पीके खुराना

नालेज इकानमी में बड़े शहरों के दायरे से बाहर निकल कर कस्बों और गांवों को उद्योग और रोजग़ार का केंद्र बनाने की अपार संभावना है। यह एक ऐसी क्षमता है जिसका लाभ लिया जाना अभी बाकी है। यह खुशी की बात है कि कई निजी कंपनियां भी इस उद्देश्य में सहयोग देकर अपने प्रयासों से

इसके विपरीत प्रपोर्शनल रिप्रेज़ेंटेशन यानी आनुपातिक प्रतिनिधित्व में विभिन्न दलों को उनके वोट प्रतिशत के हिसाब से सीटें दी जाती हैं और उनकी सूची के वरीयता क्रम के अनुसार उम्मीदवारों को सदन में जगह मिलती है। यानी अगर सदन में कुल 100 सीटें हों और किसी एक दल को सारे प्रदेश में 34 प्रतिशत मत

हम मैटावर्स के युग में रह रहे हैं। ‘हैलो अलादीन’ नाम की कंपनी ने इसी दिशा में नए प्रयोग किए हैं और सालों-साल की रिसर्च और मेहनत के बाद मैटा ट्रांस्फार्मेशन का तीन महीने का एक प्रशिक्षण कोर्स तैयार किया है जो दावा करता है कि हम और हमारा शरीर एनर्जी का ही भौतिक रूप

जिस प्रकार एक पुरुष अपने अन्य पुरुष सहकर्मियों में से सिर्फ कुछ लोगों को ही ज्य़ादा पसंद करते हैं या किसी एक के साथ ही गहरी मित्रता करते हैं, वैसे ही कोई महिला भी किसी एक पुरुष सहकर्मी के ज्य़ादा नज़दीक हो तो यह भी स्वाभाविक मित्रता है, ‘आमंत्रण’ नहीं, पर कई बार इस खुलेपन

स्थानीय स्तर पर नेतृत्व की शक्तियां और जिम्मेदारियां पार्षदों, विधायकों तथा सांसदों और अधिकारियों के बीच उलझनपूर्ण ढंग से बिखरी हुई हैं। शहरी स्वशासन के मामले में मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद, उपायुक्त, निगम आयुक्त, पार्षद और मेयर आदि की जिम्मेदारियां एक समान हैं जिससे बहुत उलझन होती है क्योंकि किसी एक व्यक्ति की जवाबदेही नहीं बन

भारत महान बने इससे बढक़र हमारे लिए और क्या खुशी हो सकती है? समझने की बात ये है कि हम सब खुद महान होंगे तो ही भारत महान होगा। ‘99 प्रतिशत बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान’ व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। सबको ईमानदार होना पड़ेगा, सबको महान होना पड़ेगा। हम सिर्फ स्वतंत्रता दिवस

अब हम जान चुके हैं कि चैतन्य की ओर पहला कदम है जागरूकता। इसका अगला कदम रुचि है, यानी अपने आसपास की वस्तुओं तथा घटनाओं के प्रति जागरूक रहने तथा उनमें रुचि लेने का अभ्यास। इस समग्र प्रक्रिया से गुजर कर ही हम चेतन मस्तिष्क के मालिक हो सकते हैं और चेतनता से परम चैतन्य

हमारी शिक्षा प्रणाली अभी हमें डर के आगे की जीत का स्वाद चखने के लिए तैयार नहीं कर रही है। हमें यह समझना चाहिए कि परिवर्तन दिमाग से शुरू होते हैं, या यूं कहें कि दिमाग में शुरू होते हैं। राबर्ट कियोसाकी ने लिखा है कि जब मैं मोटा हो गया था और मैंने अपना

दुश्मनी में हमेशा डर का माहौल बना रहता है और सुरक्षा सदा दांव पर होती है। ध्रुवीकरण और बंटवारे से किसी समाज का भला नहीं हो सकता। हमें समझना होगा कि झूठ का प्रसार या समाज का बंटवारा सिर्फ नेताओं को फायदा पहुंचाता है, जनता का तो नुकसान ही होता है। कोई भी नेता, चाहे

ये दोष किसी एक व्यक्ति के नहीं हैं, ये प्रणालीगत दोष हैं। भारतवर्ष में लागू संसदीय प्रणाली इतनी दूषित है कि इसे बदले बिना इन कमियों से निजात पाना संभव नहीं है। इसकी तुलना में अमरीकी शासन प्रणाली बहुत बेहतर है। वहां राष्ट्रपति कानून नहीं बनाता, संसद कानून बनाती है। भारतवर्ष में यदि सरकार द्वारा