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भयमुक्त होना अच्छा है, लेकिन बेपरवाह होना कोरोना से जीतने की लड़ाई में कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। मास्क व शारीरिक दूरी, जिसे कोरोना की प्रारंभिक वैक्सीन कहा जाता है, आज जनता इस वैक्सीन को भुला चुकी है जिसका परिणाम आज हम सभी के समक्ष कोरोना मामलों में अत्यधिक वृद्धि के रूप में सामने है।

ऐसा करके एकता परिषद ने स्थानीय अहिंसक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का सूत्रपात कर दिया है। गौरतलब है कि श्रमदान के जरिए एकता परिषद ने गांवों की उन समस्याओं को समाधान में तब्दील कर दिया, जिसके लिए ग्रामीण सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक गए थे, लेकिन सरकार ने कोई त्वरित पहल नहीं की थी।

समाज में बढ़ती नशाखोरी की घटनाएं, आत्महत्याएं, संगीन अपराधों में इजाफा, नस्लभेद, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, बॉलीवुड में अश्लीलता व समाज में दरकते पारिवारिक रिश्ते इसी पश्चिमी विचारधारा का प्रदूषण व विकृत मानसिकता की देन है। सामाजिक संस्कारों को दूषित करने वाली इन चीजों को आधुनिकता नहीं कहा जा सकता। बहरहाल सत्य, अहिंसा, शिष्टाचार,

यहां यह बताना जरूरी होगा कि अजय कुमार डे नामक नागरिक ने कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें गंगासागर मेले में स्नान के लिए आने वाली श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को कोविड-19 को देखते हुए रोकने की मांग की गई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीबी राधाकृष्णन

भविष्य में अंकेश चौधरी, पारस, रोहित, अंबिका राणा व दिव्या सहित कई उभरती प्रतिभाओं से अपेक्षा है कि वे कुछ कर दिखाएंगे… ओलंपिक खेलों में विभिन्न खेलों की कई स्पर्धाएं आयोजित होती हैं, मगर एथलेटिक्स का आकर्षण सबसे अधिक होता है। ओलंपिक में जो धावक सौ मीटर की दौड़ में विजेता बनता है, वह पृथ्वी

मोदी सरकार ने समाज के एक वर्ग पर अघोषित आपातकाल लगा रखा है। यह एक प्रकार की सेक्शनल इमर्जेंसी है जिसमें कानून और सर्वोच्च न्यायालय तक को अमान्य किया जा रहा है। असहमति जताने वाले लोगों को जेलों में डाला गया है। भ्रष्टाचार निरोध के मामले में भी ऐसा ही है। सिर्फ विरोधी दलों के

हम सभी को कुंभकर्णी नींद को त्याग कर, नपुंसकता व हिजड़ों की बादशाहत को छोड़ना होगा। भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य व कृपाचार्य की तरह आंखें मूंद कर बैठे रहे तो द्रौपदियों के चीरहरण होते रहेंगे। पापों से बनी लंका को जलाने की जरूरत है तथा विचारों की संकीर्णता को त्यागते हुए हमें श्री राम की तरह

आज बैंकिंग उद्योग को सिर्फ निजीकरण की जरूरत नहीं, बल्कि सार्वजनिक बैंकों के कामकाज की पारदर्शिता, प्रभावी विनियमन, सुपरविजन और बेहतर मैनेजमेंट की ज़रूरत है जिससे बैंकों के बढ़ते एनपीए पर नियंत्रण हो सके और उनकी वसूली हो सके। बैंकिंग क्षेत्र पर सरकार और आरबीआई का दोहरा नियंत्रण भी एक समस्या है… सरकारी बैंकों का

टीबी पर नियंत्रण के लिए जनता, स्वास्थ्य पेशेवरों, स्वास्थ्य मंत्रालय के योजनाकारों और अनुपालनकर्त्ताओं, सबको इसके विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा तैयार करना होगा। हम इसकी शुरुआत स्कूलों से कर सकते हैं… प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को विश्व क्षय रोग उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। टीबी जैसी गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के