संपादकीय

भविष्य की हिमाचली दूब पर उतरते संकल्पों का साधना और सद्भावना से भीगना उतना ही आवश्यक है, जितना जरूरी है यथार्थ की जमीन पर हर कदम को पहचानना। अमूमन हिमाचल में राष्ट्रीय पर्व या प्रादेशिक समारोहों में लाभकारी घोषणाओं का इंतजार रहता है और इसी हिसाब से इनका मूल्यांकन करने की सोहबत में कर्मचारी आशाएं

चर्चित टीसीपी विधेयक की परिपाटी घूमते-घूमते फिर भवन निर्माण की वैधता का नया शृंगार करके हाजिर है। अंततः मान गए महामहिम राज्यपाल और कानून का शीर्षासन पूरा हुआ। हुलिया बताता है कि सर्वप्रथम विधेयक की नई नस्ल से अनधिकृत इमारतों को बख्श दिया जाएगा और राहत का पैगाम शहरी आवरण में छिपे इस तबके को

गांधी वंश की नई पीढ़ी अब कांग्रेस का राजनीतिक आधार तय करेगी। रणनीति भी बनाएगी। खंडहरों में खूबसूरत भवन बनाने का सपना भी है। दिलचस्प यह है कि इस नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व भाई-बहन की जोड़ी कर रही है। बेशक राहुल गांधी पहले से ही कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और बतौर अध्यक्ष उनकी ताजपोशी

हिमाचली स्वाभिमान के लिए आज का दिन एक साथ कई मील पत्थर रखता है, फिर भी क्या पूर्ण राज्यत्व दिवस से पूर्ण नायकत्व को हम अंगीकार कर पाए। अपने युग की शुरुआत में हिमाचल ने प्रगति के आईने और पहाड़ की छवि को पूरी तरह बदलने में सफलता प्राप्त की, लेकिन इस नायक की पूरी

चुने हुए जन-प्रतिनिधियों का एक तबके द्वारा विरोध प्रदर्शन एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। अमरीकी राष्ट्रपति भी उससे अछूते नहीं रहे हैं, लेकिन नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का जितने व्यापक स्तर पर, हिंसक विरोध किया जा रहा है, अब वह बेमानी है, क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति को अधूरे जनमत का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। ट्रंप के

हिमाचल में बदलती चुनावी भाषा और राजनीतिक बोलियों के बीच बेअसर अगर कुछ है, तो आवारा पशुओं और वन्य प्राणियों की बढ़ती तादाद का प्रश्न। क्योंकि सियासी भूमि कभी बंजर नहीं होती, लिहाजा किसान-बागबान के उजड़े खेत पर नहीं उगती। हिमाचली प्रगति के हर आयाम के दूसरे छोर पर खड़ा बंदर, आवारा कुत्ता, गाय या

1967 से भारतीय राजनीति में गठबंधन का दौर चलता रहा है। जनता पार्टी का प्रयोग ऐसा था, जिसमें मुलायम सिंह और भाजपा (तब जनसंघ) साथ-साथ थे। समकालीन दौर में यूपीए का प्रयोग सामने आया, तो उसे सपा और बसपा सरीखे धुर विरोधियों ने एक साथ कांग्रेस को समर्थन दिया। दरअसल कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही गठबंधन

आखिर चुनावों से पहले आरएसएस के शीर्ष नेताओं को आरक्षण की ही याद क्यों आती है? वे या तो किसी रणनीति के तहत बयान देते हैं अथवा प्रधानमंत्री मोदी की ताकत को कुंद करने के लिए कोशिशें करते हैं? क्या आरक्षण समाप्ति की बात के पीछे ध्रुवीकरण का विचार भी होता है, जो अकसर चुनावों

त्रिदेव सम्मेलन में सांसद शांता कुमार की मजाक में कही बात का एक गंभीर पक्ष धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने के औचित्य पर प्रश्न पूछ रहा है। सियासी मुहाने पर ऐसे फैसलों की चीर-फाड़ के बावजूद आर्थिक मोर्चे पर सवाल पूछे जाएंगे और यह भी कि प्रदेश में आखिर कितनी राजधानियां हो सकती हैं। भाजपा