विचार

इस्लाम इतना तंगदिल मजहब है या उसके कथित प्रतिनिधियों-मुफ्ती, मौलवी, मुल्ला की सोच इतनी संकीर्ण है कि यदि उत्तेजना, भावुकता या आवेग के किन्हीं पलों में किसी मुसलमान की जुबां से ‘जय श्रीराम’ का नारा निकल जाए, तो क्या उसके लिए ‘इस्लाम निकाला’ का फतवा जारी कर दिया जाएगा? दरअसल ऐसा किसी और की जुबां

बावजूद इसके कि तीसा प्रकरण के आमने-सामने दो समुदाय खड़े नजर आए, लेकिन पूरे मामले में एक शिक्षक की नीयत का जनाजा उठा है। हैरानी यह कि जिन कंदराओं में कोटखाई मामले का दोष छिपा है, उससे भी आगे नीचता का सबूत एक शिक्षक ने दिया। जाहिर है इससे अभद्र गाली हिमाचली समाज को नहीं

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल, तेलंगाना) हाल ही में तेलंगाना सरकार ने बच्चों के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया है और वह है उनके बस्ते के बोझ को कम करने का। इसके साथ ही प्राथमिक स्तर तक के विद्यार्थियों के होमवर्क पर भी रोक लगा दी गई है। छोटे-छोटे बच्चे दो से अढ़ाई

तिलक सिंह सूर्यवंशी लेखक, सिहुंता, चंबा से हैं पेंशन इसलिए जरूरी होती है कि बुढ़ापे में जीवन बिताने के लिए किसी दूसरे के आगे भीख न मांगनी पड़े। लेकिन जिस प्रकार नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत कर्मचारियों की व्यथा सामने आई है, उससे लगता है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बुढ़ापा पेंशन नहीं, बल्कि बेरोजगारी व

(सुरेश कुमार, योल, कांगड़ा ) अभी कोटखाई की खाई पाटने में कानून लगा है, प्रदेश गुस्से में है और चंबा में एक शिक्षक द्वारा छात्रा के साथ दुराचार ने आग को और भड़का दिया है। आखिर हिमाचल को हो क्या गया है? इसे तो देवभूमि कहते हैं। सरकार से तो विश्वास उठा ही है और

(किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर ) देश के अन्य राज्यों की भांति हिमाचल में भी मनरेगा के अंतर्गत पंचायती स्तर पर जनहित के कई कार्य किए जा रहे हैं। इससे जहां जरूरतमंद लोगों को रोजगार मिल रहा है, वहीं ग्रास रूट स्तर पर विकास कार्य भी हो रहे हैं। आज गांव में कोई मजदूर खाली

जन्नत के गद्दार (डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) जन्नत को ही खा गए, जन्नत के गद्दार, ये पड़ोस से कर रहे, मां का ही व्यापार। निद्रा में थी सो रही, मुफ्ती की सरकार, मलिक, गिलानी मीर को, लगा आज अतिसार। सूअर का है खून यह, जल्द मारें गद्दार, मां तक को छोड़ा नहीं, करते

मुंशी प्रेमचंद भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं जिनके युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखंड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंजिलों से गुजरा। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वह एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता,

उर्दू के पत्र-पत्रिकाओं की विडंबना यह है कि स्वयं उर्दू भाषा से जुड़ा मुस्लिम वर्ग उसकी क़द्र नहीं करता। ऐसा देखने में आता है कि बड़े शहरों व छोटे कस्बों में एक उर्दू अख़बार को कम से कम 25-50 लोग पढ़ते हैं। उर्दू का चाहने वाला भी अपनी जेब से पैसे निकाल कर उर्दू की