विचार

नेता भी कई कैटेगिरी के होते हैं। लेकिन सर्वाधिक प्रचलित किस्म लोकप्रिय नेताओं की होती है, और ऐसे नेता अपने नाम के साथ ‘जनसेवक’ शब्द भी जोड़ लेते हैं। हिंदुस्तान में ऐसे नेताओं की भरमार है। इलेक्शन के दौरान इनके बड़े-बड़े होर्डिंग्स और पोस्टर हर चौराहे और दीवार पर लग जाते हैं, जिनमें नेताजी दोनों हाथ जोडक़र बड़ी शालीन मुद्रा में मुस्कुरा रहे होते हैं। कई तस्वीरों में उनके गले में फूलों के हार भी होते हैं, जो जनप्रियता के सुगंधित प्रमाण माने जाते हैं। ऐसे जनप्रिय नेता प्राय:

बीता गुरुवार हमारे देश के लिए बहुत ही अभागा दिन रहा। अहमदाबाद में उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों में एक यात्री विमान आग का गोला बन गया और इस अभागे विमान में बैठे यात्रियों के साथ-साथ वहां जहां यह विमान टकराया और जहां इस जलते विमान के हिस्से गिरे, वहां के लोगों की मौत का कारण भी बन गया। जिस किसी ने भी इस दर्दनाक हादसे की खबर सुनी, वो स्तब्ध है।

अहमदाबाद विमान हादसा इस सदी की सबसे भयावह त्रासदी है। देश ही नहीं, दुनिया भी स्तब्ध है कि इतना खौफनाक हादसा कैसे हुआ? नियति का निर्णय था, लिहाजा एक यात्री, विश्वास कुमार रमेश, जिंदा भी बच गया। यह कुदरती चमत्कार ही है। अलबत्ता विमान में सवार सभी यात्री, दो पायलट और 10 क्रू मेंबर की हादसे में मौत हो गई। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और कुछ उद्योगपति भी यात्रियों में शामिल थे। यात्रियों में 217 वयस्क, 11 बच्चे और 2 नवजात शिशु थे। यह नियति का बेहद क्रूर न्याय है। जीवन छीनना था, तो प्राण ही क्यों दिए? हैरत है कि नियति ने सभी की मौत एक साथ, एक ही विमान

बार-बार पूछा गया हिमाचल में बड़ा एयरपोर्ट किसलिए, लेकिन अब सुक्खू सरकार कम से कम यह समझाने में एक तरह से कामयाब हो चुकी है कि कांगड़ा हवाई अड्डे का विस्तार अगली कई सदियों और पीढिय़ों को सुधारने के लिए इसलिए जरूरी है। सरकार ने कई संघर्ष शांत किए और यहां आर्थिकी के लिए एयरपोर्ट विस्तार योजना के लिए मौके को दुरुस्त किया। हिमाचल के भौगोलिक माप तोल में बड़े एयरपोर्ट की निशानदेही के लिए खंभे तो बहुत गाड़े गए, लेकिन न धूमल सरकार बनखंडी का पहाड़ खोद पाई और न ही जयराम सरकार बल्ह में एयरपोर्ट की संभावना को सिरे चढ़ा पाई। ऐसे में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने जिस शिद्दत से कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की सारी संभावना, क्षमता और उपयोगिता को प्रदर्शित किया, उससे अब एक बड़े आकाश की खोज शु

इसे महाभारत का यक्ष प्रश्न ही कहना चाहिए कि 1947 में षड्यंत्रकारी ब्रिटिश शासकों के चले जाने के बाद भी पंजाब के विश्वविद्यालयों में निर्मला पंथ का इतिहास व निर्मला साधुओं का रचित साहित्य उपेक्षित ही रहा...

भीषण गर्मी में पानी की कमी महसूस की जा रही है। वहीं मानसून आंख मिचौनी कर रहा है। आधा जून बीत जाने के बाद भी बारिश की राह ताकते किसानों को निराशा हाथ लगी है। पूर्वोत्तर राज्यों में इसके विपरीत बाढ़ से कई लोग बेघर हो गए हैं। वहां राहत कार्य जोरों पर है। जल संकट की जिम्मेदारी पूरी तरह कृषि क्षेत्र पर डालना अनुचित है। आज देश में पानी की जितनी खपत है, वहां अनुपात में जलस्रोतों को संरक्षित करने की कोई मजबूत व्यवस्था नहीं है।

जो ‘भारत-दूत’ देश की नीतियों और सोच, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का संकल्प प्रस्तुत करने विदेश गए थे, वे स्वदेश लौट आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे मुलाकात की और उनके अनुभवों को सुना। यह मुलाकात और संवाद ही लोकतंत्र की सच्ची विविधता है। लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के सांसद, पूर्व विदेश मंत्रियों के अलावा, वरिष्ठ राजनयिक भी विदेशों में भेजे गए थे। उन्हें ‘भारतदूत’ का विशेषण दिया गया, क्योंकि वे विदेश में भारत के ही चेहरे थे। उनकी यही राष्ट्रीय पहचान थी। राजनीतिक पहचान गौण हो चुकी थी। कुल 7 प्रतिनिधि मंडलों में 59 सांसद और राजनयिक थे, जिन्होंने 33 देशों का प्रवा

हिमाचल के मुख्यमंत्री राज्य की जेब में आत्मनिर्भरता का आत्मबल डालना चाहते हैं। जाहिर है आर्थिक चुनौतियों के दलदल को दरकिनार करके आगे बढऩा उस परिस्थिति में और भी मुश्किल है जब केंद्र की ओर से राज्य के अधिकार नजरअंदाज हो रहे हों। सपने और समृद्धि में हकीकत भर का अंतर है। बेशक कृषि और बागबानी क्षेत्र

भारत 2036 के ओलंपिक व 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए अपनी दावेदारी पेश कर चुका है। ऐसे में देश के खिलाडिय़ों को इन खेलों में पदक विजेता प्रदर्शन जरूरी हो जाता है। हिमाचल प्रदेश जहां यूरोप व अमेरिका की तरह जलवायु होने के कारण यहां पर प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए एक उच्च स्तरीय खेल संस्थान हो, क्योंकि बेहतर आबोहवा में प्रशिक्षण के लिए करोड़ों खर्च करके हमारे खिलाड़ी विदेश जाते हैं। देश में राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला बहुत बढिय़ा प्रशिक्षण स्थल है, मगर वहां गर्मियों में ट्रेनिंग करना बहुत मुश्किल है। जब हम राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला में प्रवेश करते हैं तो गेट से सौ मीटर आगे