प्रतिबिम्ब

संस्कृत विश्व की प्राचीन भाषा है, इसी की उत्पत्ति के संबंध मंे कहा गया है कि सृष्टि के समय ब्रह्मा ने वेदों के साथ इसकी रचना की। वैदिक साहित्य एक समय में नहीं लिखा गया है। लंबे समय में इसका निर्माण हुआ है। ऋग्वेद प्रथम वेद है, संसार की प्राचीन पुस्तक है, जो अनेक ऋषियों

आजकल के माता-पिता अपने नन्हे-मुन्नों को जैसे ही वे होश संभालते हैं, उन्हें उनके दादा-दादी और नाना-नानी, जिनके साथ जीवन का विराट अनुभव जुड़ा होता है, से अलग करके अंग्रेजी माध्यम से विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने में भेज देते हैं। यहां से ही वह पड़ाव शुरू होता है, जहां से हिमाचली संस्कृति के भविष्य

कहते है जो हिमाचल घूमने आया और यहां की धाम खाए बिना लौट गया, तो उसका हिमाचल घूमना आधा-अधूरा रह जाता है। हिमाचल में शादियों में बनने वाली धाम का स्वाद उस फाइव स्टार होटल के स्वाद को भी फीका कर देता है।  प्रदेश की अलग-अलग जगहों पर धाम भी अलग-अलग ढंग से बनाई जाती

पूरा-पूरा तोल रे बाबा। सच की खिड़की खोल रे बाबा। भेद घरों के खुल न जाएं, बंद मुट्ठी न खोल रे बाबा। पत्थर मार उड़ा न देना, पंछी करत किलोल रे बाबा। गुमसुम-गुमसुम क्यों बैठा है, कुछ तो मंुह से बोल रे बाबा। उस ने दुनिया को लूटा है, जो बनता अमनोल रे बाबा। अंबर

छोड़ो भी तकरार कि जीवन छोटा है, यारो बांटो प्यार कि जीवन छोटा है। निज-स्वार्थ के लिए रिश्ते से कटना मत, म्यान में रख तलवार कि जीवन छोटा है। घमंड की गठरी क्यों उठाए फिरता है, जल्दी कर, उतार कि जीवन छोटा है। तेरे सारे पूर्वज तो जग से चले गए, तू भी मध्यमकार कि

जोरावर सिंह के प्रारंभिक जीवन के संबंध में दो मत विद्यमान हैं। पहले विचार के अनुसार कि जब जोरावर सिंह 16 वर्ष के थे, तो भूमि विवाद को लेकर उनके हाथों चचेरे भाई की हत्या हो गई। वह पश्चाताप के लिए हरिद्वार चले गए। 1803 ई.में इनकी मुलाकात मरमत गलियां के जागीरदार राणा जसवंत सिंह

कूड़ा उठाने वाली वह नटखट सी लड़की, मुंह अंधेरे ही निकल पड़ती है काम पर…। वह बजाती है सीटी घर-घर से उठाती है कूड़ा और घसीट कर ले जाती है कूड़े से भरा बोरा…। पीछे से उसे पुकारती है उनींदी आंखें लिए बड़े घरों की औरतें अरी ओ रुक जा अभी आ रहे हैं डस्टबिन

सपने अगर हों अपने और आंखें उधार की। करना नहीं ए दर्दे दिल उम्मीदें बहार की।। खुद चलानी सीख ले अपनी कश्तियां। वरना न पार होगी यह नदिया संसार की।। पालकी में बैठकर जो घूमते रहे। बयान क्या करेंगे वो पीड़ा कहार की।। जिनकी हरेक किताब में स्वार्थ ही लिखा। कद्र क्या करेंगे वो दर्दे

निर्धनता के अंगारों पर गुजरते झुलसते कदम बेबस-लाचार-व्याकुल देखती-परखती आंखें भूख से सिसकती गोद देखती रही है बरसों से लहराते बैनर कदमताल करते आश्वासन झूठ की जमीन पे खड़े वादे अट्टालिकाओं के ऊंचे-ऊंचे दरवाजे बाहर बैठे रखवाली में पहरेदार सड़क पर हाथ पसारे लोगों का हुजूम राजा की कड़क आवाज में फरमान गरीब आदमी का