राजधानी दिल्ली का मौसमी तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यों के कई क्षेत्रों का तापमान 47-48 डिग्री को भी पीछे छोड़ चुका है। ऐसा लग रहा है मानो आग बरस रही हो! यदि आप अपने ही घर में वातानुकूलित कमरे से दूसरे कमरे में जाएंगे, तो आपका सामना आग के तूफान से होगा। हवा में इतनी तपन है। बीता 9 जून अभी तक ‘सबसे गर्म दिन’ आंका गया है, जिस दिन बिजली की मांग ‘चरम’ तक पहुंच गई और 241 गीगावाट की मांग दर्ज की गई। नतीजतन केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय एयरकंडीशनर के नए मानक तय करने को विवश हुआ है। जब नए मानक बनकर ला
हिमाचल की सैन्य पृष्ठभूमि से निकला रास्ता ठीक चीन के सामने खड़ा है और जहां राष्ट्रीय गर्व की ताल ठोंकता पर्यटन सैल्यूट करता है। देश का जज्बा लिए पर्यटक वाघा-अटारी तक जिस जोश से पहुंचते रहे हैं, उसी संवेग से हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के प्रयास बार्डर टूरिज्म को शिपकी-ला तक ले आए हैं। यहीं इंदिरा प्वाइंट का स्तंभ याद दिलाता है कि देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिर गांधी ने देश की एकता और अखंडता का तिलक, किन्नौर की
अब जीवन ही अलग है। मन तो बावरा है ही, मन तो मानता ही नहीं, मन तो मनमानी भी करता ही है। अगर जीवन में कोई कमी हो तो मन हमें भटका सकता है, भटकाता ही है। मन के खेल सचमुच निराले हैं, इससे सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि हमें तो यह लगता है कि हम अपने मन की कर रहे हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि मन को बेलगाम छोड़ कर हम असल में अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। ऐसे हर मामले में स्पिरिचुअल हीलिंग एक प्रभावी औजार है जो हमें सही रास्ता दिखा सकता है और जी
सबसे बड़ी जरूरत पुलिस अफसरों और कर्मचारियों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और उन्हें जनता जनार्दन की सेवा के लिए फ्री हैंड दिया जाना चाहिए ताकि वे निर्भय, निष्पक्ष और सत्यनिष्ठ रहकर अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन कर सकें...
जमाना बदल गया है बंधु! बहुत पहले बलिदान की परिभाषा में अपना घर द्वार त्याग, सुख-सुविधा की चिंता छोड़ केवल उन लोगों की चिंता करना रह गया था, जो सदी दर सदी आर्थिक पराधीनता की बेडिय़ों में जकड़े रहते हैं, और बड़े मालिकों के पद-चुंबन के बावजूद उनके अधूरे सपने और टूट, और बिखर कर बेगाने हो जाते हैं। बेगानेपन का उच्छवास जब प्रासादों का सदाजीवी चंदोबा बनने लगता था, तब उन्हीं में से देश का यौवन जागता था। हर घर से एक भगत सिंह आगे आकर मां भारती के तन-बदन पर जकड़ी विदेशी हुकमरानों की बेडिय़ों को चीर कर उनके लिए जिम्मेदार धरती का सृजन करने के साथ, उन्हें रोटी, कपड़ा और मकान का अधिकार दिलाने की कसम खा अपने बलिदानों को बदलाव की क्रांति में तबदील करने के लिए जूझ मरता था। आज ऐसी भावनाओं को दोहराने
पाकिस्तान का जन्म ही झूठ की बुनियाद पर हुआ है। पाकिस्तान भारत के सामने ही नहीं, दुनिया को भी झूठ परोसना अपनी शान समझता है। झूठ पाक की फितरत बन गई है। पहलगाम हमले के बदले आपरेशन सिंदूर की कार्रवाई से पाकिस्तान घबराया हुआ है। भारत की 400 मिसाइलों के साथ सेना की पुरजोर तैयारी से खौफजदा पाकिस्तान हथियार खरीदने की अपील अमरीका से कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने 9 जून को सत्ता में 11 साल पूरे कर लिए हैं। लोकतंत्र में यह महत्वपूर्ण जनादेश और सरकारी स्थिरता का प्रतीक है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री मोदी का कार्यकाल सबसे लंबा है। उनके मौजूदा कार्यकाल के अभी चार साल शेष हैं। भारत में प्रत्येक प्रधानमंत्री प्रशंसा और साधुवाद का पात्र है, क्योंकि आबादी 50 करोड़ रही हो अथवा अब 146 करोड़ से अधिक, विश्व में सर्वाधिक आबादी है, उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को संतोषजनक रूप से संबोधित करना, हल करने का प्रयास करना, बेहद मुश्किल काम है। बहरहाल मौजूदा मोदी सरकार का प्रथमद्रष्ट्या आकलन करें, तो यकीनन ये बदलाव, विकास और विस्तार के 11 साल हैं। कांग्रेस का इन्हें ‘नाकामियों के 11 साल’ करार देना स्वाभाविक है
जून आते ही पर्यटन भीड़ बन जाता और ट्रैफिक लाचारी में फंस जाती है। रिकार्ड के लिए सैलानी चाहिएं तो अटल टनल का घेराव बताता है कि पर्यटन उद्योग वहां कैसा संघर्ष कर रहा है। पर्यटन के संघर्ष की तासीर फिर भी सुधारी जा सकती है, लेकिन सैलानियों के संघर्ष की व्यथा हर बार भारी पड़ती है। कसौली-डलहौजी, मकलोडगंज-शिमला और मनाली के रास्तों पर ट्रैफिक जाम के सिलसिले अंतत: हैं तो सैलानियों के संघर्ष ही। बेशक सफर में हिमाचल गतिशील दिखाई देता है, लेकिन रास्तों की खबर परेशान करती है। पर्यटन को मापने का एक यंत्र अटल टनल है, जहां करीब दो महीनों में दो लाख से अधिक वाहन गुजर गए। क्या
शिक्षा प्राप्त करने, जीवन में उपस्थित बच्चों व युवाओं के लिए इससे उत्तम प्रेरणादायी प्रसंग अन्य क्या हो सकता है कि आयु में उनसे कुछ ही वर्ष बड़े अथवा उनकी ही आयु के शशांक, पुकार और मंजीत ने दूसरों के प्राण बचाने का कार्य उनकी उसी दुनिया में रहते हुए किया है, जिसमें वे किशोर व युवावस्था में उपस्थित हैं। ये दशकों या सदियों पुराने ऐतिहासिक प्रसंग नहीं हैं, जिनकी स