पीके खुराना

ये दोष किसी एक व्यक्ति के नहीं हैं, ये प्रणालीगत दोष हैं। भारतवर्ष में लागू संसदीय प्रणाली इतनी दूषित है कि इसे बदले बिना इन कमियों से निजात पाना संभव नहीं है। इसकी तुलना में अमरीकी शासन प्रणाली बहुत बेहतर है। वहां राष्ट्रपति कानून नहीं बनाता, संसद कानून बनाती है। भारतवर्ष में यदि सरकार द्वारा

खुशी की बात यह है कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं में यह गुण मौजूद है और हिंदी का ही नहीं, पंजाबी, बंगाली, मराठी, असमिया, तमिल, तेलुगू आदि सभी भारतीय भाषाभाषियों का एक बड़ा वर्ग है जो प्रगतिशील है, आगे बढ़ रहा है तथा और भी आगे बढऩा चाहता है। उसे समृद्ध साहित्य चाहिए, पाठ्यपुस्तकें चाहिएं,

महत्वाकांक्षी होना गलत नहीं है, किसी भी चीज़ की अति होना गलत है। जब हम महत्वाकांक्षी हों और इस हद तक चले जाएं कि सारी संवेदनाएं, रिश्ते-नाते, दोस्तियां आदि भूल जाएं और सिर्फ अपनी स्वार्थ सिद्धि में लग जाएं तो हो सकता है कि कुछ देर के लिए हम सफल हो जाएं, ज्यादा लाभ कमा

छोटी-छोटी बातें हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में अहम भूमिका निभा सकती हैं। सही ज्ञान के अभाव में सिर्फ पुराने विश्वासों पर चलते रहना या नई अस्वास्थ्यकर आदतें अपना लेना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। गलत तरीके से मोबाइल फोन का प्रयोग अथवा सूर्य नमस्कार दोनों ही हमारे लिए हानिकारक हैं। स्वास्थ्य के बारे में

आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे देश में प्रयोगधर्मी वातावरण बनने, बच्चों को प्रयोग करने और असफल होने की इज़ाज़त हो, असफलता को दाग मानने के बजाय सफलता की सीढ़ी माना जाए। असफलता को सम्मान दिया जाए, वरना असफलता से हम इतना डर जाएंगे कि सफलता के लिए प्रयत्न ही बंद कर देंगे।

मेरे एक मित्र एक कंपनी में चीफ टैक्नालॉजी आफिसर हैं। उन्हें बचपन से ही सवाल पूछने और नई बातें सीखने की शिक्षा मिली थी। नौकरी के लिए इंटरव्यू के समय उन्होंने यूं ही पूछ लिया कि वो हफ्ते में सिर्फ तीन दिन काम करना चाहते हैं, तो उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ कि उनके नियोक्ता ने

याद रखिए, दृढ़ता और अडिय़लपन के बीच एक महीन रेखा है, परंतु यह रेखा न केवल है बल्कि लगातार आत्मनिरीक्षण से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। अति हर चीज की बुरी है। अडिय़लपन और कडिय़लपन तभी तक जायज है, जब तक वह कैद न बन जाए। इसी तरह छूट की भी एक सीमा

जब हम अपने काम में अपनी आत्मा लगा देते हैं तो फिर वह काम हमारे लिए कई नए दरवाज़े खोल देता है। वक्त की चादर ज्यादा लंबी नहीं है, समय सीमित ही है और हम किसी भी दिन को 24 के बजाय 25 घंटे का नहीं बना सकते, पर अपने कामों में अपनी आत्मा डाल

टाटा ने विश्व की सबसे सस्ती कार बना दिखा दी, टाइटैन ने सबसे स्लिम वाटरप्रूफ घड़ी बनाकर दिखा दी, लेकिन यह तर्क दिया जा सकता है कि टाटा समूह के पास प्रतिभा, साधन और धन की कमी नहीं है। हां, यह सही है कि टाटा समूह के पास न प्रतिभा की कमी है और न

कुछ वर्ष पूर्व एक राज्य की सरकारी बस सेवा के ड्राइवरों की आंखों के निरीक्षण में पाया गया कि उनमें से आधे से ज्य़ादा ड्राइवरों को साफ नहीं दिखता था और उन्हें चश्मे की ज़रूरत थी, कइयों को रात को कम दिखता था। ऐसे ड्राइवर अंदाज़े से और राम भरोसे वर्षों से बसें चला रहे