘राष्ट्र पालनमेव क्षत्रियाणाम् अश्वमेधाख्यो यज्ञो भवति, नार्श्व हत्वा तदड्ंगान होमकरणं चेतिः।’ अर्थात राष्ट्र का पालन करना ही क्षत्रियों का अश्वमेध यज्ञ है, घोड़े को मारकर उसके अंगों को होम करना नहीं। महर्षि जी

1 तेरे वादों का  कैलेंडर दीवार पर लगा रखे हैं कितने निभाए तूने एक-एक कर निशां लगा रखे हैं। बाकी बचे वादे कब निभाओ खुदा जाने, तेरे सच और झूठ साथ दिल में लगा रखे हैं। हमारी एक खता को बार-बार दोहराने मे मशगूल तेरी खताओं के मैंने घर में ढेर लगा रखे हैं। गर

साडा हिमाचल सब तों न्यारा साडा हिमचल सबतों न्यारा स्वर्ण एत्थू ओ, स्वर्ग एत्थू ओ देवों का आलय पवर्त हिमालय स्वर्ग एत्थू ओ, स्वर्ग एत्थू ओ। भोले-भोले लोकी इसदे, भोलीयां-भालीयां शक्लां सीढ़ीनुमा खेत एत्थू हरियां-भरीयां फसलां डूगे-डूगे नालू, खड़े कुआलू स्वर्ग एत्थू ओ, स्वर्ग एत्थू ओ। रीडि़यां-रीडि़यां खंभे, एत्थू लम्मीयां-लम्मीयां तारां राती जो टिम-टिम करदे