संपादकीय

ऑडिट की दिशा में हिमाचल सरकार मंत्रिमंडल की तीन उपसमितियों के तहत अपने कदमों को नई जगह बना रही है। अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग की उपयोगिता में भर्ती परीक्षाओं की सलामती का हिसाब मुकर्रर होगा, तो लीज या विभागों को आबंटित अनुपयोगी जमीन की समीक्षा भी होगी। एक अन्य उपसमिति विभागों की अनुपयोगी या रिक्त पड़ी संपत्तियों का मूल्यांकन करेगी। प्रदेश पहली बार अपनी जमीन की उपलब्धता तथा संपत्ति

पाकिस्तान और जम्हूरियत परस्पर-विरोधी यथार्थ हैं। पाकिस्तान में चुनाव दिखावटी होते हैं और हुकूमत ‘फौज की कठपुतली’ होती है। यदि लोकतंत्र होता, तो हुकूमत और सियासत में सेना की निर्णायक भूमिका क्यों होती? प्रधानमंत्री फौज के मोहताज क्यों होते? फौज चुनावों को भी प्रभावित कैसे कर सकती थी? लेकिन इस बार अवाम ने फौज को गच्चा दे दिया है। उसके फरमानों को खारिज कर दिया है और जम्हूरियत की ताकत की एक बानगी-सी पेश की है। नतीजतन जेल में कैद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की बर्खास्त पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ’ (पीटीआई) के

हिमाचल में विकास को तरसती आंखें आज भी अनिश्चय के संदर्भों में उलझी हैं। जब फोरलेन प्रोजेक्ट ने मंडी का सफर तय किया, लोगों ने जमीन पर बारूद उगा दिया और अब कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार के सामने विस्फोट के तौर तरीके बिछा कर सवाल किए जा रहे हैं। लोग तरक्की की फसल काटना चाहते हैं, लेकिन जमीन पर पांव धरने की इजाजत नहीं देते। उन्हें घर की गली तक वाहन चलाने योग्य सडक़ चाहिए, लेकिन अपनी दो इंच जमीन दे

दो पूर्व प्रधानमंत्रियों-चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव-तथा विख्यात कृषि-विज्ञानी, ‘हरित क्रांति’ के प्रणेता एमएस स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाजने की घोषणा की गई है। वाकई वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और भारत के अमूल्य ‘रत्न’ रहे हंै। देश के निर्माण और विस्तार में उनका अप्रतिम योगदान रहा है। उन्हें विलंब से ही, लेकिन ‘भारत-रत्न’ देकर देश का राष्ट्रीय सम्मान ही ‘अलंकृत’

श्वेत-पत्र का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन यह देश की आजादी के बाद से संसदीय परंपरा जरूर रहा है। श्वेत-पत्र किसी भी सरकार की प्रतिबद्धता का आईना होता है। उसमें सरकार की सोच, नीतियों और जन-कल्याण की योजनाओं का चेहरा झलकता रहता है। मोदी सरकार ने अपने 10-साला कार्यकाल पर श्वेत-पत्र लोकसभा में पेश किया है, तो यह उसका नैतिक और प्रशासनिक दायित्व था, लेकिन 2004-14 की कांग्रेस नेतृत्व की

राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की निगाह में अटल टनल के दोष कोकसर तक बिखर रहे हैं और इस चेतावनी का व्यावहारिक पक्ष समझना होगा। एक व्यक्ति की निजी चिंता को सूंघते हुए एनजीटी ने राज्य और केंद्र को कोकसर के उजड़ते मंजर पर नोटिस थमाया है। अटल टनल के दरवाजे पर कूड़े-कर्कट के ढेर और इसके निष्पादन की शर्तों पर आंख मूंदे बैठे प्रशासन को एनजीटी का आदेश आईना दिखा रहा है। दरअसल अटल टनल से गुजरता वाह

वयोवृद्ध नेता शरद पवार केंद्रीय रक्षा और कृषि मंत्री रहे हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं। प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम कई बार चर्चा में रहा है। उन्हें भारतीय राजनीति का ‘चाणक्य’ समझा जाता रहा है। हालांकि उनका बुनियादी जनाधार महाराष्ट्र तक ही सीमित रहा है। आज वह ‘चाणक्य’ खाली हाथ, पराजित अवस्था में है। विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होते हुए उन्होंने जिस ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ (एनसीपी) का गठन, पी.ए.संगमा और तारिक अनवर सरीखे मित्रों के साथ, किया था, आज वह पार्टी उनसे छिन चुकी है। शरद पवार ने इस पार्टी की मौजूदगी कुछ और राज्यों में भी स्थापित कराई थी, लेकिन उनके भतीजे अजित पवार की बगावत ने ही उनकी पार्टी पर कब्जा कर लिया।

निवेश की तलहटी में अफरातफरी का आलम यह कि जिस बीबीएन के मार्फत हिमाचल ने आर्थिकी का तिलक लगाना था, वहां सदमे गिने जा रहे हैं। झाड़माजरी में परफ्यूम फैक्टरी की सड़ांध का मुआयना करने निकली सुक्खू सरकार के सामने कई प्रश्र-कई समाधान। मुख्यमंत्री ने स्वयं घटनास्थल पर बिखरे प्रश्रों से बीबीएन की रेत छानी है, तो अंडरग्राउंड तारों के लिए औद्योगिक केंद्र को विश्वास दिलाया गया। दरअसल औद्योगिक विस्तार को प्रदेश से भरोसा चाहिए और भविष्य का मानचित्र भी। बीबीएन की वजह से हिमाचल में उद्योग और उद्योगों में

समान नागरिक संहिता न तो सही है और न ही पूरी तरह गलत है। इसे लागू करने की भी जल्दी नहीं है, क्योंकि न तो संवैधानिक बाध्यता है और न ही तुरंत आवश्यकता है। गोवा भाजपा-शासित राज्य है, वहां नागरिक संहिता कानून के तौर पर लागू है। उत्तराखंड विधानसभा में नागरिक संहिता का बिल पेश किया जा चुका है। वह पारित भी हो जाएगा। गुजरात और असम ने भी ऐसी ही जुबान बोलनी शुरू कर दी है। ये सभी भाजपाई राज्य हैं। ऐसा नहीं