संपादकीय

कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी ने दूसरी यात्रा का आरंभ किया है-‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा।’ कांग्रेस प्रवक्ता इसे सामाजिक, धार्मिक न्याय और ‘अराजनीतिक’ यात्रा करार दे रहे हैं। कांग्रेसी ‘न्याय’

राजस्व लोक अदालतों की शुरुआत करके सुक्खू सरकार ने जमीनी विवादों के आरंभिक कारणों को निरस्त नहीं किया, बल्कि समाज के संदर्भों में सौहार्द के बीज भी वो दिए। इंतकाल के 65 हजार मामलों का निपटारा अपने आप में केवल एक रिकार्ड नहीं

अब विपक्षी ताकत की राजनीतिक मीमांसा का समय आ गया है। चुनावों की घोषणा 15 मार्च के करीब की जा सकती है। राजनीतिक दलों की लामबंदी, रणनीति, संगठन, गठबंधन का यह सबसे नाजुक दौर है।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण अस्वीकार कर कांग्रेस ने धर्म को निजी मामला माना है, लेकिन उसकी आरोपिया दलीलें भी हैं कि ‘अधूरे मंदिर’ का उद्घाटन शास्त्र सम्मत नहीं है। यह आरएसएस-भाजपा का कार्यक्रम है और उन्होंने ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए ऐसा किया है। कांग्रेस ने शंकराचार्यों द्वारा भी आमंत्रण अस्वीकार करने की आड़ ली है, जो अद्र्धसत्य है। शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती की टीम प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इसके अलावा, दो शंकराचार्यों ने अपनी स्वीकृति भेज दी है कि वे 22 जनवरी के पावन उत्स

पर्यटनकी खिड़कियां पूछ रहीं, वह सामने क्यों टांग दी उलटी तस्वीर। ये जन्नत की निगाहों में क्यों फंस गए तिनके, बहारों के आंचल में तो ऐसा कुछ न था। हिमाचल यूं तो पर्यटन राज्य की तासीर में फलता-फूलता दिखाई देता है, लेकिन इन आंकड़ों में खुशहाली नहीं। शीतकालीन पर्यटन की अमावस्या इस बार पर्यटन के

महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने विधायकों को अयोग्य करार देने की याचिकाओं पर फैसला सुनाने में 18 माह से अधिक का वक्त लिया, फिर भी व्यवस्था सवालिया है। स्पीकर यह व्याख्या करते रहे कि ‘असली शिवसेना’ कौन-सी है? उसका नेता कौन है? पार्टी का कौन-सा संविधान मान्य है? उद्धव ठाकरे की शक्तियां क्या थीं? शिवसेना में पार्टी प्रमुख से ताकतवर राष्ट्रीय कार्यकारिणी है। शिवसेना पर फैसला तो चुनाव आयोग सुना

चांद को धरती पर लाने की मशक्कत में, सूरज के कदम भी रूठ के गुम हो गए। कुछ इसी तरह की नसीहतों में हिमाचल के सरकारी अस्पतालों की कंगाली उभर आई। जिस जोर शोर से अस्पतालों में 142 टेस्ट मुफ्त में कराने की घोषणा हुई, उसी तरह के मातम में इनके बंद होने की खबर है। कारण असाधारण नहीं, लेकिन कहना पड़ेगा कि रेवडिय़ों ने मुफ्तखोरी को तगड़ा सबक सिखा दिया। हिमाचल के अस्पतालों मुफ्तखोरी के कोरिडोर सजा कर जो भी साधुवाद बटोरा, वह अंतत: भौंडा व बेमुरब्बत साबित हुआ। एक ही दिन में कुल 650 अस्पतालों की मुफ्त की

हिमाचल मंत्रिमंडल में दो मंत्रियों की सवारी आ रही है तो गाजे-बाजे सहित तकनीकी शिक्षा, आयुष, युवा सेवाएं व खेल विभाग उनके स्वागत के लिए खड़े हैं। जाहिर है राजेश धर्माणी व यादवेंद्र गोमा के हिस्से

बिलकिस बानो केस में सर्वोच्च अदालत के फैसले ने साबित कर दिया कि इंसाफ और कानून अभी जिंदा हैं। अपराधियों को मुक्त नहीं किया जा सकता। अपराधी और उनके सत्ताई आका कानून के सामने बौने हैं।