प्रो. मनोज डोगरा, लेखक हमीरपुर से हैं

कोरोना का भी अंत भारत से ही होगा, ऐसा प्रतीत होता है। लेकिन इसके लिए आवश्यकता है तो मात्र यह कि देशवासी ऐसा संयुक्त दृढ़ संकल्प करें कि कोरोना हार जाए। साथ ही मजबूत इच्छा शक्ति व संयम के साथ धैर्य रखकर विवेक से काम करते हुए स्वयं व अपनों के लिए सुरक्षा मानकों को

भयमुक्त होना अच्छा है, लेकिन बेपरवाह होना कोरोना से जीतने की लड़ाई में कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। मास्क व शारीरिक दूरी, जिसे कोरोना की प्रारंभिक वैक्सीन कहा जाता है, आज जनता इस वैक्सीन को भुला चुकी है जिसका परिणाम आज हम सभी के समक्ष कोरोना मामलों में अत्यधिक वृद्धि के रूप में सामने है।

हमें जल व अन्य वातावरण को अपने पूर्वजों की देन नहीं समझना है, बल्कि इसे तो हमने अपनी आने वाली पीढ़ी से उधार स्वरूप लिया है, जिसे हमने जिस मात्रा व रूप में लिया है, उसे उसी रूप व मात्रा में दोबारा वापस करना है। ऐसी मानसिकता व धारणा के साथ जब सभी व्यक्ति जल

वैचारिक मतभेद होना आवश्यक है, लेकिन मनभेद घातक होता है। रेडियो और सोशल मीडिया के माध्यम से जिस भी व्यक्ति ने यह देखा-सुना, उसे बहुत पीड़ा हुई कि आज संवैधानिक व्यक्ति के ऊपर किस तरह से लोकतंत्र का हनन हो रहा है। भारतीय संविधान में महामहिम राष्ट्रपति और महामहिम राज्यपाल का पद संवैधानिक पद है

अगर जनमंच के दौरान सुनी गई समस्याओं और उनको सुलझाने के लिए आला अधिकारी पूरा ध्यान दें तो लोगों को काफी लाभ हो सकता है। पूरे प्रदेश में जब जनमंच कार्यक्रम सजता है तो विभिन्न विभागों के मंत्री वहां जनता की समस्याओं को प्रशासन के सामने सुनते हैं। कुछ समस्याओं का निवारण उसी समय तो

प्रो. मनोज डोगरा लेखक हमीरपुर से हैं जल संरक्षण को हम सभी को अपने दैनिक जीवन का संकल्प बनाना होगा तथा इसे मानसिक स्तर से व्यावहारिक स्तर पर लाना होगा। हमें जल व अन्य वातावरण को अपने पूर्वजों की देन नहीं समझना है, बल्कि इसे तो हमने अपनी आने वाली पीढ़ी से उधार स्वरूप लिया

प्रो. मनोज डोगरा लेखक हमीरपुर से हैं यानी रोहतांग सुरंग के निर्माण से अब लाहुल घाटी सोना उगलेगी। यह सुरंग कई लोगों के सपने साकार करेगी तथा कई युवाओं के सपनों को सुरंग के निर्माण से उड़ान मिलेगी, जिसका सीधा असर राष्ट्र निर्माण में देखने को मिलेगा। यानी रोहतांग सुरंग कई राष्ट्रीय महत्त्व की पूर्ति

प्रो. मनोज डोगरा लेखक हमीरपुर से हैं वैसे तो भारत में छह से 14 साल के आयु वर्ग के प्रत्येक बालक और बालिका को स्कूल में मुफ्त शिक्षा का अधिकार है, लेकिन यहां पर 40 फीसदी से अधिक बालिकाएं 10वीं कक्षा के उपरांत स्कूल त्याग देती हैं जिसका सबसे बड़ा कारण गरीबी व परिवार का