संपादकीय

प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट का पहला आश्चर्य अमित शाह हैं। वह फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा ने 19 राज्यों में सत्ता हासिल की। उन्हें ‘चुनावों का चाणक्य’ माना जाता है। हालांकि 2019 के प्रचंड जनादेश के बाद अमित भाई के मंत्री बनने के कयास जारी थे। दरअसल मोदी-शाह की जुगलबंदी

उम्मीदों के जश्न और सत्ता की भागीदारी में हिमाचल को सदा न्याय की दरकार रही है और नरेंद्र मोदी सरकार के लौटते कदम फिर ‘नई खबर’ को आहट से भर देते हैं। राष्ट्रीय योजनाओं के अतिरिक्त अपने भाग्य जगाने की हिमाचली नीतियां जब तक क्षेत्रवाद के सोच से ऊपर नहीं उठतीं, हासिल उपलब्धियां केवल व्यक्तिनिष्ट

मोदी सरकार के पैगाम हिमाचल के लिए पुनः सियासी प्रश्रय सरीखे हैं, क्योंकि जगत प्रकाश नड्डा की रिक्ति अगर सांसद अनुराग ठाकुर को मंत्रिमंडल में जगह दे रही है तो संगठन में पहली बार भागीदारी बढ़ रही है। यह दोहरा लाभ पर्वतीय प्रदेश के हिस्से में आ रहा है और विद्यार्थी परिषद से निकले जगत

आम चुनाव के जनादेश ने प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘टाइम’ का रुख ही बदल दिया है। जिस पत्रिका ने चुनावों से पूर्व आवरण कथा छापी थी कि प्रधानमंत्री मोदी ‘देश को बांटने वाले मुखिया’ हैं, उसी पत्रिका ने पलटी मारने में सिर्फ 18 दिन लगाए और नया जनादेश प्राप्त प्रधानमंत्री को ‘जोड़ने वाला’ कहना पड़ा। यह

यह आम चुनाव और भाजपा-एनडीए की ऐतिहासिक जीत का ही फलितार्थ है। राजनीतिक दलों और चेहरों की ‘चूहा-दौड़’ पहले भी जारी रही है। नतीजतन पाले और पार्टियां बदली जाती रही हैं। यह प्रधानमंत्री मोदी के ‘राजनीतिक करिश्मे’ का दौर है, लिहाजा भाजपा में शामिल होने को भगदड़ मची है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की

रोहतांग मार्ग के गुलाबा पर बरपा हंगामा, हमारी पर्यटन व्यवस्था का चेहरा बेनकाब करता है। हिमाचली सड़कों पर अगर सैलानियों को क्रोधित देखा जाए या वे असुविधाओं के लिए प्रदेश को कोस रहे हैं, तो यह तमाशा नहीं-तमाचा है। ऐसे अनेक परिदृश्यों से झांकता हिमाचली पर्यटन कालका-शिमला मार्ग के ट्रैफिक जाम में बदनाम हो रहा

कांग्रेस के भीतरी हाहाकार की नियति यही हो सकती है। वैसे तो पराजित विपक्ष में कोहराम मचा है। राजद में तेजस्वी यादव के खिलाफ बगावत छिड़ गई है। रालोसपा के सभी विधायक पार्टी छोड़ कर जद-यू में शामिल हो गए हैं, लेकिन कांग्रेस की स्थिति सदमे वाली है। राजस्थान में मंत्रियों  ने ही मुख्यमंत्री अशोक

कालका-शिमला मार्ग पर हर दिन का रिकार्ड ढोते वाहनों के लिए ट्रैफिक जाम का अर्थ केवल हिमाचल की लाचारी है। राजधानी शिमला को नापने के लिए यह जरूरी बन गया कि पर्यटक कुछ घंटे ट्रैफिक जाम में रहें। इसे हम प्रशासनिक अफरातफरी भी मान सकते हैं, जो पर्यटक सीजन को अपनी तरह से संबोधित करती

जो देश में, क्या वही हिमाचल में भी हुआ या इसके अलावा भी राजनीति ने प्रदेश को अपना वृत्तांत सुनाया है। कांग्रेस के अपने पिंजरे और पिंजरों से संचालित सियासत का अंत न हुआ, तो आगामी सफर की कहानी पुनः दो उपचुनावों से लिख दी जाएगी। देश की तर्ज पर लोकसभा चुनाव हिमाचल में भी